ग्लियोब्लास्टोमा मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में आक्रामक रूप से बढऩे वाला ट्यूमर है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ताओं ने मशीन लर्निंग-आधारित नया कम्प्यूटेशनल उपकरण विकसित किया है, जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में कैंसर पैदा करने वाले ट्यूमर का सटीक रूप से पता लगा सकता है।
प्रारंभिक निदान के बाद दो साल से भी कम समय तक जीवित रहने की संभावित दर और सीमित चिकित्सीय विकल्प वाले इस ट्यूमर को समझने के लिए अन्य कई शोध हुए हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि चिकित्सीय विकल्पों में सुधार के लिए ग्लियोब्लास्टोमा में शामिल प्रोटीन रूपों के कार्यात्मक परिणामों का मूल्यांकन महत्वपूर्ण हो सकता है। विभिन्न प्रोटीन रूपों में ड्राइवर (रोगजनक) म्यूटेशन की पहचान के लिए कार्यात्मक परीक्षण कारगर हो सकते हैं।
नए कम्प्यूटेशनल उपकरण जीबीएम ड्राइवर (ग्लियोब्लास्टोमाम्यूटीफार्म ड्राइवर्स) को विशेष रूप से ग्लियोब्लास्टोमा में ड्राइवर म्यूटेशन और पैसेंजर म्यूटेशन (पैसेंजर म्यूटेशन तटस्थ म्यूटेशन होते हैं) की पहचान के लिए विकसित किया गया है। जीबीएम ड्राइवर एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि इसको ऑनलाइन देखा जा सकता है।
इस वेब सर्वर को विकसित करने के लिए अमीनो एसिड गुणों, द्वि-पेप्टाइड और त्रि-पेप्टाइड रूपांकनों, संरक्षण स्कोर, और विशिष्ट स्कोरिंग मैट्रिक्स जैसे कई कारकों को केंद्र में रखा गया है।
इस अध्ययन में, ग्लियोब्लास्टोमा में 9,386 ड्राइवर म्यूटेशन और 8,728 पैसेंजर म्यूटेशन का विश्लेषण किया गया है। ग्लियोब्लास्टोमा में ड्राइवर म्यूटेशन की पहचान 1,809 म्यूटेंट के ब्लाइंड सेट में 81.99 प्रतिशत की सटीकता के साथ की गई है, जिसे मौजूदा कम्प्यूटेशनल तरीकों से बेहतर बताया जा रहा है। यह विधि पूरी तरह से प्रोटीन अनुक्रम पर आधारित है।
आईआईटी मद्रास के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के शोधकर्ता प्रोफेसर एम. माइकल ग्रोमिहा बताते हैं – इस अध्ययन में, कैंसर पैदा करने वाले रूपांतरणों की पहचान के लिए महत्वपूर्ण अमीनो एसिड विशेषताओं को आधार बनाया गया है। ड्राइवर तथा तटस्थ म्यूटेशन के बीच अंतर करने के लिए उच्चतम सटीकता प्राप्त करने में भी शोधकर्ताओं को सफलता मिली है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह उपकरण ग्लियोब्लास्टोमा में ड्राइवर म्यूटेशन का पता लगा सकता है, और संभावित चिकित्सीय लक्ष्यों की पहचान में सहायता कर सकता है। इस प्रकार यह उपकरण दवा डिजाइन से रणनीतियों को विकसित करने में भी मददगार हो सकता है।
प्रोफेसर ग्रोमिहा के अलावा, इस अध्ययन में आईआईटी मद्रास की पीएचडी छात्रा मेधा पाँडेय, और आईआईटी मद्रास के दो पूर्व छात्र- डॉ पी. अनुषा, जो वर्तमान में अमेरिका की ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में कार्यरत हैं, और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ, अमेरिका में कार्यरत डॉ धनुषा येशुदास शामिल हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका ब्रीफिंग्स इन बायोइन्फोर्मेटिक्स में प्रकाशित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)