तपेदिक (टीबी) की रोकथाम के लिए आमतौर पर उपयोग होने वाला बीसीजी टीका बच्चों में तो प्रभावी है, पर किशोरों और वयस्कों को सुरक्षा प्रदान करने में यह उतना प्रभावी नहीं देखा गया है। इसे ध्यान में रखते हुए भारतीय शोधकर्ता तपेदिक (टीबी) के विरुद्ध प्रभावी वैक्सीन उम्मीदवार विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं।
इस नयी पद्धति में स्वर्ण नैनो कणों पर लिपटे बैक्टीरिया से प्राप्त गोलाकार पुटिकाओं का उपयोग शामिल है, जिसे बाद में प्रतिरक्षा कोशिकाओं तक पहुँचाया जा सकता है। यह अध्ययन, बेंगलूरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। उनका कहना है कि यह पद्धति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करके बीमारी से सुरक्षा प्रदान करने में प्रभावी भूमिका निभा सकती है।
आईआईएससी के सेंटर फॉर बायोसिस्टम्स साइंस ऐंड इंजीनियरिंग (बीएसएसई) में सहायक प्रोफेसर रचित अग्रवाल, और उनकी टीम द्वारा विकसित किये गए इस संभावित सब-यूनिट वैक्सीन उम्मीदवार में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया ट्रिगर करने के लिए संक्रामक जीवाणु के केवल कुछ हिस्सों का उपयोग किया गया है। शोधकर्ताओं ने आउटर मेम्ब्रेन वेसिकल्स (OMVs) का उपयोग किया है। उनका कहना है कि आउटर मेम्ब्रेन वेसिकल्स (OMVs), कुछ बैक्टीरिया प्रजातियों द्वारा उत्पन्न गोलाकार झिल्ली से बंधे कण होते हैं, और उनमें प्रोटीन और लिपिड का वर्गीकरण होता है, जो रोगजनक बैक्टीरिया के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रेरित कर सकता है। वैज्ञानिकों ने, इससे पहले, रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया से सीमित प्रोटीन्स के आधार पर सब-यूनिट टीके विकसित किए हैं, लेकिन वे प्रभावी नहीं रहे हैं।
बैक्टीरिया-व्युत्पन्न ओएमवी आमतौर पर अस्थिर होते हैं, और अलग-अलग आकार में होते हैं, जिससे वे वैक्सीन अनुप्रयोगों के लिए अनुपयुक्त हो जाते हैं। लेकिन, आईआईएससी के शोधकर्ताओं द्वारा स्वर्ण नैनो कणों पर लेपित ओएमवी (ओएमवी-एयूएनपी) आकार में एक समान और स्थिर पाये गए हैं। उन्होंने यह भी पाया कि मानव प्रतिरक्षा कोशिकाएं अकेले ओएमवी या स्वर्ण नैनो कणों की तुलना में ओएमवी-एयूएनपी को अधिक ग्रहण करती हैं।
प्रोफेसर रचित अग्रवाल बताते हैं, "आउटर मेम्ब्रेन वेसिकल्स (OMVs) किसी जीवित बैक्टीरिया की तुलना में अधिक सुरक्षित होते हैं, और चूंकि वे झिल्ली-व्युत्पन्न हैं इसलिए उनमें सभी प्रकार के एंटीजन होते हैं।" सबयूनिट टीकों में आमतौर पर केवल सीमित संख्या में एंटीजन होते हैं - जीवाणु प्रोटीन, जो मेजबान में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्राप्त कर सकते हैं। इसके विपरीत, ओएमवी में विभिन्न प्रकार के एंटीजन होते हैं, और बेहतर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकते हैं।
इस अध्ययन में, प्रयोगशाला में कल्चर की गई प्रतिरक्षा कोशिकाओं का उपचार एक मिलती-जुलती बैक्टीरिया प्रजाति स्मेग्माटिस से प्राप्त ओएमवी से किया गया है, जो मनुष्यों में बीमारी का कारण नहीं बनती। अध्ययन के सह-लेखक एडना जॉर्ज बताते हैं - “ओएमवी-एयूएनपी को संश्लेषित करने के लिए, ओएमवी और स्वर्ण नैनो कणों को 100 एनएम फिल्टर के माध्यम से एक साथ एकीकृत किया गया है। इस प्रक्रिया में ओएमवी टूट जाते हैं, और सोने के नैनो कणों को कैप्सूलीकृत कर लेते हैं।” इस अध्ययन से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता अविजीत गोस्वामी बताते हैं, "ओएमवी का निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है, और इसे बढ़ाना चुनौतीपूर्ण था।"
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस जीवाणु के कारण होने वाला टीबी रोग दुनिया भर में हर साल दस लाख से अधिक मौतों का कारण बनता है। टीबी की रोकथाम के लिए वर्तमान में एकमात्र प्रभावी उपाय बीसीजी टीका है। इसमें रोग पैदा करने वाले जीवाणु का कमजोर रूप होता है। जब हमारे रक्त प्रवाह में यह टीका इंजेक्ट किया जाता है, तो यह एंटीबॉडी उत्पादन को ट्रिगर करता है, जो बीमारी से लड़ने में मदद कर सकता है।
भविष्य के अध्ययनों में, शोधकर्ताओं ने सीधे माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस से प्राप्त गोल्ड-कोटेड ओएमवी विकसित करने की योजना बनायी है, और नैदानिक अनुप्रयोगों के लिए परिणामों को आगे बढ़ाने के लिए पशु मॉडल पर उनका परीक्षण किया है। उनका कहना है कि इस तरह के प्रयास अन्य जीवाणु रोगों के लिए भी टीकों के विकास के लिए नये रास्ते खोल सकते हैं। यह अध्ययन, शोध पत्रिका बायोमैटेरियल्स एडवांस में प्रकाशित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)