आज विश्वकर्मा पूजा है, हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा पूजा में विशेष महत्व होता है, तो आइए हम आपको विश्वकर्मा की पूजा विधि और महत्व के बारे में बताते हैं।
जानें विश्वकर्मा पूजा के बारे में
वास्तुकला के देवता विश्वकर्मा भगवान वास्तुदेव और अंगिरसी के बेटे हैं। देश के कुछ इलाकों में यह माना जाता है कि हिन्दी तिथि के अनुसार अश्विन मास की प्रतिपदा को भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। लेकिन यह एक ऐसी पूजा है जो सूर्य के पारगमन के आधार पर निर्धारित होती है। इसलिए हर साल विश्वकर्मा पूजा 17 सितम्बर को मनाया जाता है।
विश्वकर्मा पूजा से जुड़ी पौराणिक कथाएं
भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। वराह पुराण के अनुसार ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया। वहीं विश्वकर्मा पुराण के अनुसार, आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की। भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से भी जोड़ा जाता है।
इस तरह भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में जो कथाएं मिलती हैं, उससे ज्ञात होता है कि विश्वकर्मा एक नहीं कई हुए हैं और समय-समय पर अपने कार्यों और ज्ञान से वो सृष्टि के विकास में सहायक हुए हैं। शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा के इस वर्णन से यह संकेत मिलता है कि विश्वकर्मा एक प्रकार का पद और उपाधि है, जो शिल्पशास्त्र का श्रेष्ठ ज्ञान रखने वाले को कहा जाता था। सबसे पहले हुए विराट विश्वकर्मा, उसके बाद धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी, तब सुधान्वा विश्वकर्मा हुए। फिर शुक्राचार्य के पौत्र भृगुवंशी विश्वकर्मा हुए। मान्यता है कि देवताओं की विनती पर विश्वकर्मा ने महर्षि दधीची की हड्डियों से स्वर्गाधिपति इंद्र के लिए एक शक्तिशाली वज्र बनाया था।
विश्वकर्मा पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री
विश्वकर्मा पूजा में सुपारी, रोली, पीला अष्टगंध चंदन, हल्दी, लौंग, मौली, लकड़ी की चौकी,
पीला कपड़ा, मिट्टी का कलश, नवग्रह समिधा, जनेऊ, इलायची, इत्र, सूखा गोला, जटा वाला नारियल, धूपबत्ती, अक्षत, धूप, फल, मिठाई, बत्ती, कपूर, देसी घी, हवन कुण्ड, आम की लकड़ी, दही तथा फूल उपयोग होता है।
विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त
विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त- 17 सितंबर को सुबह 07 बजकर 39 मिनट से सुबह 09 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। इसके बाद दूसरा शुभ समय दोपहर 01 बजकर 48 मिनट से दोपहर 03 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। दोपहर 03 बजकर 20 मिनट से शाम 04 बजकर 52 मिनट तक शुभ समय रहेगा।
विश्वकर्मा भगवान के जन्म की कथा
एक कथा में कहा गया है कि सृष्टि की रचना के समय भगवान विष्णु सागर में प्रकट हुए। विष्णु जी के नाभि-कमल से ब्रह्मा जी दृष्टिगोचर हुए थे। ब्रह्मा के पुत्र "धर्म" की शादी "वस्तु" से हो गयी। विवाह के उपरान्त धर्म के सात पुत्र हुए इनमें से सातवें पुत्र का नाम 'वास्तु' रखा गया, जो शिल्पशास्त्र की कला से निपुण थे। 'वास्तु' के विवाह के पश्चात एक पुत्र हुआ जिसका नाम विश्वकर्मा रखा गया, जो वास्तुकला के अद्वितीय गुरु बने।
भगवान विश्वकर्मा ने बनायी हैं ये चीजें
भगवान विश्वकर्मा को देव शिल्पी भी कहा जाता है। भगवान विश्वकर्मा को देव शिल्पी भी कहा जाता है। उन्होंने सतयुग में स्वर्गलोक बनाया और त्रेतायुग में सोने की लंका भी बनायी। द्वापर युग में द्वारिका और कलियुग में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा बनायी। इसके साथ ही बलभद्र एवं सुभद्रा की विशाल मूर्तियों का निर्माण करने के साथ ही यमपुरी, पांडवपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, शिवमंडलपुरी तथा सुदामापुरी इत्यादि का भी निर्माण किया। इसके अलावा ऋग्वेद में इनके महत्व के वर्णन में 11 ऋचाएं भी लिखी गयी।
पूजा की विधि
विश्वकर्मा पूजा के दिन भगवान विश्वकर्मा की बहुत धूमधाम से पूजा होती है। इसके लिए सबसे पूजा सामग्री जैसे अक्षत, फूल, चंदन, मिठाई, रक्षासूत्र, दही, रोली, सुपारी, धूप और अगरबस्ती की व्यवस्था कर लें। फैक्टरी, वर्कशॉप या आफिस की सफाई कर पत्नी सहित पूजा पर बैठ जाएं। इसके बाद कलश स्थापित करें और विधिवत विश्वकर्मा भगवान की पूजा करें। भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है और बिना किसी परेशानी के सभी काम पूरे हो जाते हैं।
इन राज्यों में भी होती है विश्वकर्मा पूजा
विश्वकर्मा भगवान की पूजा वैसे तो पूरे भारत में होती है लेकिन देश में बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और महाराष्ट्र में विशेष रूप से मनायी जाती है। कारीगर मानते हैं कि इस दिन विश्वकर्मा भगवान की पूजा करने से साल भर काम अच्छे से चलता है। काम के समय मशीने कभी भी धोखा नहीं देती है। इसलिए विश्वकर्मा पूजा के दिन मशीने रोक कर सभी औजारों की पूजा होती है।
विश्वकर्मा पूजा महत्व
भगवान विश्वकर्मा ब्रह्मा जी के मानस पुत्र माने जाते हैं। मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से तमाम इंजीनियर, मिस्त्री, वेल्डर, बढ़ई, जैसे कार्य से जुड़े लोग अधिक कुशल बनते हैं। शिल्पकला का विकास होता है। कारोबार में बढ़ोत्तरी होती है साथ ही धन-धान्य और सुख-समृद्धि का आगमन होता है। भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला बड़ा इंजीनियर माना जाता है। इस दिन दुकान, वर्कशाप, फैक्ट्री में यंत्रों और औजारों की पूजा करने से कार्य में कभी कोई रुकावट नहीं आती और खूब तरक्की होती है। कहते हैं कि भगवान विश्वकर्मा ने स्वर्ग लोक, सोने की लंका, द्वारिका और हस्तिनापुर का निर्माण किया था।
- प्रज्ञा पाण्डेय