'जिसके होंगे जाट, उसके होंगे ठाठ' : क्या भाजपा दोहरा पाएगी पुराना प्रदर्शन ? या फिर पोते चौधरी बिखेरेंगे जलवा

By अनुराग गुप्ता | Jan 10, 2022

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। देश के सबसे बड़े राज्य में विधानसभा की 403 सीटों के लिए सात चरणों में मतदान होगा। पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का प्रदर्शन शानदार रहा था और पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा था। जबकि इस बार पार्टी प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे के साथ-साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे को लेकर विधानसभा चुनाव में उतरी है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि 10 मार्च को आने वाले परिणामों में कमल का फूल खिलता है या फिर मुरझाता है। 

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सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने उत्तर प्रदेश को छह संगठनात्मक क्षेत्रों में विभाजित किया है। जिनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ब्रज, अवध, काशी, बुंदेलखंड व गोरखपुर क्षेत्र शामिल हैं। हालांकि हर एक क्षेत्र के समीकरण अलग-अलग हैं लेकिन भाजपा समेत तमाम पार्टियां का सबसे ज्यादा ध्यान पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर रहने वाला है। पिछले विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 71 सीटों में से भाजपा ने 51 सीटों पर कब्जा किया था। राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के एकमात्र विधायक सहेंदर सिंह रमाला बाद में भाजपा में शामिल हो गए। समाजवादी पार्टी (सपा) को 16, कांग्रेस को 2 और बसपा को एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था। पिछले विधानसभा चुनाव के प्रदर्शनों को देखने के बाद तो कुछ राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना था कि आरएलडी अपने आखिरी दिन गिन रही है।

भाजपा से नाराज है जाट समुदाय

माना जा रहा है कि भाजपा ने जिस पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दम पर अपना परचम बुलंद किया था आज वहां के जाट उनसे खासा नाराज हैं। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई थी। जिसको तमाम किसान संगठनों ने काला कानून बताया था। इस कानून के खिलाफ किसान एकत्रित होकर दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन करने लगे। किसानों का आंदोलन मौसमों के बदलने के बावजूद भी जारी रहा और एक साल से अधिक समय तक चलता रहा। इस आंदोलन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब के किसानों की भागीदारी सबसे ज्यादा था। हालांकि माहौल को टटोलते हुए केंद्र सरकार ने तीनों कानूनों को वापस ले लिया।

बनने लगे हैं नए समीकरण

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि कानूनों के चलते भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ सीटें गंवानी पड़ सकती है। हालांकि इसका पता तो 10 मार्च को ही चलेगा लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि समीकरण अब बदलने लगे हैं। क्योंकि भारतीय किसान यूनियन समेत कई किसान संगठनों ने खुले आम ऐलान किया है कि वो भाजपा का विरोध करेंगे। वहीं दूसरी तरफ जाटों की पार्टी मानी जाने वाली आरएलडी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया है। इतना ही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती के अवसर पर आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत की मुलाकात हुई थी। इस दौरान बात क्या हुई, इसके बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता है लेकिन दोनों नेताओं का एकसाथ एक तस्वीर में आना बहुत कुछ कहता है। 

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पिता महेंद्र सिंह टिकैत की विरासत को आगे बढ़ा रहे राकेश टिकैत ने आंदोलन के दौरान किसान पंचायत के जरिए मुसलमानों को एकजुट करने की कोशिश की थी। जो मुजफ्फरनगर दंगों के बाद कटने लगा था। लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले जाट-मुसलमान एकत्रित हुए और ऐसा प्रतीत होने लगा कि एकबार फिर से दोनों एकजुट हो सकते हैं। हालांकि राजनीति में कुछ भी तय नहीं होता है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक कहावत है कि जिसके साथ जाट, उसी की होगी ठाठ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों की आबादी करीब 17 फीसदी हैं। यहां पर जाट, दलित और मुसलमान के बाद तीसरे नंबर पर आते हैं। माना जाता है कि उत्तर प्रदेश की 18 लोकसभा और 120 विधानसभा सीटों पर जाट वोट का सीधा असर होता है। इनके रुख से सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना, मेरठ, गाजियाबाद, बागपत, गौतम बुद्ध नगर, बुलंदशहर, मुरादाबाद, बिजनौर, संभल, अमरोहा, अलीगढ़ समेत कई सीटों के समीकरण बदल जाते हैं।

दंगों के बाद बढ़ा भाजपा पर विश्वास

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के बाद जाटों का रुझान भाजपा की तरफ बढ़ने लगा। क्योंकि भाजपा ने मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाते हुए सपा समेत तमाम पार्टियों को घेरने की कोशिश की। इतना ही नहीं जाटों का नेता माने जाने वाले अजित सिंह भी बयान देने से कतराते रहे। क्योंकि बड़े चौधरी यानी की पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के नेता चौधरी चरण सिंह ने मुस्लिम-जाट को एकजुट रखने की कोशिश की थी। 

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इतना ही नहीं मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट और मुसलमानों के बीच दरार भी पड़ गई। ऐसे में तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने हिस्से के वोटर्स को समेटने में जुड़ गए। लेकिन मुजफ्फरनगर के सिसोली में किसानों की महापंचायत में एकबार फिर से जाट और मुसलमान एकसाथ दिखाई दिए। इतना ही नहीं दोनों ने अपनी-अपनी गलतियों को भी सुधारने की बातें कही थी। हालांकि साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दरमियां भी जाट वोटर्स रोजगार और गन्ने के बकाए को लेकर नाराज दिखाई दे रहे थे। लेकिन जब चुनाव परिणाम सामने आए तो कुछ और ही दिखाई दिया। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि जाट आखिरकार किसका प्रतिनिधित्व चुनते हैं ?

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