By शुभा दुबे | Feb 11, 2021
कार्तिक मास के समान ही पुण्य माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। मौनी अमावस्या वह खास दिन है जब पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है इसलिए इस दिन प्रयागराज में श्रद्धालुओं की भीड़ एक दिन पहले ही उमड़ पड़ती है और भीषण ठंड के बावजूद अर्धरात्रि से ही स्नान शुरू हो जाता है। इस वर्ष यह पर्व 11 फरवरी को पड़ रहा है। प्रयागराज में साधु-संत तो पूरे माघ माह में संगम तट पर ही कुटिया बनाकर रहते हैं और रोजाना त्रिवेणी में स्नान और पूजन-अर्चन करते हैं। इस बार कोरोना के चलते पहले जैसी छूटें तो नहीं हैं लेकिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ फिर भी उमड़ रही है। मौनी अमावस्या को योग पर आधारित महाव्रत भी कहा जाता है।
मौनी अमावस्या का महत्व
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि यदि मौन अमावस्या सोमवार को पड़ रही हो और उस समय प्रयागराज में महाकुम्भ भी लगा हो तो वह सबसे उत्तम है। इस पर्व को मौनी अमावस्या इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन संतों की तरह शांत रह कर ईश्वर का नाम जपना चाहिए। शास्त्रों में तो मौनी अमावस्या के बारे में यहाँ तक कहा गया है कि सतयुग में तप से, द्वापर में हरि भजन से, त्रेता युग में ज्ञान से और कलियुग में दान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वही पुण्य प्रत्येक युग में माघ मास में यदि संगम स्नान कर लिया जाये तो भी प्राप्त होगा। इसके साथ ही यदि आप भगवान श्रीविष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो मौनी अमावस्या के दिन यदि दिन तिल या उससे बनी वस्तुओं का दान अवश्य करें। ऐसा करने से अनिष्ट ग्रहों की पीड़ा का शमन होता है और पूरे वर्ष घर में सुख शांति रहती है। यदि आप पितृदोष का निवारण करना चाहते हैं तो भी यह दिन सबसे उत्तम है।
मौनी अमावस्या पूजन
इस दिन सुबह नित्यकर्म से निवृत्त होने के बाद गंगा अथवा किसी भी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि यह संभव नहीं हो तो घर में नहाने के पानी में गंगा जल मिलाया जा सकता है। स्नान के पश्चात अपने सामर्थ्य के अनुसार अन्न, वस्त्र, गौ, भूमि, धातु या जो भी दान करना चाहें, उसका दान अवश्य करें। याद रखें मौनी अमावस्या पर किये गये दान से अपार पुण्य मिलता है। इस दिन संभव हो तो पूरे दिन मौन रहकर हरि पूजन करें, यदि यह संभव नहीं हो तो जितना हो सके उतना मौन रह कर ईश्वर का ध्यान करें। इस दिन अपनी जुबान से किसी के लिए भी कोई गलत शब्द नहीं निकालें। मौनी अमावस्या के दिन भगवान श्रीविष्णु और भगवान श्रीशिव का पूजन करना चाहिए। पूजन के पश्चात पीपल देवता को अर्घ्य देकर वृक्ष की परिक्रमा करें और उसके बाद दीप दान करें। यदि आप इस दिन फलाहारी व्रत रख सकते हैं तो यह अच्छा होगा और यदि ऐसा संभव नहीं हो तो मीठा भोजन ही करें।
मौनी अमावस्या कथा
कांचीपुरी में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात बेटे तथा एक बेटी थी। बेटी का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने सातों पुत्रों का विवाह करके बेटी के लिए वर की खोज में सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसी दौरान पंडित ने पुत्री की जन्मकुंडली देखी और कहा सप्तपदी होते होते यह कन्या विधवा हो जाएगी। तब ब्राह्मण ने पूछा पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण कैसे होगा? इस प्रश्न के उत्तर में पंडित ने बताया कि सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा। फिर सोमा का परिचय देते हुए उसने बताया कि वह एक धोबिन है। उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है। जैसे भी हो सोमा को प्रसन्न करो तथा गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहां बुला लो। तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिंहल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया। सागर पार करने की चिंता में दोनों भाई बहन एक पेड़ की छाया में बैठ गये। उस पेड़ पर एक गिद्ध परिवार रहता था। उस समय घोंसले में सिर्फ गिद्ध के बच्चे थे जो दोनों भाई बहन के क्रियाकलापों को देख रहे थे।
सायंकाल के समय उन बच्चों की मां आई तो उन्होंने भोजन नहीं किया। वे मां से बोले कि नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे प्यासे बैठे हैं जब तक वे कुछ नहीं खा लेते तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे। तब दया से भरकर गिद्ध माता उनके पास गईं और बोलीं कि मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है। यहां जो भी फल कंदमूल मिलेगा मैं ले आती हूं आप भोजन कर लीजिए। मैं प्रातःकाल आपको सागर पार कराकर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी। वे गिद्ध माता की सहायता से सोमा के यहां जा पहुंचे और उसकी सेवा में लग गये। वे नित्य प्रातः उठकर सोमा का घर झाड़कर लीप देते थे। एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा कि हमारे घर को कौन बुहारता है, कौन लीपता पोतता है? सबने कहा कि हमारे सिवा और कौन इस काम को करने आएगा? मगर सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन उसने यह रहस्य जानना चाहा। वह सारी रात जागी और सब कुछ प्रत्यक्ष देख लिया।
ब्राह्मण पुत्र पुत्री द्वारा घर के लीपने की बात को जानकर उसे बड़ा दुख हुआ। सोमा का बहन भाई से वार्तालाप हुआ। भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी। सोमा ने उनकी श्रम साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने और कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दिया। मगर भाई ने उससे तुरंत ही अपने साथ चलने का आग्रह किया। तब सोमा उनके साथ ही चल दी। चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा कि मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहान्त हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इंतजार करना। फिर क्षण भर में सोमा भाई बहन के साथ कांचीपुरी पहुंच गई। दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया तो तुरंत ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीष देकर अपने घर चली गई। उधर गुणवती को पुण्य फल देने से सोमा के पुत्र, जमाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए अश्वत्थ वृक्ष की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं कीं। इसके पूर्ण होने पर उसे परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे।
-शुभा दुबे