उत्तर पूर्व के साथ एकीकरण से उत्तर बंगाल के विकास की राह होगी आसान !

By हर्षवर्धन श्रृंगला | Aug 02, 2024

उत्तर-पूर्वी परिषद में उत्तर बंगाल के एकीकरण को लेकर हालिया चर्चा कोई नई बात नहीं है। दरअसल, इस धारणा ने हाल के दिनों में नए सिरे से लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। वास्‍तव में, उत्तर पूर्व के साथ उत्तर बंगाल एकीकरण एक व्‍यवहारिक समाधान है, जो उत्तरी बंगाल के लोगों के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों का समाधान करता है। निश्चित ही, इस क्षेत्र को लंबे समय से उपेक्षित रखा गया है, क्‍योंकि पश्चिम बंगाल में विकास कोलकाता-केंद्रित है, जिसका लाभ केवल दक्षिण बंगाल को मिल रहा है।


दरअसल, सम्‍प्रदायों द्वारा ध्‍यान नहीं दिए जाने की वजह से उत्तर बंगाल को राज्य के बाकी हिस्सों से अलग करना क्षेत्र के लोगों का पसंदीदा विकल्प रहा है। परिणामस्वरूप, उत्तर बंगाल में पश्चिम बंगाल से अलग होने की मांग को लेकर कई राजनीतिक आंदोलन देखने को मिलते रहे हैं। गोरखाओं, राजवंशियों और कामतापुरी द्वारा अलग राज्य की मांग पश्चिम बंगाल के कुछ उपेक्षित समुदायों की हताशा को दर्शाती है, जबकि अलग राज्य की मांग उत्तरी बंगाल के विभिन्न समुदायों की प्रबल इच्‍छा है, हालांकि यह एक जटिल मुद्दा है, क्‍योंकि प्रत्येक समुदाय पहचान और आत्म-स्वायत्तता की अलग-अलग भावनाएं रखता है। इसलिए, वर्तमान परिपेक्ष्‍य में उत्तर-पूर्वी परिषद में उत्तर बंगाल के एकीकरण को वहां के लोगों के सामने आने वाली आर्थिक चुनौतियों के लिए एक आशाजनक समाधान के रूप में देखा जाना चाहिए।

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गंगा के उत्‍तर में स्थित राज्‍य के आठ जिलों- दार्जिलिंग, कलिम्पोंग, जलपाईगुड़ी, कूच बिहार, मालदा, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर और अलीपुरद्वार को अक्सर सामूहिक रूप से उत्तर बंगाल कहा जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, यह क्षेत्र पूर्वी भारत और पवित्र गंगा के मैदान के बीच एक संक्रमणकालीन क्षेत्र था। विभाजन के साथ, पूर्वी भारत कई तरह की चुनौतियों वाला क्षेत्र बन गया। दूरी और कई अन्‍य चुनौतियों की वजह से यहां कई तरह के प्रतिकूल आर्थिक परिणाम देखने को मिले, हालांकि उत्‍तरी बंगाल के इन जिलों पर विभाजन के प्रभाव का असर दिखा और ये अपनी भौगोलिक सीमाओं से दूर हो गए।  ये जिले पश्चिम बंगाल के सबसे उपेक्षित हिस्सों में शामिल हैं, हालांकि यह क्षेत्र रणनीतिक और देश की सुरक्षा के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है। 


उत्तर बंगाल का एक बड़ा हिस्सा सिलीगुड़ी कॉरिडोर द्वारा परिभाषित किया गया है, जो पश्चिम बंगाल में एक प्रमुख शहरी केंद्र है, जो 'चिकन नेक' के पास स्थित होने के कारण रणनीतिक रूप से अत्‍यंत महत्वपूर्ण है। यह उत्तर-पूर्वी राज्यों को शेष भारत से जोड़ता है। इस स्थिति की वजह से एक महत्वपूर्ण व्यापार और पारगमन बिंदु के रूप सिलीगुड़ी कॉरिडोर प्रसिद्ध है, जो आर्थिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है, हालांकि सुगम परिवहन, पर्याप्त लॉजिस्टिक बुनियादी ढांचे, नियामक बाधाओं और क्षेत्रीय आर्थिक असमानताओं की कमी के कारण यह क्षेत्र अपनी पूरी क्षमता से विकसित नहीं हो पाया है। नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और चीन के पड़ोसी देश सिलीगुड़ी कॉरिडोर, भारत को म्यांमार के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया से जोड़ता है, जो देश के लिए रणनीतिक महत्व रखता है, लेकिन केंद्र और राज्य में समन्वय में कमी की वजह से प्रभावित रहता है। उत्तर पूर्व भारत में बुनियादी ढांचे में बड़े पैमाने पर सुधार सभी के सामने है। बुनियादी ढांचे को बढ़ाकर और इसे उभरते ट्रांस-एशियाई कनेक्टिविटी नेटवर्क से जोड़कर दक्षिण पूर्व एशिया के लिए एक पुल के रूप में सिलीगुड़ी कॉरिडोर का विकास समय की मांग है, लेकिन यह तभी संभव हो सकता है, जब उत्तर बंगाल स्वतंत्र रूप से संसाधनयुक्त होगा।


दुनिया भर में राजनीतिक सीमाओं से विभाजित उप-क्षेत्रों के भीतर आर्थिक तालमेल पुनर्जीवित हो रहा है। सामान्य बुनियादी ढांचा और आर्थिक स्थान, जो इस निकटता को स्वीकार करते हैं,  निश्चित ही, यह बेहतर व्यवस्था की नींव हैं। समग्र उत्तर पूर्व की अवधारणा इसी तर्क की स्वीकृति है। इस परिप्रेक्ष्य से देखने पर, उत्तर बंगाल को उत्तर-पूर्वी भारत से जोड़ने के लिए जिस सामंजस्‍य का लाभ लिया जा सकता है, उसका तर्क स्पष्ट है, लेकिन यह समझना मुश्किल है कि उत्तर पूर्व को कूच बिहार की पूर्वी सीमा से क्यों, बल्कि इसकी निर्भरता दार्जिलिंग और डुआर्स के माध्यम से सिक्किम पार करने के बाद फिर से शुरू की जानी चाहिए।


ऐसी व्यवस्थाओं का लाभ उनके उपकेंद्रों के इतर भी देखने को मिलता है। बंगाल हमेशा से एक समुद्री राज्य रहा है। उत्तर पूर्व के साथ भूमि संबंधों को मजबूत किए जाने के बाद पूरे पश्चिम बंगाल के लिए बंगाल की खाड़ी के बड़े क्षेत्र के प्रवेश द्वार के रूप में अपनी ऐतिहासिक भूमिका का विस्तार करने का अवसर पैदा होगा। अंदरूनी इलाके का आर्थिक भार, जिसने कोलकाता और कलकत्ता बंदरगाह को अपने समय के महान आर्थिक केंद्रों में से एक बना दिया था, अब उत्तर पूर्व के साथ इस जैविक संबंध को पुनर्जीवित करके उसे उत्तरी बंगाल के माध्यम से फिर से जागृत करने में मदद मिलेगी। उत्तर पूर्व में बुनियादी ढांचे का विकास और विदेश नीति के नेबरहुड फर्स्ट और एक्ट ईस्ट स्तंभों पर प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान उत्तर बंगाल को ऐतिहासिक अवसर प्रदान करता है। उत्तर-पूर्वी परिषद (एनईसी) भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए नोडल एजेंसी है, जिसे भारत के उत्तर-पूर्व के विकास के रास्ते में आने वाली बुनियादी बाधाओं को दूर करने के इरादे से बनाया गया है।


सभी केंद्रीय मंत्रालयों के वार्षिक बजट का लगभग 10 प्रतिशत उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के विकास के लिए आवंटित किया जाता है। उत्तर-पूर्वी राज्यों में विकास की सामान्य बाधाएं उत्तर बंगाल पर भी लागू होती हैं, लेकिन एनईसी का लाभ उत्तर बंगाल और उसके लोगों तक नहीं पहुंचता है। उत्तर बंगाल, जो हिमालय की तलहटी में स्थित है, शेष उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के समान चुनौतियों के बावजूद एनईसी के तहत किसी भी योजना या कार्यक्रम का लाभार्थी नहीं है। उत्तर बंगाल के पहाड़ी क्षेत्रों में पश्चिम बंगाल की तुलना में उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के साथ अधिक समानता है, विशेष रूप से संस्कृति और इलाके में समानता के अलावा सामाजिक और विकासात्मक चुनौतियों के मामले में। सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों की तरह, उत्तरी बंगाल एक सीमावर्ती क्षेत्र है, जिसके कारण इसे समान विकास और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में, उत्तर-पूर्वी परिषद के तहत कार्यक्रमों में इसका शामिल होना तार्किक और स्वाभाविक रूप से उचित है।


इसके अलावा, उत्तर-पूर्वी राज्यों को अन्य देशों से भी विकासात्मक सहायता मिलती है, लेकिन ये लाभ केवल उत्तर-पूर्व भारत को परिभाषित करने के कारण उत्तर बंगाल तक नहीं पहुंचता है। उदाहरण के लिए, जापान ने 'एक्ट ईस्ट फोरम' के तहत उत्तर पूर्व में बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए लगभग 2 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। भारत के उत्तर पूर्व में जापान द्वारा वित्तपोषित कुछ प्रमुख विकासात्मक परियोजनाओं में गुवाहाटी जल आपूर्ति परियोजना, असम में सीवेज परियोजना, असम-मेघालय में उत्तर-पूर्व सड़क नेटवर्क कनेक्टिविटी परियोजना, मेघालय में एक पनबिजली स्टेशन का नवीनीकरण और आधुनिकीकरण, जैव विविधता संरक्षण शामिल हैं। इसके साथ ही, सिक्किम में वन प्रबंधन और नागालैंड में वन संरक्षण आजीविका जैसी परियोजनाएं भी शामिल हैं, जबकि जापान ने ऐसे कार्यक्रमों को पड़ोसी क्षेत्रों में विस्तारित करने की इच्छा व्यक्त की है। दुर्भाग्य से ऐसी सहायता उत्तर-पूर्वी परिषद द्वारा प्रशासित क्षेत्रों तक ही सीमित है, इसलिए उत्तर बंगाल को एनईसी के दायरे में लाना इस क्षेत्र के लिए आवश्यक विकासात्मक सहायता में बाधा बनने वाली कुछ अड़चनों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। 


पश्चिम में सिक्किम से लेकर पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक उत्तर-पूर्वी राज्यों का क्षेत्र पूर्वी हिमालय श्रृंखला में स्थित है और इस तरह इन क्षेत्रों में जातीय समूह महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और जातीय समानताएं साझा करते हैं। दार्जिलिंग और सिक्किम की आबादी में मुख्य रूप से लेप्चा, भूटिया और नेपाली (गोरखा) जैसे जातीय समूह शामिल हैं। उनकी साझा शारीरिक विशेषताएं उनके सामान्य वंश का प्रमाण हैं। दार्जिलिंग, कलिम्पोंग, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में लोगों की जीवनशैली उनके पहाड़ी वातावरण ये गहराई से जुड़ी हुई हैं। यदि, उत्तर बंगाल को उत्तर पूर्वी परिषद के दायरे में लाया जाता है तो पहाड़ी इलाके के कारण उत्तरी बंगाल की पहाड़ियों में उत्पन्न होने वाली प्रशासनिक चुनौतियों की समानता को बेहतर ढंग से हल किया जा सकता है। दार्जिलिंग और कलिम्पोंग पश्चिम बंगाल के एकमात्र पहाड़ी जिले हैं और अपने अद्वितीय इलाके के कारण, यहां रहने वाले लोगों को अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिन्‍हें बंगाल सरकार की सभी नीतियों के अनुसार लाभ नहीं पहुंचता है। इसके अतिरिक्त, जलपाईगुड़ी, कूच बिहार, उत्तर दिनाजपुर और अलीपुरद्वार सहित उत्तरी बंगाल के क्षेत्र असम के साथ सांस्कृतिक समानताएं प्रदर्शित करते हैं। राजवंशी, आदिवासी और बोडो और राभा जैसे विभिन्न आदिवासी समुदाय दोनों क्षेत्रों में निवास करते हैं। ये समूह सदियों से आपस में घुलेमिले हैं, जिसके परिणामस्वरूप यहां साझा सांस्कृतिक प्रथाएं सामने आई हैं।


बंगाली के साथ-साथ उत्तरी बंगाल के कुछ हिस्सों में असमिया व्यापक रूप से समझी और बोली जाती है। असम का एक महत्वपूर्ण त्योहार बिहू का जश्न उत्तरी बंगाल में भी मनाया जाता है, जहां इसे समान उत्साह और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त, बुनाई की सांस्कृतिक प्रथा, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों के बीच, एक सामान्य कड़ी है, जो इन क्षेत्रों को जोड़ती है। कृषि जीवनशैली अभिसरण का एक और बिंदु है। उत्तर बंगाल और उत्तर-पूर्व भारत दोनों ही अपने उपजाऊ मैदानों और चाय बागानों के लिए जाने जाते हैं। नदी क्षेत्रों में पारंपरिक मछली पकड़ने की प्रथाओं के साथ-साथ चावल, जूट और चाय की खेती, उनकी आर्थिक और जीवन शैली की समानता को रेखांकित करती है।


अपार संभावनाओं से परिपूर्ण क्षेत्र होने के बावजूद, उत्तर बंगाल को विकास के असंख्य मुद्दों का सामना करना पड़ता है, जो इसकी प्रगति में बाधक हैं। बुनियादी ढांचे की कमियों से लेकर सामाजिक-आर्थिक असमानताओं तक कई चुनौतियां बनी हुई हैं। सबसे प्रमुख चिंताओं में से एक अपर्याप्त बुनियादी ढांचा है। क्षेत्र की सड़क और रेल नेटवर्क इसकी बढ़ती आबादी और आर्थिक गतिविधियों के बेहतर संचालन के लिए अपर्याप्त हैं। यहां व्‍यवस्‍था बार-बार होने वाले भूस्खलन और बाढ़, ख़राब जल निकासी प्रणालियों के कारण और भी बदतर हो जाती है, जिससे कनेक्टिविटी बुरी तरह बाधित हो जाती है। ये क्षेत्र दूर-दराज के ईलाकों से अलग-थलग पड़ जाता है। इसका असर व्यापार पर पड़ता है। उत्तर बंगाल में स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा सेवाएं भी पिछड़ रही हैं। आर्थिक विकास चिंता का एक अलग विषय है, जबकि कृषि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी हुई है, यह कम उत्पादकता और आधुनिक कृषि तकनीकों और बाजारों तक अपर्याप्त पहुंच से प्रभावित है। वहीं, चाय उद्योग, जो एक महत्वपूर्ण आर्थिक चालक है, वह वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव, श्रम विवाद और पर्यावरणीय गिरावट जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। कुल मिलाकर, यह क्षेत्र जातीय तनाव और अधिक स्वायत्तता की मांग सहित सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों से जूझ रहा है।


ये सभी चुनौतियां पश्चिम बंगाल सरकार के संसाधनों की कमी और क्षेत्र की ताकत का लाभ उठाने की इच्छा को रेखांकित करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप यहां के विकास में गिरावट आई है। नतीजतन, उत्तर बंगाल को उत्तर-पूर्वी परिषद के हिस्से के रूप में शामिल करना एक संभावित समाधान नजर आता है, क्‍योंकि यह क्षेत्र अच्छी तरह से प्रशासित, संसाधनयुक्त, सुरक्षा, रणनीतिक और आर्थिक रूप से देश के लिए बहुत महत्व रखता है


- हर्षवर्धन श्रृंगला, 

पूर्व विदेश सचिव और संयुक्त राज्य अमेरिका, बांग्लादेश और थाईलैंड में भारत के राजदूत रहे हैं।

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