केजरीवाल खुश तो बहुत होंगे आज, जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या ताकत दे दी, दिल्ली पर फैसले का पूरा लेखा-जोखा

By अभिनय आकाश | May 11, 2023

कचरा ई गेंद हमका दौड़ लेना ही होगा। अब गेम की आखिरी दो गेंद बची है। लेकिन कचरा वो एक गेंद मिस कर जाता है। फिर भुवन बोलता है कि एक गेंद पर पांच रन वरना तीन गुना लगान देना होगा। सभी की जिंदगी तोहरे हाथ में है कचरा, कुछ कर। लेकिन वो गेंद आखिरी नहीं होती है और नो बल पर बल्लेबाजों के छोड़ एक रन के सहारे बदल चुके थे। फिर फिल्म के हीरे आमिर खान आखिरी गेंद पर चौका लगा मैच जीत जाते हैं। साल 2001 में आई फिल्म लगान का ये दृश्य जिसके बारे में हम आपको बता रहे थे। लेकिन आप कह रहे होंगे की आखिर आज हम इसका जिक्र क्यों कर रहे हैं। तो आपको बता दें कि दिल्ली में अधिकारों को लेकर जैसे ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, आम आदमी पार्टी ने लगान फिल्म का डायलॉग शेयर करते हुए अपनी खुसी जाहिर की। दिल्ली में अधिकारों पर फैसले के बाद केजरीवाल समेत पार्टी के नेता सुप्रीम कोर्ट के जजों को धन्यवाद दे रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट करते हुए कहा कि दिल्ली के लोगों के साथ न्याय करने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट का तहे दिल से शुक्रिया। इस निर्णय से दिल्ली के विकास की गति कई गुना बढ़ेगी। जनतंत्र की जीत हुई। दरअसल, राष्ट्रीय राजधानी में अधिकारियों पर किसका नियंत्रण होगा, इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। दिल्ली सरकार को ट्रांसफर, पोस्टिंग का अधिकार मिल गया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में साफ कहा कि केंद्र के अधिकार सिर्फ पुलिस, पब्लिक और जमीन तक सीमित है। ऐसे में आइए आपको बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार को क्या ताकत दे दी है। अपील, आदेश, असर और आगे क्या होगा, कुल मिलाकर कहें तो दिल्ली में अधिकारों पर सुप्रीम आदेश का पूरा लेखा-जोखा। 

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कैसे हुई विवाद की शुरुआत 

दिल्ली में विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) अधिनियम 1991 लागू है। साल 2021 में केंद्र सरकार ने दिल्ली के कानून के सेक्शन 21 में बदलाव किया गया जो ये कहता है कि दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल है। वहीं सेक्शन 44 में भी बड़ा बदलाव है। दिल्ली सरकार या विधानसभा द्वारा किए गए किसी भी फैसले के क्रियान्वयंन के पहले उपराज्यपाल की राय लेना जरूरी हो जाएगा।  

केजरीवाल पहुंच गए सुप्रीम कोर्ट

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) अधिनियम में किए संशोधन में कहा गया कि राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा। इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को आपत्ति थी। इसी को आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि राजधानी में भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सर्वोच्चता होनी चाहिए। इसके साथ ही दिल्ली सरकार का कहना था कि केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासन चलाने के लिए आईएएस अधिकारियों पर राज्य सरकार को पूरा नियंत्रण मिलना चाहिए। 

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सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ

दिल्ली में सर्विसेज किसके हाथ में है, इस अहम कानूनी सवाल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनाया गया। दिल्ली में सर्विसेज के अधिकार को लेकर केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो तर्क रखा था, काफी हद तक कोर्ट उस पर राजी दिखा। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में एक बड़ीलकीर भी खींची जिससे भविष्य में दिल्ली का  बॉस कौन वाले सवाल पर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच टकराव की स्थिति न पैदा हो। सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए कहा कि एलजी के पास दिल्ली से जुड़े सभी मुद्दों पर व्यापक प्रशासनिक अधिकार नहीं हो सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवाल का अधिकार होना चाहिए। उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी। पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास रहेगा। 

आर्टिकल 239एए पर क्या हुई स्थिति साफ

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 239एए पर भी बहुत कुछ साफ कर दिया। अब तक दिल्ली सरकार और केंद्र अपने-अपने तरह से व्याख्या करते थे और मतभेद बरकरार रहता था। इसी आर्टिकल 239 में केंद्र शासित प्रदेशों के लिए अधिकार है और दिल्ली केलिए एए विशेष रूप से जोड़ा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि आर्टिकल 239एए में दिल्ली विधानसभा को कई अधिकार दिए गए हैं। लेकिन केंद्र के साथ शक्तियों के संतुलन की बात भी कही गई है। 

पहले क्या हुआ था

इससे पहले चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने सुनवाई के बाद 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने मामले को बड़ी बेंच में भेजने की गुहार लगाई थी। वहीं, दिल्ली सरकार का कहना है कि राज्य या केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) तब तक सही तरह से काम नहीं कर सकते, जब तक कि उसके हाथ में सर्विसेज न हो। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में चली बहसों में विभिन्न पक्षों की ओर से रखी गई दलीलें संक्षेप में पेश की गई।  चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच को यह मामला रेफर किया गया था। संवैधानिक बेंच को यह मामला 6 मई 2022 को रेफर किया गया था। तत्कालीन चीफ जस्टिस एन.वी. रमण की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच मामले में उठे सवाल पर सुनवाई करेगी। सिर्फ सर्विसेज मामले में कंट्रोल किसका हो, इस मुद्दे पर उठे सवाल को संवैधानिक बेंच के सामने रेफर करते हैं।

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मामले में 2 जजों के अलग-अलग था मत

सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 14 फरवरी 2019 को जो फैसला दिया था, उसमें दिल्ली में प्रशासनिक नियंत्रण किसके हाथ में हो, इसको लेकर दोनों जजों का मत अलग- अलग था। इस मामले में फैसले के लिए तीन जजों की बेंच गठित करने के लिए मामले को चीफ जस्टिस को रेफर कर दिया गया था। केंद्र ने दलील दी थी कि मामले को और बड़ी बेंच को भेजा जाए। एलजी को ज्यादा अधिकार दिए जाने के केंद्र के 2021 के कानून को भी दिल्ली सरकार ने चुनौती दी थी। 

4 जुलाई 2018 का संवैधानिक बेंच का फैसला

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि एलजी स्वतंत्र तौर पर काम नहीं करेंगे, अगर कोई अपवाद है तो वह मामले को राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं और जो फैसला राष्ट्रपति लेंगे उस पर अमल करेंगे, यानी खुद कोई फैसला नहीं लेंगे।

चार बार रेफर

2007 से लेकर अभी तक चार बार ऐसा मौका आया है, जिसमें दिल्ली सरकार और एलजी के बीच मतभिन्नता हुई और मामला राष्ट्रपति को रेफर हुआ था।

फैसले के बाद आगे क्या होगा असर?

पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और लैंड को छोड़कर दिल्ली की सरकार के पास अन्य राज्यों की सरकार की तरह की अधिकार होंगे। दिल्ली सरकार अधिकारियों की तैनाती और तबादले अपने हिसाब से कर सकेगी। दिल्ली सरकार को हर फैसले के लिए एलजी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी। अन्य राज्य की तरह उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी पड़ेगी। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण कि अब जिन मुद्दों पर केंद्र का कानून नहीं है, उस मामलों में चुनी हुई सरकार कानून बना सकेगी। 

केंद्र के पास क्या विकल्प हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल को लक्ष्मण रेखा दिखाई है। कोर्ट के फैसले को केंद्र सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। हालांकि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल कर सकता है। इसे बड़ी बेंच के पास भेजने की अपील कर सकती है। -अभिनय आकाश

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