अर्थव्यवस्था के लिए बूस्टर डोज है कुंभ मेला, आयोजन से पहले सरकारें करती हैं करोड़ों खर्च

By Anoop Prajapati | Jul 22, 2024

आख़िर इतने बड़े मेले के आयोजन और ख़र्च के ज़रिए सरकार को क्या हासिल होता होगा, उसे कितनी आय होती है या फिर राजस्व के लिहाज़ से उसे कोई लाभ होता है या नहीं? इसको लेकर जानकारों का कहना है कि सरकार को प्रत्यक्ष लाभ भले ही न हो लेकिन परोक्ष रूप से यह आयोजन सरकारों के लिए घाटे का सौदा नहीं होता है। 2019 में हुए आयोजन पर क़रीब 4200 करोड़ रुपए ख़र्च किए गए थे। जो कि पिछली बार हुए कुंभ की तुलना में तीन गुना ज़्यादा था। राज्य सरकार ने इसके लिए वित्तीय वर्ष 2018-19 के बजट में 1500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था और कुछ राशि केंद्र सरकार की ओर से भी दी गई थी।


कुंभ मेले का आर्थिक महत्व भी काफ़ी है। यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है और अनुमान है कि इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बड़े पैमाने पर सकारात्मक असर पड़ता है। साल 2019 में इस मेले के कारण करीब 6 लाख नौकरियां पैदा हुई थीं। कुंभ मेले में कई तरह के लोग आते हैं, जैसे कि तीर्थयात्री, पवित्र पुरुष, और धार्मिक भक्त। साथ ही, यहां कई तरह के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं, जैसे कि संगीत, नृत्य, और भक्ति गायन। कुंभ मेले में शामिल होने वाले लोग अलग-अलग भाषाई, जातीय, और सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं और एक साथ आकर सद्भाव और एकता की भावना दिखाते हैं। 


सीआईआई की एक रिपोर्ट में राजस्व का आंकलन किया गया। जिसमें आतिथ्य क्षेत्र, एयरलाइंस, पर्यटन, इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों से होने वाली आय को शामिल किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक़ इन सबसे सरकारी एजेंसियों और व्यापारियों की कमाई बढ़ी थी। प्रयागराज स्थित क्षेत्रीय अभिलेखागार में मौजूद दस्तावेज इसकी गवाही देते हैं। दस्तावेजों में दर्ज आंकड़ों के अनुसार 1882 के कुंभ में 20,228 रुपए खर्च हुए थे। 


इसकी तुलना में मेले से कुल 49,840 रुपए की आमदनी हुई, जिसे राजकोष में जमा कराया गया था। इस तरह कुंभ से सरकार को 29,612 रुपए का लाभ हुआ। मेले के कुशल प्रबंधन से मिले इस धन को कहीं बाहर नहीं भेजा गया बल्कि इससे इलाहाबाद में ही कई महत्वपूर्ण सुविधाओं का विकास किया गया। क्षेत्रीय अभिलेखागार में 1882 के कुंभ में हुए खर्च का ऐतिहासिक ब्यौरा अब भी सुरक्षित है। दस्तावेजों के अनुसार उत्तर-पश्चिम प्रांत के सचिव एआर रीड ने 1882 के कुंभ मेले के समापन के बाद एक रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट में मेले की तैयारियों और मेले के समय किए गए दौरों के अनुभव के आधार पर व्यवस्था का आकलन किया गया था।

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