उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राज्यों को पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले यह निर्धारित कर लेना चाहिये कि क्या ‘अपर्याप्त प्रतिनिधित्व’, ‘पिछड़ेपन’ और ‘समग्र दक्षता’ के मानदंडों को पूरा किया गया है। शीर्ष न्यायालय ने ‘कर्नाटक के आरक्षण के आधार पर पदोन्नत सरकारी सेवकों की वरिष्ठता का निर्धारण अधिनियम’, 2002 के प्रावधानों को रद्द कर दिया जो ‘कैच अप’ नियम के खिलाफ है और जिसके तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को पदोन्नति में वरिष्ठता दी जाती है।
न्यायालय के पहले के फैसले के अनुसार ‘कैच अप’ नियम का मतलब है कि अगर सामान्य श्रेणी के एक वरिष्ठ उम्मीदवार की एससी:एसटी उम्मीदवारों के बाद पदोन्नति होती है तो उसे आरक्षित पदों के तहत उससे पहले पदोन्नत हुये कनिष्ठ अधिकारियों पर वरिष्ठता हासिल होगी। एक संवैधानिक पीठ के फैसले पर भरोसा जताते हुये न्यायालय ने कहा कि इस अधिनियम के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (सरकारी सेवा में बराबरी का मौका) के खिलाफ हैं।
न्यायमूर्ति एके गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने इस अधिनियम को बनाये रखने वाले उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया। सरकारी कर्मचारियों ने इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता के साथ उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिये कि इस फैसले के आने से तीन महीने के भीतर वरिष्ठता सूची की अब समीक्षा की जा सकती है और इसके अनुसार तीन महीने के भीतर आगे की कार्रवाई की जा सकती है।