By अभिनय आकाश | Jul 12, 2022
13 जुलाई को देशभर में गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) विशेष उत्सव मानते हुए हर साल इसे अपनी सभी शाखाओं में मनाता है। इसे संघ के छह उत्सवों में सर्वोपरि माना गया है। आरएसएस द्वारा मनाए जाने वाले छह त्योहारों में अन्य पांच त्योहार- विजयदशमी, मकर संक्रांति, वर्ष प्रतिपदा, हिंदू साम्राज्य दिवस और रक्षाबंधन हैं ।13 तारीख को 'गुरु पूर्णिमा' के उत्सव के साथ, एक अनूठी कवायद भी शुरू हो जाएगी, जिसके बारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाहर के लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है। इसे 'गुरु दक्षिणा' (गुरु को प्रसाद) के रूप में जाना जाता है। यह अभ्यास पूरे देश में आरएसएस की 60,000 से अधिक शाखाओं द्वारा एक महीने की अवधि में किया जाएगा। 'गुरु दक्षिणा' 'गुरु पूजा' के उत्सव का हिस्सा है।
एक महीने तक चलता है गुरु दक्षिणा का कार्यक्रम
संघ दुनिया का शायद अकेला समाजसेवी संगठन होगा जो आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर है और किसी से चंदा नहीं लेता है। संघ से जुड़े लोग भी साल में केवल एक बार अपनी तरफ से दक्षिणा देते हैं, जिसे गुरु दक्षिणा कहा जाता है। डॉ. हेडगेवार ने संघ को आत्म निर्भर बनाया और इसके लिए गुरू दक्षिणा की परपंरा शुरू की। हिंदू कैलेंडर के हिसाब से व्यास पूर्णिमा से रक्षा बंधन तक यानी एक महीने तक गुरु दक्षिणा का कार्यक्रम चलता है। इस दौरान स्वयंसेवक संघ में गुरु माने जाने वाले भगवा ध्वज के सामने ये समर्पण राशि रखते हैं। इसे पूरी तरह गुप्त रखा जाता है। यानी दक्षिणा की राशि और देने वाले का नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता है। लेकिन हर पैसे का पूरा हिसाब रखा जाता है।
गुरु की जगह भगवा ध्वज को किया स्थापित
1928 में गुरु पूर्णिमा के दिन से गुरु पूजन की परंपरा शुरू हुई। जब सब स्वयं सेवक गुरु पूजन के लिए एकत्र हुए तब सभी स्वयंसेवकों को यही अनुमान था कि डॉक्टर साहब की गुरु के रूप में पूजा की जाएगी। लेकिन इन सारी बातों से इतर डॉ. हेडगेवार ने संघ में व्यक्ति पूजा को निषेध करते हुए प्रथम गुरु पूजन कार्यक्रम के अवसर पर कहा, “संघ ने अपने गुरु की जगह पर किसी व्यक्ति विशेष को मान न देते हुए परम पवित्र भगवा ध्वज को ही सम्मानित किया है। इसका कारण है कि व्यक्ति कितना भी महान क्यों न हो, फिर भी वह कभी भी स्थिर या पूर्ण नहीं रह सकता।
आरएसएस में गुरु दक्षिणा की अवधारणा
गुरु दक्षिणा की अवधारणा के संबंध में कुछ बातों का उल्लेख जरूरी है। दरअसल, गुरु दक्षिणा की कल्पना पहले के दिनों में संगठन के भीतर से धन इकट्ठा करने और इसके विस्तार का समर्थन करने के लिए और "सर्वोच्च गुरु" के रूप में भगवा ध्वज के महत्व को स्थापित करने के लिए दो-आयामी उपाय के रूप में की गई थी। समय बीतने के साथ, गुरु दक्षिणा का कार्यक्रम उन स्वयंसेवकों से भी जुड़ने का एक बड़ा माध्यम बन गया, जो आमतौर पर आरएसएस की गतिविधियों में नियमित रूप से शामिल नहीं होते हैं। साल में कम से कम एक बार आरएसएस उनसे जुड़ पाता है। सबसे महत्वपूर्ण सबक जो गुरु दक्षिणा कार्यक्रम से लिया जा सकता है, वह ईमानदारी है। जिसके साथ सारा पैसा संभाला जाता है और कैसे पैसे का उपयोग संगठन में किया जाता है। संघ को मिलने वाले पैसे और खर्च का हर साल ऑडिट होता है और पूरी राशि बैंकों में जमा होती है।