विधानसभा चुनाव बिहार में हो रहे हैं लेकिन सक्रियता उत्तर प्रदेश में बढ़ी हुई है। शराब तस्करों और अवैध हथियार के सौदागरों के अचानक ‘अच्छे दिन आ गए’ हैं। बिहार में शराब और हथियार दोनों की ही मांग तेज हुई तो यूपी के शराब माफिया मौके का फायदा उठाने के लिए मैदान में कूद पड़े। यूपी-बिहार सीमा से सटे आधा दर्जन से अधिक जिलों में शराब तस्करों और अवैध हथियारों की खेप कभी पकड़ी जाती है तो कभी पुलिस गच्चा खा जाती है तो ‘माल’ अपने ठिकाने पर पहुंच जाता है। नदी व पगडंडी के रास्ते बिहार में हथियार एवं शराब भेजी जा रही है। इस बात की भनक यूपी पुलिस को भी है। इसीलिए कुशीनगर, देवरिया, बलिया, चंदौली, गाजीपुर, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज आदि जिलों में बार्डर के थानों पर चौकसी बढ़ी हुई है। पगडंडी पर पुलिस पिकेट लगाकर बिहार जाने वाले सभी वाहनों के साथ ही संदिग्ध व्यक्ति की तलाशी की जाती है लेकिन इससे अवैध कारोबारियों के हौसले पस्त नहीं हुए हैं। इन दिनों भी पुलिस ने सभी सीमावर्ती क्षेत्रों में चुनाव के लिए सतर्कता बढ़ा दी है, फिर भी में बिहार में शराब माफियाओं द्वारा पुलिस पर हमला करने के कई मामले सामने आए हैं। इस महीने की शुरुआत में पटना में पुलिसकर्मियों की पिटाई भी की गई थी, जब वे शराब तस्करी के संदेह पर एक जगह पर छापा मारने गए थे।
यूपी-बिहार सीमा के दोनों तरफ विभिन्न हिस्सों से अवैध कारोबारियों की गिरफ्तारी और शराब की बरामदगी हर दिन होती रही है, लेकिन तैयार बाजार और आदतन अपराधियों के कारण शराब की आमद जारी है। पिछले साल शराबबंदी के बीच बिहार में पहले लोकसभा चुनाव के दौरान सख्ती से शराब की बरामदगी में महत्वपूर्ण गिरावट आई थी, हालांकि सात चरणों के दौरान नियमित रूप से शराब तस्करों की गिरफ्तारी भी हुई थी। कई जगह तो पुलिस भी आंखें मूंदे रहती है। शराब और हथियारों के तस्कर घटिया माल से दोनों चीजें बना रहे हैं, जो जानलेवा और खतरनाक भी है। बताते चलें कि बिहार में शराब बंदी है। इसलिए यहां के पियक्कड़ों को अन्य राज्यों से आने वाली दारू के सहारे रहना पड़ता है, जो अक्सर जानलेवा भी साबित हो जाती है। अंतरराज्यीय सीमा से सटे सीमांचल के इलाकों में शराबखोरी पर रोक लगाना उत्पाद विभाग एवं स्थानीय पुलिस के लिए भी चुनौती बना हुआ है। कार्रवाई एवं सख्ती बरते जाने के बाद भी शराब तस्करी एवं शराब पीने के मामले सामने आ रहे हैं। विभाग द्वारा गिरफ्तारी एवं बरामदगी के आंकड़ों पर उपलब्धि का मूल्यांकन किया जाता है? लेकिन, तमाम कोशिशों के बाद भी शराब की खेप यूपी से पहुंच रही है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के एक अधिकारी ने कहा कि निगरानी बढ़ने के कारण, तस्करों ने अपने काम करने के तौर-तरीके बदल दिए हैं। तस्कर अब छोटी-छोटी मात्रा में शराब की तस्करी कर रहे हैं, जिसे पता लगाने में परेशानी हो रही है।
बहरहाल, उत्तर प्रदेश में नकली शराब बनाने वालों के सिंडिकेट की कमर तोड़ने के लिए योगी सरकार की सक्रियता से शराब माफिया खुल कर अपना धंधा नहीं चला पा रहे हैं। योगी सरकार का आए दिन जहरीली शराब पीकर मौतों की घटनाओं से पारा चढ़ा हुआ है। यह देखते हुए पुलिस ने अवैध शराब के धंधे पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। पिछले 12 दिनों में ही एक लाख लीटर अवैध शराब बरामद हो चुकी है। बिहार के साथ उत्तर प्रदेश की आठ विधान सभा सीटों पर भी उप-चुनाव होने हैं। दरअसल, चुनाव चाहे लोकसभा के हों या फिर विधान सभा या पंचायत के सभी चुनावों की तारीख ज्यों ज्यों करीब आती जाती है त्यों त्यों प्रत्याशियों द्वारा मतदाताओं को लुभाने के लिए शराब बांटने का सिलसिला तेज होता जाता है। दशकों से इस बुराई से मुक्ति नहीं मिल सकी है। अनेक मतदाताओं को मुफ्त में शराब मिलती है, उम्मीदवार भी सस्ती से सस्ती और घटिया से घटिया शराब परोसने से नहीं हिचकते। इसलिए इन दिनों न केवल अन्य राज्यों से अवैध शराब की तस्करी बढ़ गई है, बल्कि मिलावटी, जहरीली, कच्ची और देशी शराब का कारोबार करने वाले भी सकिय हो उठे हैं। यह कानून व्यवस्था के लिए भी बहुत बड़ी चुनौती है। शराब अवैध रूप से बनाई जा रही है, इस पर पुलिस शिकंजा कस रही है, लेकिन अन्य राज्यों से शराब की तस्करी कैसे होती है, यह सवाल मुसीबत का कारण बना हुआ है। पहली बात तो यह कि शराब फैक्ट्री में कम से कम एक आबकारी अधिकारी नियुक्त होता है, जिसका काम ही यह देखना होता है कि अवैध रूप से फैक्ट्री से निकली शराब न जा सके। इसके बाद भी यूपी में हरियाणा से तो बिहार में यूपी से आई शराब धड़ल्ले से बिकती मिल जाती है। इसी प्रकार से कुछ अन्य राज्यों में बनी शराब की धड़ल्ले से तस्करी होती है। चूंकि अवैध रूप से फैक्ट्री से निकली शराब पर आबकारी शुल्क नहीं लगता, इसलिए यह अपेक्षाकृत सस्ती पड़ती है, इसी की आड़ में नकली, मिलावटी और जहरीली शराब भी बिकती है। आश्चर्य की बात यह है कि कई चेकपोस्ट पार कर भी शराब प्रदेश में न केवल अपने गंतव्य तक पहुंच जाती है, बल्कि सीमा पार कर अन्य राज्यों तक भी चली जाती है। कुछ भ्रष्ट सरकारी अफसरों और कर्मचारियों की बदौलत ही यह सब कुछ संभव शिकंजा कसना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि इस करोबार को शह देने वाले भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों की भी पहचान करनी होगी, तभी शिकंजा कसने का वास्तविक लाभ मिल सकेगा। वर्ना सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा।
-अजय कुमार