सौंदर्यीकरण के नाम पर पटनायक सरकार जगन्नाथ मंदिर को कर रही धवस्त? पुरी हेरिटेज कॉरिडोर विवाद, ASI, राज्य और अदालती कार्रवाई की पूरी डिटेल

By अभिनय आकाश | Jun 03, 2022

क्या सौंदर्यीकरण और विकास के नाम पर नवीन पटनायक की सरकार 800 साल पुराने मठ को धवस्त कर रही है। ताकी वहां शौचालय, वेटिंग रूम, वीआईपी लॉन्ज, आदि बन सके। पुरी हेरिटेज कॉरिडोर विवाद इन दिनों खूब सुर्खियों में है। ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार पर विकास के नाम पर खुदाई से जगन्नाथ मंदिर को नुकसान पहुंचने के दावे किए जा रहे हैं। 2019 के अगस्त से ये कार्य आरंभ हुआ था और अब ये मामला देश की सर्वोच्च अदालत के समक्ष भी पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा के पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में राज्य सरकार द्वारा अवैध निर्माण किए जाने का आरोप लगाने वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ओडिशा सरकार द्वारा की जा रही निर्माण गतिविधि व्यापक जनहित में है। इसके साथ ही न्यायालय ने निर्माण कार्य का विरोध करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की अवकाशकालीन पीठ ने जुर्माना लगाते हुए जनहित याचिका को खारिज कर दिया। पीठ ने स्पष्ट किया कि मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को मूलभूत सुविधाएं देने के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे आवश्यक निर्माण कार्य को रोका नहीं जा सकता। 

इसे भी पढ़ें: अगर छत्रपति शिवाजी हमारी पगड़ी हैं तो उस पर रखे ताज हैं पृथ्वीराज, जानें मोहम्मद गौरी को 17 बार हराने वाले सम्राट की अद्भुत कहानी

क्या है पुरी हेरिटेज कॉरिडोर मामला?

सुप्रीम कोर्ट में ये मामला ऐसे समय में आया है जब उड़ीसा उच्च न्यायालय पहले से ही राज्य सरकार द्वारा 800 साल पुराने पुरी जगन्नाथ मंदिर के निर्माण के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है। पुरी के निवासियों ने यह आरोप लगाते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था कि अगर मंदिर के आसपास की जमीन खोदी गई तो मंदिर की संरचनात्मक सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। पुरी में जिला न्यायालय भी निर्माण को रोकने की मांग वाले मामलों की सुनवाई कर रहा है। पिछले हफ्ते, मुख्य न्यायाधीश एस मुरलीधर और आर के पटनायक की उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने राज्य सरकार को 20 जून से पहले एक हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा था और मामले को 22 जून को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से भी दालत के समक्ष एक हलफनामा दाखिल करने और यहां तक ​​कि राज्य सरकार के साथ एक संयुक्त निरीक्षण करने के लिए कहा। एएसआई ने तब अदालत को बताया कि राज्य सरकार के पास परियोजना के लिए आवश्यक अनुमति नहीं है। एएसआई के हलफनामे के बाद विभिन्न याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया है। सुप्रीम कोर्ट इस बात की जांच कर रहा है कि क्या योग्यता के आधार पर याचिका पर सुनवाई से पहले विशेष अनुमति याचिका के जरिए इस तरह की अपील की अनुमति दी जा सकती है।

इसे भी पढ़ें: दुनिया में सबसे तेजी से दौड़ रही इंडियन इकोनॉमी, अमेरिका-चीन को भी पछाड़ा, पढ़ें भारतीय अर्थव्यवस्था का 'आर्थिक विश्लेषण'

निर्माण कार्य सवालों के घेरे में क्यों?

2016 में  महत्वाकांक्षी पुरी हेरिटेज कॉरिडोर परियोजना भाजपा और बीजेडी शासित राज्य सरकार के बीच एक राजनीतिक संघर्ष का केंद्र बन गई है। इसमें 3,200 करोड़ रुपये की लागत से पुरी का एक विरासत स्थल के रूप में पुनर्विकास शामिल है। निर्माण राज्य के निर्माण विभाग के तहत ओडिशा ब्रिज एंड कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (ओबीसीसी) द्वारा लिया गया है, जबकि टाटा प्रोजेक्ट्स इसे जमीन पर चला रहा है। इस परियोजना में मंदिर शहर के प्रमुख हिस्सों का पुनर्विकास करने वाली 22 योजनाएं शामिल हैं। काम का पहला चरण, जिसकी अनुमानित लागत 800 करोड़ रुपये है, फरवरी 2020 में शुरू हुई। इसके बाद श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) ने परियोजना के आर्किटेक्चरल डिजाइन प्लान को मंजूरी दी। इस परियोजना में श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) भवन का पुनर्विकास के तरत एक श्रीमंदिर स्वागत केंद्र (क्षमता 600); रघुनंदन पुस्तकालय सहित जगन्नाथ सांस्कृतिक केंद्र; एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र; बडाडांडा हेरिटेज स्ट्रीटस्केप; श्रीमंदिर सुविधाओं में सुधार; श्री सेतु; जगन्नाथ बल्लव तीर्थ केंद्र; बहुस्तरीय कार पार्किंग; नगरपालिका बाजार विकास; स्वर्गद्वार विकास; प्रमोद उद्यान; गुरुकुलम; महोदधि बाजार; समुद्र तट विकास; पुरी झील; मूसा नदी पुनरुद्धार योजना; अथरनाला; और सेवायतों के लिए आवास आदि शामिल है। 

इसमें एएसआई की क्या भूमिका है?

12वीं सदी का मंदिर एक केंद्रीय संरक्षित स्मारक है, जिसका संरक्षक एएसआई है। प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष (संशोधन और मान्यता) अधिनियम के अनुसार, राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) निर्माण के लिए मंजूरी देता है और यह आदेश देता है कि पुरातात्विक महत्व के किसी भी स्मारक के आसपास विकास कार्य से पहले एक विरासत प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन किया जाना चाहिए। जगन्नाथ मंदिर 43,301.36 वर्ग मीटर में फैला है। एनएमए केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत कार्य करता है। इसकी स्थापना केंद्रीय संरक्षित स्मारकों के आसपास निषिद्ध और विनियमित क्षेत्र के प्रबंधन के माध्यम से स्मारकों और स्थलों के संरक्षण और संरक्षण के लिए की गई थी।

इसे भी पढ़ें: केजरीवाल सरकार पर स्मृति ईरानी के 10 सवाल, कहा- काले धन के बड़े मालिक हैं सत्येंद्र जैन, हवाला के जरिये की मनी लॉन्ड्रिंग

एनएमए की परियोजना के बारे में क्या राय है?

4 सितंबर 2021 को एनएमए की तरफ से निषिद्ध 75-मीटर क्षेत्र के भीतर एक क्लोकरूम, एक आश्रय मंडप, तीन शौचालय, एक विद्युत कक्ष और एक फुटपाथ के निर्माण के लिए राज्य सरकार को अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) जारी किया था। एनएमए की मंजूरी इस समझ पर आधारित थी कि सार्वजनिक सुविधाएं निर्माण की परिभाषा के तहत नहीं आती हैं और यह परियोजना एएसआई की देखरेख में की जाएगी। हालांकि, एक संयुक्त निरीक्षण के बाद एएसआई के महानिदेशक वी विद्यावती ने उच्च न्यायालय के समक्ष परियोजना पर चिंता व्यक्त की। 9 मई को दायर हलफनामे में कहा गया है कि गलियारे के लिए खुदाई कार्य के कारण विरासत स्थल पर पुरातात्विक अवशेष नष्ट होने की संभावना है। 21 फरवरी कोॉ एएसआई ने राज्य सरकार को पुरी श्रीमंदिर के आसपास के विकास के लिए परियोजना की समीक्षा करने के लिए भी लिखा था। एएसआई ने अपने हलफनामे में कहा है कि परियोजना के शुरू होने से पहले कोई विरासत प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन नहीं किया गया है। कई स्थानों पर लगभग 15 से 20 फीट का स्तरीकृत जमा हुआ है, जिससे विरासत स्थल को अपूरणीय क्षति हुई है। याचिकाकर्ता ने न्यायालय से अपील की है कि वह निर्माण कार्य को रोकने और प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 का उल्लंघन करने के खिलाफ आदेश दे। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, एक स्मारक से 100 मीटर के भीतर का क्षेत्र ‘ निषिद्ध ‘ क्षेत्र जबकि 200 मीटर के भीतर ‘विनियमित’ श्रेणी के अंतर्गत आता है।

पूरे मामले पर ओडिशा सरकार का पक्ष

महाधिवक्ता अशोक कुमार पारिजा ने एनएमए द्वारा दी गई एनओसी पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि परियोजना उन मानकों से भटकी नहीं है जिन पर मंजूरी दी गई थी। उन्होंने एएसआई के हलफनामे पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का अवसर भी मांगा, जिसे अदालत ने मंजूर कर लिया। राज्य सरकार ने जस्टिस अरुण मिश्रा के 2019 के फैसले का भी हवाला दिया है जिसमें पुरी मंदिर परिसर की सुविधाओं की कमी और कुप्रबंधन को उजागर किया गया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि ये भी निर्देश दिया था कि एएसआई की तरफ से शेड / स्थायी संरचनाओं के निर्माण की योजना को तत्काल मंजूरी दी जाए जो बिल्कुल जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट में किस आधार पर किया जा रहा विरोध?

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पावनी ने कहा कि एक स्पष्ट प्रतिबंध है कि निषिद्ध क्षेत्र में कोई निर्माण नहीं हो सकता, लेकिन राज्य सरकार ने निर्माण की अनुमति तक नहीं ली। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) से अनापत्ति प्रमाणपत्र प्राप्त किया और निर्माण शुरू कर दिया। पावनी ने कहा कि एनएमए वैध प्रमाण पत्र नहीं दे सकता और यह केवल केंद्र या राज्य सरकार से संबंधित पुरातत्व निदेशक द्वारा ही दिया जा सकता है। याचिका में कहा गया है कि राज्य की एजेंसियां ​​प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 की धारा 20 ए का घोर उल्लंघन कर रही हैं। इसमें आरोप लगाया गया है कि ओडिशा सरकार अनधिकृत निर्माण कार्य कर रही है जो प्राचीन मंदिर की संरचना के लिए एक गंभीर खतरा है। वहीं, ओडिशा के महाधिवक्ता अशोक कुमार पारिजा ने कहा कि प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम के तहत प्राधिकरण एनएमए है, और ओडिशा सरकार के संस्कृति निदेशक को सक्षम प्राधिकारी के रूप में अधिसूचित किया गया है। उन्होंने कहा कि 60 हजार लोग प्रतिदिन मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं, जिनके लिए अधिक शौचालयों की आवश्यकता है। 

-अभिनय आकाश 

 

प्रमुख खबरें

Hair Growth Toner: प्याज के छिलकों से घर पर बनाएं हेयर ग्रोथ टोनर, सफेद बाल भी हो जाएंगे काले

Vivo x200 Series इस दिन हो रहा है लॉन्च, 32GB रैम के अलावा जानें पूरी डिटेल्स

Kuber Temples: भारत के इन फेमस कुबेर मंदिरों में एक बार जरूर कर आएं दर्शन, धन संबंधी कभी नहीं होगी दिक्कत

Latur Rural विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने किया दशकों तक राज, बीजेपी को इस चुनाव में अपनी जीत का भरोसा