कांग्रेस के लिए बिहार से ज्यादा मध्य प्रदेश महत्वपूर्ण, सिंधिया के प्रभाव को कम करने के लिए झोंकी ताकत

By अनुराग गुप्ता | Oct 20, 2020

भोपाल। विवादों में घिरे मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने माफी मांग ली है और अपनी पूरी ताकत विधानसभा की 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए झोंक दी है। एक तरफ बिहार में तेजस्वी यादव के साथ गठबंधन का हिस्सा बनी कांग्रेस के सामने चुनौतियों का अंबार है। जहां पर तेजस्वी के नेतृत्व पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया जा चुका है। वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपना पूरा ध्यान मध्य प्रदेश की तरफ कर रखा है। 

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कांग्रेस की प्रतिष्ठा का सवाल

मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा ने जिन 25 लोगों को अपना उम्मीदवार बनाया है वो कांग्रेस छोड़कर पार्टी में शामिल हुए हैं और इन्हीं विधायकों की वजह से ही प्रदेश की कमलनाथ सरकार गिर गई। जिसके बाद शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन गए। जबकि तीन सीटें विधायकों की मृत्यु की वजह से खाली है। जानकारों की मानें तो इस उपचुनाव में कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

बता दें कि मध्य प्रदेश में विधानसभा की 230 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की आवश्यकता होती है। लेकिन 28 सीटें खाली होने की वजह से सदन की शक्ति घटकर 202 हो गई है। ऐसे में भाजपा के पास 107, कांग्रेस के पास 88, बसपा के पास 2, सपा के पास 1 और 4 निर्दलीय विधायक हैं। 

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कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंकी

कांग्रेस ने यदि दिल्ली से लेकर मध्य प्रदेश तक की पूरी ताकत 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए झोंकी है तो उसके पीछे का कारण स्पष्ट है। जानकार बताते हैं कि जिन इलाकों पर उपचुनाव हो रहे हैं उनका एक बड़ा हिस्सा सिंधिया परिवार के दबदबे वाला है और यह तो किसी से छिपा ही नहीं है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद सिंधिया समर्थकों ने कमलनाथ का साथ छोड़ दिया था।

दरअसल, पहले 22 विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा था और बाद में 3 और विधायकों ने पद से इस्तीफा दे दिया था। जिसका मतलब है कि कांग्रेस के कुल 25 विधायक कांग्रेस से ज्यादा ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति निष्ठावान थे। 

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जानकार बताते हैं कि सिंधिया परिवार के दबदबे वाली सीटों पर किसे चुनाव लड़ाया जाए यह खुद सिंधिया परिवार ही तय करता है। बाकी पार्टी का काम अंतिम मुहर लगाने का होता है और यह उपचुनाव में दिखाई भी दे रहा है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराना चाहती है कांग्रेस

कांग्रेस अपने पुराने साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया को उपचुनाव में हराना चाहती है। कांग्रेस का मानना है कि उपचुनाव की अधिक-से-अधिक सीटों पर जीत दर्ज किया जाए। ऐसे में भाजपा की हार होगी और भाजपा की हार का मतलब ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार है। हालांकि दोनों ही पार्टियां सभी सीटों पर जीत का दावा कर रही हैं। 

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सत्ता में बने रहने के लिए 9 सीटों की जरूरत

कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत इसलिए भी झोंक दी है ताकि वह सिंधिया के दबदबे वाले इलाके से उनकी पैठ को कम कर सके और ऐसा होता है तो कांग्रेस इन इलाकों से और भी ज्यादा मजबूत होकर निकलेगी। जबकि भाजपा के शिवराज सिंह चौहान को अपनी सरकार बचाने के लिए 28 सीटों में से 9 सीटें जीतने की जरूरत है और सिंधिया का साथ उनकी इस योजना को पूरा करने में मदद कर रही है। अगर किसी की राह मुश्किल दिखाई दे रही है तो वह कांग्रेस की ही है।

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