By अभिनय आकाश | Jul 29, 2022
इराक की स्वतंत्रता के बाद 1980 का दशक इराक में एक अलग तरह का बदलाव लेकर आया। इस तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन शासनकाल था। जिसे कई लोग गोल्डन पीरियड बताते हैं, हालांकि दूसरा पक्ष सद्दाम के शासन को तानाशाह की बुरी याद के रूप में भी देखते हैं। लेकिन सद्दाम के बगदाद में इन दिनों हालात ठीक नहीं दिख रहे हैं। श्रीलंका में जैसा कुछ हुआ था ठीक वैसा ही इराक में हुआ। इराक की राजधानी बगदाद में बुधवार को सैंकड़ो प्रदर्शनकारी जमा हुए और संसद भवन पर कब्जा कर लिया। प्रदर्शनकारी ईरान समर्थित राजनीतिक पार्टियों की ओर से पूर्व प्रांतीय गवर्नर मोहम्मद शिया अल सुदानी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने को लेकर विरोध कर रहे हैं । प्रदर्शनकारियों के हाथों में इराकी शिया लीडर मुक्तदा अल सदर के पोस्टर हैं।
इराक से आ रही तस्वीरें श्रीलंका की यादें ताजा करती हैं। वैसा ही आम लोगों का हुजूम वैसा ही गुस्सा और विरोध प्रदर्शन इन दिनों इराक में भी देखने को मिल रहा है। सुरक्षा के तमाम इंतेजाम को नाकाम करने वाली भीड़ ने बगदाद की सड़कों को अचानक बंधक बना लिया। भीड़ ने ग्रीन जोन तक पहुँची और फिर सरकारी भवनों में दाखिल होते हुए संसद तक पहुँच गयी। न कंक्रीट की दिवारें जनता को रोक सकी, न पुलिस व वाटर केनन के इस्तेमाल से कोई फर्क पड़ा। हाई सिक्योरिटी वाले इलाके में ऐसा हंगामा हो सकता है ये किसी ने नहीं सोचा था।
रिपोर्ट के मुताबिक ये भीड़ इराकी शिया लीडर मुक्तदा अल सदर के समर्थक थे। प्रदर्शनकारी ईरान समार्थित पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री के लिए पूर्व मंत्री और पूर्व प्रांतीय गवर्नर मोहम्मद शिया अल सुदानी का विरोध कर रहे हैं। भीड़ ने अल सुदानी आउट के नारे लगाए। इराक में अक्टूबर 2021 में आम चुनाव हुए थे। तब से सत्ता को लेकर बवाल मचा हुआ है। जिस अल सुदानी का विरोध का विरोध हो रहा है एओ शिया मुसलमानों की पार्टी से जुड़े हैं।
इराक में 10 अक्टूबर को आम चुनाव हुए है, जिसे 2003 में सद्दाम हुसैन के अमेरिका द्वारा अपदस्थ करने के बाद का पांचवां संसदीय चुनाव कहा गया। अक्टूबर 2021 में हुए चुनाव में अल-सदर के गुट ने 73 सीटें जीती थीं। अल-सदर चुनाव में 329 सीटों वाली संसद में सबसे बड़ा गुट बन गया था, लेकिन वोटिंग के बाद से नई सरकार के गठन की बातचीत रुक गई है। अल-सद्र ने बातचीत की प्रक्रिया से खुद को बाहर कर लिया। नई सरकार के गठन को लेकर गतिरोध बना हुआ है।
शिया-सुन्नी के बीच सत्ता का बंटवारा
इराक़ की बहुसंख्यक आबादी शिया ही है। जब तक सद्दाम हुसैन इराक़ की सत्ता में रहे तब तक यहां शिया हाशिए पर रहे। सद्दाम हुसैन सुन्नी मुसलमान थे। लेकिन 2003 के बाद से अब तक इराक़ के सारे प्रधानमंत्री शिया मुसलमान ही बने और सुन्नी हाशिए पर होते गए। 2003 से पहले सद्दाम हुसैन के इराक़ में सुन्नियों का ही वर्चस्व रहा। सेना से लेकर सरकार तक में सुन्नी मुसलमानों का बोलबाला था। सद्दाम के दौर में शिया और कुर्द हाशिए पर थे। इराक़ में शिया 51 फ़ीसदी हैं और सुन्नी 42 फ़ीसदी हैं।