By एकता | Oct 09, 2024
बंगाल में दुर्गा पूजा की अलग ही छटा देखने को मिलती है। यहां दुर्गा पूजा के बड़े बड़े और भव्य पंडाल लगाये जाते हैं, जो देशभर के श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं। बंगाल के दुर्गा पंडालों के अलावा यहां का सिंदूर खेला भी देशभर में मशहूर है। सिंदूर खेला बंगालियों का एक विशेष अनुष्ठान है, जो विजयादशमी पर विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है। इस साल, सिंदूर खेला 13 अक्टूबर को मनाया जाएगा, जो दुर्गा पूजा का आखिरी दिन है।
विजयादशमी पर विवाहित महिलाएं एकत्रित होती हैं और देवी दुर्गा को सिंदूर लगाती है। देवी दुर्गा के बाद महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद देती हैं। बता दें, ये अनुष्ठान स्त्री शक्ति का प्रतीक है, जो समृद्धि, खुशी और नई शुरुआत की शुरुआत माना जाता है।
सिंदूर खेला का इतिहास और महत्व बंगाली हिंदू संस्कृति और दुर्गा पूजा की समृद्ध परंपराओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसका आरंभ कब हुआ, इस पर कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, लेकिन यह सदियों पुरानी एक प्राचीन परंपरा है, जिसका उद्देश्य समाज में महिलाओं की भूमिका को सशक्त और सम्मानित करना है। इसका धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टिकोण से गहरा महत्व है।
सिंदूर खेला का इतिहास
पौराणिक कथा: सिंदूर खेला की उत्पत्ति का संबंध हिंदू पौराणिक कथाओं से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि देवी दुर्गा अपने बच्चों (लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश, और कार्तिकेय) के साथ हर साल अपने मायके (पृथ्वी लोक) आती हैं, और विजयादशमी के दिन वह अपने पति शिव के साथ वापस कैलाश पर्वत लौटती हैं। देवी को विदाई देने की रस्म के तौर पर यह परंपरा शुरू हुई थी।
सौभाग्य का प्रतीक: बंगाल में, विवाहित महिलाओं के लिए सिंदूर सौभाग्य, दीर्घायु, और सुखी वैवाहिक जीवन का प्रतीक है। इस परंपरा को निभाने का उद्देश्य देवी से यही आशीर्वाद प्राप्त करना होता है।
सामाजिक दृष्टिकोण: परंपरागत रूप से सिंदूर खेला केवल विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता था और इसका प्रमुख उद्देश्य पति की लंबी उम्र और परिवार की समृद्धि की कामना करना था। धीरे-धीरे यह रस्म महिलाओं के बीच सामुदायिक एकजुटता का प्रतीक बन गई।
सिंदूर खेला का महत्व
सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक: सिंदूर खेला में सिंदूर को सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। महिलाएँ इसे लगाकर और बांटकर देवी दुर्गा से अपने परिवार के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करती हैं।
समुदाय की एकता: इस रस्म के दौरान महिलाएँ एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर आपसी भाईचारे और सामूहिक खुशी को बढ़ावा देती हैं। यह एक सामाजिक और सामुदायिक परंपरा है जो महिलाओं को एक साथ लाती है।
सांस्कृतिक पहचान: सिंदूर खेला बंगाली संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो बंगाल की समृद्ध परंपराओं और रीति-रिवाजों को जीवित रखता है। इसे बंगाल के बाहर भी बंगाली समुदायों में धूमधाम से मनाया जाता है।
सांस्कृतिक परंपरा और त्योहार का समापन: दुर्गा पूजा के उत्सव के अंतिम दिन विजयादशमी पर सिंदूर खेला से देवी दुर्गा को विदा किया जाता है। यह त्योहार के समापन का भावुक लेकिन उल्लासपूर्ण क्षण होता है, जिसमें परिवार की महिलाएँ देवी के साथ अपने रिश्ते को सम्मानित करती हैं।