मोबाइल में अटकी जान (व्यंग्य)

By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ | Jul 05, 2021

भजनखबरी के लिए मानो मोबाइल, मोबाइल न हुआ उसकी जान हो गयी। अब उसके सारे मित्र फेसबुकिया हो गए हैं। हश्र यह है कि सात समंदर पार के मित्र से देर रात जागकर अपनी वार्तालाप की चटनी चाट लेगा, लेकिन पड़ोस में रहने वालों को भाव तक न देगा। रिश्तेदारियाँ सारी व्हाट्सप के अखाड़े में निभायी जा रही हैं। ट्विटर के ट्विट्स भूख मिटाने के निवाले हो गए हैं। गूगल का डूडल, प्ले स्टोर, ड्राइव उसके दिन की धड़कन बनकर धड़धड़ा रहे हैं। चाहे सड़क हो या फिर बहुमंजिला भवन की सबसे ऊँची मंजिल...स्थान से समझौता किए बिना अपनी उंगिलयों को मोबाइली की-पैड के स्टेज पर ब्रेक डांस करवाने में उसका कोई सानी नहीं है। कई बार एक्सिडेंट होते-होते बचा है। भले उसे दो-चार चोट लग गयी हो, लेकिन मजाल जो उसके मोबाइल पर डेंट लगा जगाए। वह अपना एक्सिडेंट सह सकता है, लेकिन मोबाइल का डेंट नहीं। गजब जमाने में अजब भजनखबरी की बात ही निराली है।

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भजनखबरी और मोबाइल का रिश्ता ठीक वैसा ही है जैसे रैदास का अपने प्रभु से। तुम चंदन हम पानी। जाकी बास अंग-अंग समानी। सॉफ्टवेयर मोबाइल में था, लेकिन हार्डवेयर भजनखबरी का बदला था। माता-पिता की डाँट-फटकार का अब पहले जैसा असर नहीं था। घर पर बहन-बहनोई के आने पर बहाने ढूँढ़-ढूँढ़कर मोबाइल से चिपके रहता था। कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, क्या खा रहा है, क्या पी रहा है जैसी सभी बातों से बेखबर वह रोटी के आधे टुकड़े में गोल-गोल आँखें बनाकर अपने एंड्रायड को ढूँढ़ने की कोशिश करता। उसकी सारी सृजनशीलता समय का झोंका बनकर मोबाइल के वीडियो गेम, नए-नए पोर्न मसाले के बहाने छूमंतर हो जाते। रतजगिया उल्लू भजनखबरी के सामने सरेंडर हो गये। उन्हें लगा जब हमारी ड्यूटी भजनखबरी इतनी शिद्दत से कर रहा है, तो उन्हें कोई हक़ नहीं बनता कि रतजगिया नंदन पुरस्कार अपने पास रखें। सो उन्होंने यह पुरस्कार भजनखबरी को देकर स्वंय को रात की पहरेदारी से मुक्त किया।

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मोबाइल के चलते भजनखबरी इतना विनम्र हो चला है कि मानो उसके दोनों हाथ कीपैड पर अभी चल पड़ेंगे। सीधी सादी गर्दन प्रभु मोबाइल के चरणों में झुक गयी है। इतनी भक्ति, इतना आध्यात्म शायद तुलसी ने भी राम के प्रति नहीं दिखायी होगी। प्रभु मोबाइल के चलते भजनखबरी बिस्तर पर ही उठता-बैठता, खाता-पीता, टहलता-घूमता। मानो उसने दुनिया मुट्ठी में कर ली थी। कहीं बाहर जाना हुआ तो प्रभु मोबाइल को सौ प्रतिशत बैटरी का चढ़ावा चढ़ाए बिना नहीं निकलता। स्वीगी का खाना खाकर जो भी चर्बी चढ़ जाती, उसे ताश की रम्मी, कैंडी क्रश, टेंपल रन खेल-खेल कर रुपए-पैसे चढ़ाकर कम कर लेता। इतना सब होने के बावजूद भजनखबरी की भक्ति में रत्ती भर की कमी नहीं आयी। उसके लिए प्रभु मोबाइल चंदन है, तो वह पानी है। प्रभु मोबाइल घन हैं, तो वह मोर है। प्रभु मोबाइल दीपक है, तो वह बाती है। प्रभु मोबाइल मोती है, तो वह धागा है। प्रभु मोबाइल स्वामी हैं, तो भजनखबरी दास है। ऐसी भक्ति करने वाला पहले न कभी हुआ था,  न है और न होगा। जय बोलो प्रभु मोबाइल की...जय।


-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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