Prajatantra: AAP और BJP के दावों के बीच ये है दिल्ली वाले अध्यादेश की असली कहानी

By अंकित सिंह | Jun 22, 2023

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा निर्णय लेते हुए दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर नियंत्रण राज्य की चुनी हुई सरकार को दे दिया था। यह केजरीवाल सरकार के लिए बड़ी जीत थी। साथ ही साथ केजरीवाल सरकार की ताकत में इजाफा करने वाली थी। हालांकि, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने वाला एक अध्यादेश जारी कर दिया। इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली संशोधन अध्यादेश 2023 कहा गया। इस अध्यादेश के तहत किसी भी अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा अंतिम निर्णय लेने का हक उपराज्यपाल को वापस दे दिया गया। इसका मतलब इस अध्यादेश के बाद एक बार फिर से पावर उपराज्यपाल के पास ही आ गया। 


केजरीवाल का वार

इस अध्यादेश को लेकर केजरीवाल केंद्र की भाजपा सरकार पर हमलावर है। इतना ही नहीं, उन्होंने 23 जून को पटना में होने वाले विपक्षी दलों की बैठक से पहले साफ तौर पर कह दिया कि केंद्र का अध्यादेश इसमें बड़ा मुद्दा होगा और इसी पर सबसे पहले चर्चा की जाएगी। केजरीवाल इसे तानाशाही रवैया बता रहे हैं। वह इस अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों का समर्थन भी जुटा चुके हैं। हालांकि, कांग्रेस से उन्हें यह समर्थन नहीं मिला। यही कारण है कि केजरीवाल और जबरदस्त तरीके से कांग्रेस पर निशाना साथ रहे। केजरीवाल ने तो यह तक कह दिया है कि दिल्ली में अध्यादेश तो एक प्रयोग है। अगर यह सफल होता है तो भाजपा इसे उन राज्यों में लागू करने की कोशिश करेगी जहां विपक्षी दलों की सरकार है। केजरीवाल ने तो यह भी कह दिया है कि भाजपा चोर दरवाजे से दिल्ली पर राज करना चाहती है।

 

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भाजपा का दावा

दूसरी ओर भाजपा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में अधिकारियों को डराया धमकाया जा रहा था। केजरीवाल सरकार अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रही थी। दिल्ली की गरिमा बनाए रखने और लोगों के हितों की रक्षा के लिए यह अध्यादेश आवश्यक था। इतना ही नहीं, भाजपा ने यह भी साफ तौर पर कहा है कि केजरीवाल अधिकारियों पर दबाव डालकर भ्रष्टाचार के मामले को बंद करा सकते हैं। इसलिए यह अध्यादेश बेहद जरूरी था। आपको बता दें कि भाजपा केजरीवाल सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगा रही है। फिलहाल केजरीवाल सरकार में दो मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन भ्रष्टाचार के मामले को लेकर ही जेल में बंद है। 


अध्यादेश की इनसाइड स्टोरी

दिल्ली को लेकर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को लेकर अलग-अलग तरह से व्याख्या की जा रही है। पूरा का पूरा मामला दिल्ली पर नियंत्रण का है। इसके पीछे का बड़ा सवाल यही है कि आखिर दिल्ली का बॉस कौन? कुल मिलाकर देखें तो इसको लेकर राजनीति लगातार जारी रहती है। दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है। हालांकि, समय-समय पर पूर्ण राज्य की दर्जा की मांग उठती रहती है। लेकिन दुनिया में लगभग सभी देशों की राजधानी की पुलिस और जमीन केंद्र के नियंत्रण में रहता है। भारत में भी यही है। हालांकि, दिल्ली में भी भाजपा और केंद्र में भी भाजपा या दिल्ली में कांग्रेस और केंद्र में भी कांग्रेस की सरकार रहने के बावजूद भी कभी भी राजधानी को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला। दिल्ली की सरकार में उप राज्यपाल की भूमिका पहले से ही काफी अहम रही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इसको झटका लगा था। हालांकि अध्यादेश से इसे वापस लाने की कोशिश की गई है। 

 

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भाजपा की चाल

अध्यादेश को लेकर भाजपा के आलोचक साफ तौर पर कह रहे हैं कि भगवा पार्टी बैक डोर से दिल्ली को चलाना चाहती है। दिल्ली को नियंत्रित करना चाहती है। वही जो इसके पक्ष में है वह साफ तौर पर कह रहे हैं कि जब पहले से ही ऐसी पद्धति है तो अब इसका विरोध क्यों? दिल्ली के जो मुख्य काम है उसपर केजरीवाल सरकार को ध्यान देना चाहिए। इसे भाजपा की चाल के तौर पर भी देखा जा रहा है। पहले विधानसभा चुनाव और बाद में एमसीडी चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद भाजपा दिल्ली में बैकफुट पर है। किसी भी तरह से वह केजरीवाल को फ्री हैंड काम करने नहीं देना चाहती। दिल्ली में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति चलती रहे इसलिए भी यह बेहद जरूरी है। दिल्ली में सभी फाइलों की मंजूरी एलजी के जरिए ही होती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इसमें बदलाव आया था। अध्यादेश लाकर एक बार फिर से एलजी को यह अधिकार दे दिया गया है। इससे काम में देरी होगी और केजरीवाल सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों को हल्ला बोल करने का बड़ा मौका मिल सकता है। हालांकि, अध्यादेश की असली परीक्षा संसद में ही होगी। 


लेकिन यह बात तो सच है कि इसको लेकर सबके अपने-अपने दावे और राजनीति है। केजरीवाल कह रहे कि भाजपा काम करने नहीं देना चाहती। भाजपा कह रही है कि केजरीवाल असल मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहते हैं। राजनीति में जुबानी जंग कोई अंत नहीं है। जनता भी यह सब समझती है और इसी के बाद कोई फैसला लेती है। यही तो प्रजातंत्र है।

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