By अंकित सिंह | Mar 23, 2020
एक वक्त था जब बिहार की राजनीति में भूमिहारों का बोलबाला हुआ करता था। लेकिन 90 के दशक में लालू के उदय के साथ ही भूमिहारों का वर्चस्व राजनीति से धीरे-धीरे खत्म होता गया। लगभग 15 वर्षों तक बिहार में लालू की राजनीति एमवाई समीकरण के सहारे चलती रही जिसमें दलित और पिछड़ा वर्ग भी शामिल था। भूमिहार भी लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी आरजेडी से दूरी बनाकर रखता था। कांग्रेस का प्रभाव खत्म होते ही भाजपा ने भूमिहारों पर डोरे डालना शुरू किया और आज भाजपा के लिए बिहार में भूमिहार एक बड़ा वोट बैंक है। 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता में आते ही भूमिहार पूरी तरीके से एनडीए गठबंधन को ही वोट डालने लगे। सत्ता से बाहर होने के बाद लालू प्रसाद यादव ने भी कुछ ऐसा नहीं किया जिससे कि भूमिहारों को यह लगे कि वह अब हमें जोड़ने की कवायद शुरू कर रहे हैं।
आलम तो यह रहा कि 2015 के चुनाव में आरजेडी ने एक भी भूमिहार को विधानसभा का टिकट नहीं दिया। आरजेडी लगातार एमवाई समीकरण को मजबूत करने की कोशिश में जुटी रही। लालू 90 के दशक में एक नारा लगाया करते थे 'भूरा बाल साफ करो' यानी कि भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला। 2015 के चुनाव प्रचार के दौरान भी लालू यादव लगातार सवर्ण समाज के खिलाफ बोलते रहें। आरजेडी को हमेशा लगा कि भाजपा के होते हुए उन्हें सवर्ण समाज का वोट बिहार में तो नहीं मिलने वाला। लेकिन 2020 के राज्यसभा चुनाव में पार्टी ने भूमिहार समुदाय से आने वाले अमरेंद्र धारी सिंह को उम्मीदवार घोषित किया है। अमरेंद्र धारी सिंह भूमिहार समुदाय से आते हैं जिसे बिहार की सियासत में आरजेडी का विरोधी माना जाता रहा है। जैसे ही अमरेंद्र धारी सिंह का नाम सामने आया आरजेडी के कार्यकर्ता सहित तमाम लोग चौक गए। किसी को उम्मीद नहीं थी कि आरजेडी किसी भूमिहार को राज्यसभा भेजेगी। वह भी एक ऐसे वक्त में जब बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले हो। इसे लालू प्रसाद यादव का मास्टरस्ट्रोक भी माना जा रहा है और साथ ही साथ यह भी कहा जा रहा है कि हो सकता है कि तेजस्वी यादव एमवाई टैग को हटाना चाहते हो।
इस साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव लालू प्रसाद यादव की गैर हाजिरी में है। इस चुनाव में आरजेडी के साथ-साथ तेजस्वी यादव के चुनावी कौशल और रणनीति की भी अग्नि परीक्षा होनी है। ऐसे में तेजस्वी यादव अपने कोर वोटर के साथ-साथ भूमिहारों को भी रिझाने में लगे हैं। आरजेडी को लगता है कि जो ओबीसी समुदाय है वह पूरी तरीके से नीतीश कुमार के साथ हैं और अगर बिहार के सत्ता में आना है तो एमवाई समीकरण के साथ-साथ अन्य समाज के लोगों को भी साथ में लेना होगा। इसी को देखते हुए आरजेडी ने सवर्ण समाज को अपने पक्ष में लाने की कोशिशें लगातार कर रही है। पहले राजपूत समाज से आने वाले जगदानंद सिंह को आरजेडी का बिहार प्रमुख बनाया गया। उसके ठीक बाद अमरेंद्र धारी सिंह को राज्यसभा का टिकट दिया गया।
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भूमिहार को राज्यसभा भेजने का महत्वपूर्ण कारण एक यह भी है कि यह समाज अब भाजपा से थोड़ा नाराज चल रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सहयोगी दल जनता दल यू और लोजपा ने मिलकर 5 भूमिहार समाज से आने वाले लोगों को चुनावी मैदान में उतारा जबकि भाजपा ने सिर्फ 1 सीट ही भूमिहार समाज को दिया। उस सीट को लेकर भी काफी विवाद हुए। वह सीट केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की बेगूसराय है। पहले गिरिराज सिंह अपनी नवादा सीट से ही चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन एन वक्त में उनके सीट को बदल दिया जाता है और उन्हें कन्हैया कुमार के खिलाफ बेगूसराय भेज दिया जाता है। पहले तो गिरिराज सिंह पार्टी के इस फैसले से नाराज होते हैं लेकिन मान-मनौवल के बाद वह बेगूसराय से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुए। इस दौरान पार्टी अध्यक्ष रहे अमित शाह ने भूमिहारों को आश्वासन दिया कि उनके साथ कोई नाइंसाफी नहीं होगी। अमित शाह ने बिहार के बड़े भूमिहार नेताओं से मुलाकात भी की थी और उन्हें हर तरह से भरोसे में लिया था। लेकिन अब आरजेडी को यह लगता है कि भूमिहार धीरे-धीरे भाजपा से दूर हो रहे हैं ऐसे में पार्टी भूमिहारों पर डोरे डालना शुरू कर चुकी है।
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बीच-बीच में बिहार में भूमिहार-ब्राह्मण समाज के लोग भाजपा में अपनी स्थिति को मजबूत करने की मांग उठाते भी रहे हैं जिससे कि आरजेडी को संभावनाएं नजर आती है। आपको बता दें कि बिहार में सवर्ण समाज की आबादी तकरीबन 17 फ़ीसदी है। इस 17 फ़ीसदी में 5 फ़ीसदी भूमिहार वोटर है। इसके अलावा 5.2 फ़ीसदी राजपूत और 5.7 फ़ीसदी ब्राह्मण समुदाय के लोग हैं। इसके अलावा बिहार में करीब 17 फ़ीसदी मुसलमान वोट है जबकि 15 फ़ीसदी यादव वोट है और तभी एमवाई समीकरण आरजेडी के लिए एक बड़ा वोट बैंक माना जाता है। भाजपा ने भी भूमिहार के बड़े नेता सीपी ठाकुर की जगह उनके बेटे विवेक ठाकुर को राज्यसभा उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में कहीं ना कहीं भाजपा ने भी डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या भूमिहार आरजेडी के पक्ष में आते हैं या फिर वह भाजपा के साथ बने रहते हैं।