By रितिका कमठान | Sep 20, 2024
देश में लोन लेकर सामान खरीदना, घर से लेकर गाड़ी खरीदना काफी आम हो गया है। कर्ज लेकर सामान खरीदना एक आम चलन है जो आजकल की सोसायटी में काफी होने लगा है। इसी बीच एक ऐसा सर्वे आया है जिसमें कर्ज को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। देश में पांच में से तीन उपभोक्ताओं का कहना है कि कर्ज के लिए आवेदन में आय को बढ़ा चढ़ाकर बताना आम है।
ये काफी सामान्य बात है। ये जानकारी एक रिपोर्ट में दी गई है। वित्तीय धोखाधड़ी को लेकर लोगों की राय जानने के संबंध में ये सर्वे किया गया था। इस सर्वे में कहा गया है कि भारतीयों का मानना है कि आवास लेने या अन्य कर्ज को लेने के लिए किए गए आवेदन में जान बूझकर लोग अपनी गलत आय को प्रस्तुत करते है। ऐसा करने वालों का आंकड़ा देश में लगभग एक चौथाई है। देश में गलत आय प्रस्तुत करना काफी आम है।
रिपोर्ट की मानें तो पांच में से तीन उपभोक्ताओं का कहना है कि कर्ज लेने के लिए आवेदनों में अपनी आय को बढ़ा-चढ़ाकर बताना ठीक या सामान्य बात है। ये वैश्विक स्तर से आंकड़ा 39 फीसदी अधिक है।” जानकारी के मुताबिक ये सर्वे भारत में 1,000 लोगों पर किया गया है। इसके अनुसार आधे से ज्यादा यानी 54 प्रतिशत लोगों का मानना है कि बीमा दावों में गड़बडी करना सामान्य बात है। कई भारतीय व्यक्तिगत ऋण आवेदनों में आय को बढ़ा-चढ़ाकर बताते है। इस प्रक्रिया को करना यूजर्स द्वारा ठीक भी माना जाता है ताकि वित्तीय ईमानदारी और भी जटिल हो जाती है। केवल एक तिहाई (33 प्रतिशत) उपभोक्ताओं का मानना है कि व्यक्तिगत कर्ज आवेदन में आय को बढ़ा-चढ़ाकर बताना कभी भी स्वीकार्य नहीं है, जबकि एक तिहाई (35 प्रतिशत) इसे विशिष्ट परिस्थितियों में स्वीकार्य मानते हैं।
एफआईसीओ में जोखिम जीवनचक्र और निर्णय प्रबंधन के लिए एशिया प्रशांत क्षेत्र के प्रमुख आशीष शर्मा ने कहा, “साठ प्रतिशत से अधिक भारतीय उपभोक्ता आय को गलत बताने को स्वीकार्य या उचित मानते हैं। बैंकों को झूठे ऋणों की वास्तविक समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जो जोखिम मूल्यांकन को गलत कर सकता है और खराब ऋण दरों को बढ़ा सकता है।” सर्वेक्षण में लगभग 1,000 भारतीय वयस्कों के साथ-साथ कनाडा, अमेरिका, ब्राजील, कोलंबिया, मेक्सिको, फिलीपीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रिटेन और स्पेन के लगभग 12,000 अन्य उपभोक्ताओं को शामिल किया गया।
वैश्विक स्तर पर दृष्टिकोण उल्लेखनीय रूप से भिन्न हैं। सर्वेक्षण से पता चलता है कि अधिकांश उपभोक्ता (56 प्रतिशत) ऋण आवेदनों पर आय को बढ़ा-चढ़ाकर बताने के विचार को दृढ़ता से अस्वीकार करते हैं, इसे कभी भी इसे स्वीकार नहीं करते। रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल चार में से एक (24 प्रतिशत) इसे कुछ परिस्थितियों में स्वीकार्य मानते हैं और केवल सात में से एक (15 प्रतिशत) इसे एक सामान्य मानते हैं।