Matrubhoomi: जेम्स बॉन्ड नहीं यह हैं रियल जासूस, गुरदासपुर के दादवान में मिलती हैं जासूसों की कई कहानियां

By अनुराग गुप्ता | Apr 28, 2022

अक्सर फिल्मों में दिखाया जाता है कि जासूसों की जिंदगी बड़ी शानो शौकत वाली होती है और हमने ब्रिटिश जासूस 'जेम्स बॉन्ड' और मिशन इम्पॉसिबल जैसी फिल्मों में देखा है कि जासूसों के काम करने के तरीकों को... लेकिन क्या जासूस ऐसे ही होते हैं... ऐसे में आज हम बात करेंगे 'जासूसों के गांव' के बारे में... जिनकी कई कहानियां हमें सुनाई देती हैं... लेकिन सत्य, कल्पना से भी परे है... जासूसों की जिंदगी रोमांचकारी तो होती ही है साथ ही साथ चुनौतीपूर्ण भी होती है। 

इसे भी पढ़ें: Matrubhoomi: भारत के इन प्रसिद्धों व्यंजनों की दुनिया है दीवानी ! बहुत दिलचस्प है इनका इतिहास 

हमने आपको अंग्रेजी फिल्मों के माध्यम से जासूसों के बारे में बताया लेकिन भारत में भी जासूसी पर आधारित फिल्में बनी हैं। जिनमें एक था टाइगर भी शामिल है... खैर यह तो अलग बात है और हम आपको जासूसों के गांव पर आधारिक कहानी बताने जा रहे हैं।

जैसा कि हमने फिल्मों में भी देखा है और यह सत्य आधारित घटनाएं भी हैं... अगर कोई जासूस पकड़ा जाता है तो उससे संबंधित देश यह मानने से इनकार कर देता है कि जासूस उनका है... या उनके द्वारा भेजा गया है और यही तो खेल का नियम है... गुप्त तरीके से अपने काम को अंजाम देना और अपने मुल्क को आने वाली समस्याएं से उबारना... वो भी बिनी किसी की नजर में आए हुए...

शातिर जासूस था सतपाल

अपने मुल्क हिंदुस्तान की हिफाजत के लिए शातीर अंदाज में जासूसी करने वाले सतपाल को पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की चप्पे-चप्पे की जानकारी थी। एक दफा उनके बेटे सुरिंदर पाल सिंह ने बताया था कि उनके पिता ने मौत के मुंह में रहते हुए अपने वतन के लिए 14 साल तक काम किया था और कभी पाकिस्तान के हाथ भी नहीं आए थे।

सतपाल ने 17 मई, 2000 को आखिरी बार भारत-पाकिस्तान की सीमा क्रास की। उस वक्त उनके शरीर को पाकिस्तानी सैनिकों ने एम्बुलेंस से बाहर निकाला और बाघा बॉर्डर पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को सौंप दिया था। उस वक्त उनका शरीर फटे-पुराने सफेद कपड़े में लिपटा हुआ था। सतपाल के परिवार ने जब उनके शरीर को अमृतसर में देखा तो कपड़ो पर तिंरगा लिपटा हुआ था और वो भी खून से लाल हो चला था।

सतपाल के मृत्यु प्रमाण पत्र के मुताबिक, उन्हें गर्दन में अकड़न, बुखार, उनींदापन और भ्रम की समस्या के साथ 25 फरवरी, 2000 को लाहौर के सर्विसेस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था और इसके पांच दिन बाद 1 मार्च, 2000 को ट्यूबरकुलर मेनिनजाइटिस के चलते उनकी मौत हो गई। लेकिन क्या यही सच्चाई थी ? सतपाल का परिवार भी मृत्यु प्रमाण पत्र में लिखी हुई बातों पर यकीन नहीं करता है। 

इसे भी पढ़ें: Matrubhoomi: ऐसा रहा है भारतीय कॉटन का इतिहास, समय के साथ आधुनिक होते गए हमारे कपड़े, प्रतिबंधों के बावजूद होता था निर्यात 

एक रिपोर्ट के मुताबिक, सतपाल के शव को लेने वाले उनके भाई धर्मपाल को मृत्यु प्रमाण पत्र की कहानी पर भरोसा नहीं था। परिवार के मुताबिक सतपाल के शरीर में तीन घाव के निशान थे और उनकी सारी उंगलियां काट दी गई थी। जबकि बेटे सुरिंदर पाल सिंह का कहना था कि पिताजी के शरीर पर यातना के निशान थे।

सतपाल खुफिया एजेंसी के लिए मुखबिर का काम कर रहे थे... मुखबिर यानी की जासूस का। उत्तर पश्चिमी पंजाब के सीमावर्ती जिले गुरदासपुर की महज यह एक कहानी थी। ऐसी सैकड़ों कहानियां सुनाई और उसके साक्ष्य दिखाई पड़ते हैं।

1950 के दशक से भारतीय खुफिया एजेंसियां ​​गरीब, बेरोजगार ग्रामीणों को काम की पेशकश करती थी और उनसे जासूसों वाला काम कराया करती थी। 1965, 1971 और 1999 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तो जासूसों की बड़ी संख्या में भर्ती की गई थी। हालांकि बहुत से जासूसों ने पाकिस्तान की जेलों में दम तोड़ दिया तो कुछ लोगों का जीवन गरीबी में गुजर गया और उन्हें सरकार से थोड़ा बहुत मुआवजा भी मिला लेकिन जीवनयापन के लिए वह काफी कम था।

दादवान: भारत के जासूसों का गांव

बीएसएफ, मिलिट्री इंटेलिजेंस, रॉ और आईबी द्वारा तैयार किए गए सतपाल जैसे पुरुषों को पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों के बारे में रणनीतिक जानकारी खोजने का काम सौंपा गया था। इसके लिए गुरदासपुर के दादवान गांव को चुना गया था, जहां से भारी संख्या में लोगों को जासूस बनाया गया।

जासूसों के गांव के नाम से जाना जाने वाला दादवान में सतपाल का घर था। दादवान और गुरदासपुर जिले के कई लोगों ने पाकिस्तानी जेलों में अपनी जिंदगियां गुजार दी और उनसे से करीब-करीब सभी को भारत सरकार ने स्वीकारने से इंकार कर दिया। खुफिआ एजेंसियों ने इस जासूसों को अपना मानने से इनकार किया और यह तो खेल का नियम ही है। 

इसे भी पढ़ें: Matrubhoomi: ऐसे बनाया गया था भारत का पहला डिजिटल कंप्यूटर, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था नामकरण 

फिरोजपुर, जम्मू और पड़ोसी क्षेत्रों में रहने वाले अस्वीकृत जासूसों ने 'जासूस संघ' का भी गठन किया, जो सरकार से मुआवजे की मांग कर रहा है। इनका कहना है कि यह लोग भी सैनिकों की तरह मुआवजे और कृतज्ञता के हकदार हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, दादवान के लगभग हर घर में एक भाई या पिता ऐसा होता है जो एक खुफिया एजेंसी के लिए काम करता है। आईबी के एक पूर्व अधिकारी का कहना था कि इनकी कोई आधिकारिक संख्या नहीं है, क्योंकि उनमें से ज्यादातर ऑफ द बुक हैं।

हर साल अज्ञात संख्या में मुखबिर भारत-पाकिस्तान सीमा पार करते हैं और अनिश्चितकाल के लिए पाकिस्तानी जेल में बंद हो जाते हैं। कई तस्करों के रूप में शुरुआत करते हैं लेकिन हमेशा दोनों तरफ से पकड़े जाते हैं। अक्सर पाकिस्तानी अधिकारियों तस्करों को जानकारी एकत्रित करने के लिए पकड़ लेते हैं और उन्हें प्रताड़ित करते हैं। ऐसे में टॉर्चर के पुराने तरीके आजमाए जाते हैं और आप लोगों ने अक्सर फिल्मों में देखा भी होगा। जिनमें कम रोशनी वाले एक छोटे से कमरे में कैद करना इत्यादि शामिल है।

पूर्व मुखबिर और सुरिंदरपाल के पड़ोसी 57 वर्षीय सुनील मसीह ने बताया था कि मैंने आठ या दस महीने तक सूरज नहीं देखा। हालांकि पाकिस्तान की जेल में 8 साल तक सजा काटने के बाद सुनील मसीह को 2006 में स्वदेश भेज दिया गया था। लेकिन सभी मुखबिरों को अपना वतन नसीब नहीं होता।

यहां भी कैदियों की स्थिति बेहतर नहीं

रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत का भी अपने कैदियों के साथ क्रूरता करने का इतिहास रहा है। भारत में पाकिस्तानी कैदियों के इलाज की कोई आधिकारिक रिपोर्ट नहीं है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि भारतीय कैदियों की स्थिति बेहतर नहीं है। राष्ट्रीय रिकॉर्ड अपराध ब्यूरो के अनुसार 2010 से 2015 के बीच पुलिस हिरासत में 591 लोगों की मौत हुई। ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि ये मौतें यातना का प्रत्यक्ष परिणाम हैं।

एक दफा एक अधिकारी ने बताया था कि जितनी अच्छी जानकारी होगी, इनाम उतना ही ज्यादा होगा। मतलब साफ था मुखबिरों को दुश्मनों के इलाके में अंदर तक जाकर जानकारी बटोरनी है, लेकिन ऐसा करने में पकड़े जाने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। 

इसे भी पढ़ें: Matrubhoomi: दुर्गाबाई देशमुख ने संविधान सभा में उठाई थी महिलाओं के हक की आवाज 

आखिरी मिशन पर पकड़ा गया था सतपाल

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, सतपाल अपने आखिरी मिशन पर 26 नवंबर, 1999 को पकड़ा गया था। उस वक्त पाकिस्तानी अधिकारियों ने सतपाल को कश्मीर सीमा के पास पकड़ा था और उस पर तस्करी करने और अवैध तरीके से सीमा पार करने का आरोप लगाया था। आपको बता दें कि सतपाल कथित तौर पर कूरियर का काम कर रहे थे। पाकिस्तानी अधिकारियों ने सतपाल को पकड़कर लाहौर की कोट लकपत जेल में डाल दिया। यह वही जेल है जहां पर रॉ के कथित मुखबिर सरबजीत सिंह को रखा गया था और उन पर फिल्म भी बन चुकी है।

सतपाल के परिवार को महीनों तक उसके पकड़े जाने की कोई जानकारी नहीं थी। उस वक्त सतपाल भी दादवान और गुरदासपुर के लापता लोगों की सूची में शामिल हो चुका था और फिर सीधा सतपाल के परिवार को उसका पार्थिव शरीर मिला। जिसे देखकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई।

प्रमुख खबरें

Custard Apple for Winter: रोज खाएंगे शरीफा, तो बीमारियां होगी दूर, मिलेंगे अनगिनत लाभ

दुआ लीपा के मुंबई कॉन्सर्ट में वायरल Levitating x Shah Rukh Khan mashup के दौरान आतिशबाजी हुई, फैंस ने दिखाया जोश

Maharashtra Politics । सीएम पर सस्पेंस बरकरार, Eknath Shinde ले सकते हैं बड़ा फैसला

Vijaya Lakshmi Pandit Death Anniversary: ब्रिटिश शासन में विजयलक्ष्मी पंडित को मिला था मंत्री का पद, जानिए रोचक बातें