By अंकित सिंह | Feb 05, 2024
वर्तमान में देखें तो बिहार और झारखंड के राजनीति में उठा पटक का दौर मचा हुआ है। हालांकि, झारखंड में चंपई सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार ने अपना बहुमत हासिल कर लिया है। लेकिन बिहार में बहुमत को लेकर 12 फरवरी को परीक्षण होना है। हाल में नीतीश कुमार ने महागठबंधन से नाता तोड़कर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। राज्यपाल को 128 विधायकों का समर्थन पत्र सौंपा गया था। सरकार से बाहर होने के बाद राजद के गुस्से का अंदाजा भी सभी को है। राजद लगातार नीतीश कुमार की मुश्किलें पैदा करने की कोशिश में है और लालू यादव इसके लिए रणनीति भी तैयार कर रहे हैं। यही कारण है कि बहुमत परीक्षण से पहले आरजेडी खेमे की ओर से लगातार दावा किया जा रहा है कि बिहार में खेला होगा।
वर्तमान में देखें तो सत्ता पक्ष के पास 128 विधायकों का समर्थन है। भाजपा के 78, जदयू के 45, जीतन राम मांझी की पार्टी हम के चार और एक निर्दलीय विधायक है। वहीं, दूसरी ओर महागठबंधन वाले विपक्ष में विधायकों की संख्या 115 है। यानी कि सरकार बनने से महज 7 कम की दूरी पर तेजस्वी यादव हैं। यही कारण है कि खुद तेजस्वी को सीएम बनाने के लिए लालू यादव जोड़-तोड़ की राजनीति में लगे हुए हैं। भले ही सरकार से बाहर होने के बाद राजद ने आक्रामक रवैया नहीं अपनाया है। लेकिन कहीं ना कहीं लालू यादव पर्दे के पीछे जबरदस्त तरीके से रणनीति बना रहे हैं। इसी रणनीति के तहत चार विधायकों वाली पार्टी हम के संरक्षक जीतन राम मांझी को लालू ने सीएम बनाने का निमंत्रण तक दे दिया था। ऐसे में जब तक बिहार में शक्ति परीक्षण नहीं हो जाता तब तक खेल की संभावनाएं लगातार बरकरार है।
लालू यादव के पक्ष में जो एक बात सबसे ज्यादा जा रही है वह यह है कि स्पीकर अवध नारायण चौधरी उनकी पार्टी के हैं। वहीं सरकार एनडीए की बन चुकी है। बावजूद इसके उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया है। यही कारण है कि स्पीकर के जरिए लाल यादव शक्ति परीक्षण के दौरान कुछ कूटनीति को अंजाम दिलवा सकते हैं। हालांकि, नीतीश कुमार फिलहाल अवध नारायण चौधरी को अपदस्थ करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाया जा चुका है। लोकिन जीतन राम मांझी एनडीए खेमा से नाराज दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में उनके ऊपर भी सभी की निगाहें हैं।
दावा किया जा रहा है कि लालू यादव ने जदयू के कई विधायकों से संपर्क किया है। साथ ही साथ वह जीतन राम मांझी को भी साधने की कोशिश कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि जब बहुमत परीक्षण का वक्त आएगा तो जदयू के कुछ विधायकों को लालू यादव अनुपस्थित करा सकते हैं जिससे कि बहुमत परीक्षण का आंकड़ा कम हो जाएगा और मामला उनके पक्ष में भी जा सकता है। हालांकि यह वह चर्चाएं हैं जो पूरी तरीके से राजनीतिक गलियारों में तैर रही हैं। आधिकारिक तौर पर क्या प्लान बना है, इसका खुलासा नहीं हो सका है। हालांकि सत्ता पक्ष की ओर से बार-बार यह दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस के कई विधायक उनके संपर्क में है। यही कारण है कि कांग्रेस से विधायकों को लालू यादव के कहने के बाद ही हैदराबाद शिफ्ट कर दिया गया है। अगर लालू किसी तरह की रणनीति नहीं बना रहे होते तो फिर कांग्रेस विधायकों को हैदराबाद क्यों शिफ्ट किया जाता?