By नीरज कुमार दुबे | Aug 02, 2024
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच मतभेद जब तब उभरते ही रहते हैं। लेकिन अब यह मतभेद विधानमंडल की कार्यवाही के दौरान भी नजर आने लगे हैं। खास बात यह है कि गुरुवार को उत्तर प्रदेश विधान परिषद में कुछ ऐसा घटा जिससे प्रतीत होता है कि राज्य भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के भी मुख्यमंत्री से सहज रिश्ते नहीं हैं। दरअसल एक विधेयक के पारित होने में जिस तरह केशव प्रसाद मौर्य और भूपेंद्र चौधरी ने अडंगा लगाया उससे प्रदर्शित होता है कि भाजपा संगठन और राज्य सरकार में सब कुछ सामान्य नहीं चल रहा है। अब इस पूरे घटनाक्रम पर विपक्ष खूब तंज कस रहा है।
हम आपको याद दिला दें कि हाल ही में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने सरकार नहीं संगठन बड़ा होता है, जैसा बयान देकर सरकार और संगठन के बीच मतभेद की खबरों को हवा दे दी थी। इसके अलावा भूपेंद्र चौधरी ने पार्टी के केंद्रीय आलाकमान को उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में भाजपा के खराब प्रदर्शन के कारणों पर जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें बताये गये कारणों में से अधिकांश राज्य सरकार की कार्यशैली से संबंधित बताये जा रहे हैं।
अब प्रदेश की राजनीति में जो नया विवाद सामने आया है वह एक विधेयक को लेकर है। दरअसल, उत्तर प्रदेश विधानसभा से बुधवार को पारित किये गये उत्तर प्रदेश नजूल सम्पत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबन्ध और उपयोग) विधेयक को विधान परिषद की मंजूरी नहीं मिली और सत्ता पक्ष के प्रस्ताव पर ही इसे सदन की प्रवर समिति के पास भेज दिया गया। हम आपको बता दें कि विधान परिषद में बृहस्पतिवार को भोजनावकाश की कार्यवाही के बाद नेता सदन उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इस विधेयक को सदन के पटल पर रखा। मगर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने इसे प्रवर समिति के सुपुर्द करने का प्रस्ताव रख दिया। उन्होंने कहा कि उनका प्रस्ताव है कि इस विधेयक को सदन की प्रवर समिति के सुपुर्द कर दिया जाए जो दो माह के अंदर अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करे। इसके बाद सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने इस विधेयक को प्रवर समिति के सुपुर्द किए जाने के प्रस्ताव को ध्वनि मत से पारित घोषित कर दिया।
हम आपको बता दें कि राज्य विधान परिषद के 100 सदस्यीय सदन में भाजपा के 79 सदस्य हैं। ऐसे में इस विधेयक को पारित नहीं किया जाना खासा अहम माना जा रहा है। हम आपको यह भी बता दें कि विधानसभा में बुधवार को पारित किए जाने से पहले इस पर संशोधन के प्रस्ताव पर सत्ता पक्ष के कुछ विधायकों ने भी इसमें संशोधन की जरूरत बताई थी। हालांकि बाद में इसे ध्वनि मत से पारित घोषित कर दिया गया था। वैसे विधानसभा में भी कुछ भाजपा विधायक इस विधेयक के विरोध में बताये जा रहे थे।
दूसरी तरफ इस विधेयक के पारित नहीं हो पाने पर राजनीति भी शुरू हो गयी है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने ट्वीट किया है कि नज़ूल ज़मीन विधेयक दरअसल भाजपा के कुछ लोगों के व्यक्तिगत फ़ायदे के लिए लाया जा रहा है जो अपने आसपास की ज़मीन को हड़पना चाहते हैं। उन्होंने कहा है कि गोरखपुर में ऐसी कई ज़मीने हैं जिन्हें कुछ लोग अपने प्रभाव-क्षेत्र के विस्तार के लिए हथियाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि आशा है मुख्यमंत्री जी स्वत: संज्ञान लेते हुए ऐसे किसी भी मंसूबे को कामयाब नहीं होने देंगे, खासतौर से गोरखपुर में।
वहीं समाजवादी पार्टी के एक्स अकाउंट से ट्वीट किया गया है कि सुना है मुख्यमंत्री योगी ये बिल अपने निजी फायदे के लिए ला रहे थे, इस बिल का जनहित या भाजपा हित से कोई वास्ता नहीं था, गोरखपुर में बेशकीमती जमीनों पर सीएम की नजर है जो जमीनें नजूल के अंतर्गत आ रही थीं। समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद से योगी जी ने सोचा कि सत्ता का फायदा उठाकर उन जमीनों में खेल कर लिया जाए इसीलिए ये बिल लाया गया है, लेकिन मुख्यमंत्री योगी के इस दुःस्वप्न पर भाजपा संगठन ने पानी फेर दिया है।
समाजवादी पार्टी ने कहा है कि हालांकि ये बिल अगर पास हो जाता तो पहले गोरखपुर फिर अयोध्या फिर लखनऊ और धीरे धीरे पूरे यूपी की बेशकीमती नजूल भूमि पर कुदृष्टि थी और गरीब जनता पर बुलडोजर चलाने की भाजपाई/योगी तैयारी थी और बिल्डर्स/उद्योगपतियों को ये जमीनें जनता से छीनकर देने की तैयारी की थी सीएम योगी/भाजपा ने। समाजवादी पार्टी ने कहा है कि लेकिन तमाम भाजपाई दिग्गजों की कोठियां/मकान/प्रतिष्ठान/बंगले नजूल में आ रहे हैं इसीलिए भाजपा के अंदर भी उसका विरोध है, जनहित से इसका या मुख्यमंत्री/भाजपाइयों का कोई लेना देना नहीं है।