By नीरज कुमार दुबे | Oct 10, 2024
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह इजराइल-हमास संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध, पाकिस्तान-चीन संबंध और भारत के पड़ोसी देशों के साथ सुधरते संबंधों से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. इजराइल-हमास संघर्ष को एक साल पूरा होने पर ऐसा लग रहा है कि एक क्षेत्रीय युद्ध शुरू हो चुका है। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है? हम यह भी जानना चाहते हैं कि आखिरकार इजराइल ईरान में कहां पर बम बरसाने की तैयारी कर रहा है।
उत्तर- इजराइल का रुख दर्शा रहा है कि ईरान को करारा सबक सिखाया जायेगा। उन्होंने कहा कि यह करारा सबक क्या होगा इसको लेकर अटकलें भी चल रही हैं और दुनियाभर में चिंता भी देखी जा रही है। ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी इस मुद्दे पर आज इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से बात कर उन्हें संयम रखने और कार्रवाई के प्रभाव का ध्यान रखने को कहा है। उन्होंने कहा कि हालांकि बाइडन और नेतन्याहू के बीच हुई वार्ता को लेकर इस प्रकार की भी रिपोर्ट है कि इस दौरान ईरान पर हमले की योजना को अंतिम रूप दिया गया। उन्होंने कहा कि इसीलिए संभावित कार्रवाई को लेकर ईरान में भी दहशत देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि खबर है कि ईरानी अधिकारियों ने खाड़ी देशों को चेताया है कि वह उसके खिलाफ होने वाली इजराइली कार्रवाई के दौरान इजराइल को अपने हवाई क्षेत्र का उपयोग नहीं करने दें।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक क्षेत्रीय युद्ध की बात है तो यह बात सही है कि लगभग एक वर्ष पहले गाजा में शुरू हुआ संघर्ष पूरे पश्चिम एशिया में फैल चुका है। इजराइल अपनी सीमा से दूर देशों और समूहों से लड़ रहा है, जिसके कई वैश्विक परिणाम भी हैं। उन्होंने कहा कि ईरान द्वारा किये गये हमले से ये साफ है कि यह संघर्ष एक तरफ इजराइल व उसके पश्चिमी सहयोगियों और दूसरी तरफ रूस व चीन द्वारा समर्थित ईरान और उसके सहयोगियों के बीच सीधा टकराव बन गया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने इजराइल को सैन्य और कूटनीतिक सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जबकि रूस ने ईरान को लड़ाकू विमान और वायु रक्षा तकनीक भेजने का वादा किया है। उन्होंने कहा कि रूस, यूक्रेन के साथ अपने युद्ध के लिए ईरान से हथियार भी खरीद रहा है, जिससे तेहरान को बहुत जरूरी नकदी प्राप्त हो रही है। उन्होंने कहा कि लेकिन यह पूरी तरह क्षेत्रीय युद्ध में नहीं तब्दील होगा क्योंकि खाड़ी देशों ने ईरान को अपना समर्थन नहीं जताया है और ना ही फिलस्तीन और लेबनान के अन्य पड़ोसी इन दोनों देशों का किसी भी तरह से साथ दे रहे हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ईरान सीधे तौर पर जंग में शामिल हो चुका है इसलिए एक चीज जो तेहरान को बहुत चिंतित कर रही है वह यह है कि इजराइल, अमेरिका के साथ मिलकर उसके महत्वपूर्ण ठिकानों या फिर सुविधा केंद्रों को निशाना बना सकता है। उन्होंने कहा कि ईरान को उसके संचार और परिवहन नेटवर्क, वित्तीय संस्थान और तेल उद्योग पर हमले की आशंका हैं। इससे ईरान के भीतर अराजकता पैदा हो सकती है, जिससे सरकार को खतरा हो सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसी रिपोर्टें हैं कि तेहरान ने सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को किसी भी अनहोनी का शिकार होने से बचाने के लिए सुरक्षित स्थान पर भेज दिया है। उन्होंने कहा कि ईरानी नेताओं को डर सता रहा है कि इजराइल और अमेरिका उसके परमाणु ठिकानों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि इजराइल की ओर से ईरान को हमेशा के लिए एक बड़ा सबक सिखाने की तैयारी की जा चुकी है और अब इस ऑपरेशन को मूर्त रूप कभी भी दिया जा सकता है।
प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध में ताजा अपडेट क्या है? इस प्रकार की भी खबरें आई हैं कि उत्तर कोरिया के सैनिक रूस की ओर से यूक्रेन के लिए युद्ध लड़ रहे हैं। इन खबरों में क्या सच्चाई है?
उत्तर- दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्री का एक बयान आया है कि उत्तर कोरियाई सैनिक यूक्रेन में रूसी सैनिकों के साथ लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि दक्षिण कोरियाई राजनेताओं से चर्चा के दौरान रक्षा मंत्री किम योंग-ह्यून ने कहा कि इसकी "अत्यधिक संभावना" है कि 3 अक्टूबर को डोनेट्स्क के पास यूक्रेनी मिसाइल हमले में छह उत्तर कोरियाई अधिकारी मारे गए थे। उन्होंने कहा कि ऐसा ही दावा पिछले सप्ताह यूक्रेनी मीडिया ने भी किया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि उत्तर कोरिया और रूस के बीच संबंध बहुत अच्छे हैं इसलिए अगर उत्तर कोरियाई सैनिक रूस की ओर से लड़ रहे हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की इस विषय पर चुप्पी भी दर्शा रही है कि इस रिपोर्ट में कहीं ना कहीं कुछ तो सच्चाई है ही। बताया यह भी जा रहा है कि रूस की मदद करने के लिए उत्तर कोरिया जल्द ही और प्रशिक्षित सैनिकों को भेजेगा। उन्होंने कहा कि हालांकि उत्तर कोरिया ने इन आरोपों का खंडन किया है कि वह यूक्रेन पर हमले के लिए रूस की सेना को हथियारों की आपूर्ति कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह सभी को याद है ही कि किस तरह युद्ध के बीच ही किम जोंग उन ने रूस की यात्रा की थी और बाद में पुतिन भी उत्तर कोरिया की यात्रा पर गये थे।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक युद्ध के ताजा हालात की बात है तो अब एक चीज और देखने को मिल रही है कि कीव रूसी ऊर्जा बुनियादी ढांचे पर अपना हमला तेज करता जा रहा है। उन्होंने कहा कि ताजा हमले में यूक्रेन ने क्रीमिया प्रायद्वीप के तट पर एक बड़े तेल टर्मिनल पर हमला करने का दावा किया है। उन्होंने कहा कि रूस ने 2014 में इस प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने कहा कि रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि कीव द्वारा लॉन्च किए गए कुल 21 में से 12 यूक्रेनी ड्रोन रातोंरात प्रायद्वीप में मार गिराए गए। उन्होंने कहा कि वहीं इस बारे में यूक्रेन के जनरल स्टाफ ने कहा है कि टर्मिनल से भेजे गए तेल उत्पादों का इस्तेमाल "रूसी कब्जे वाली सेना की जरूरतों को पूरा करने" के लिए किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि बयान में कहा गया है कि मॉस्को के ऊर्जा क्षेत्र को बार-बार निशाना बनाकर, कीव का लक्ष्य रूस के राजस्व स्रोतों में सेंध लगाना है। उन्होंने कहा कि बयान में कहा गया है कि रूस को अपने तेल ठिकानों से जो कमाई हो रही है उसे वह युद्ध में खर्च कर रहा है इसलिए हम ऐसे ठिकानों को निशाना बनाते रहेंगे।
प्रश्न-3. पाकिस्तान ने चीन के हितों की खातिर सशस्त्र बलों के लिए 45 अरब रुपये के बजट को मंजूरी दी है। यहां सवाल उठता है कि जिस देश के पास सामान्य खर्च चलाने के लिए पैसा नहीं है वह दूसरे की सुरक्षा पर इतना खर्च क्यों और कैसे कर रहा है?
उत्तर- चीन ने पाकिस्तान में बड़ा निवेश तो कर ही रखा है साथ ही इस समय वह इस्लामाबाद का सबसे बड़ा आर्थिक मददगार भी है लेकिन जिस तरह चीनी कर्मियों पर हमले बढ़ रहे हैं उसके चलते चीनी नेतृत्व की चिंता बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों पाकिस्तान के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सैन्य और आईएसआई का नेतृत्व चीन का दौरा कर चुके हैं जहां उन्हें फटकार लगायी गयी और साफ कह दिया गया कि यदि आप चीनियों को सुरक्षा नहीं दे सकते तो हम अपनी सेना वहां भेज कर उनको सुरक्षा प्रदान करेंगे। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान जानता है कि यदि चीनी सेना देश में आई तो उसका जनता विरोध करेगी इसलिए चीनी नेतृत्व को खुश करने के लिए भारी भरकम राशि चीनियों को सुरक्षा देने के लिए रखी गयी है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तानी नेतृत्व ने यह कदम तब उठाया जब इसी सप्ताह पाकिस्तान के सबसे व्यस्त हवाई अड्डे के पास चीनी श्रमिकों के काफिले को निशाना बनाकर किए गए बलूच विद्रोही समूह के आत्मघाती हमले में दो चीनी नागरिकों की मौत हो गई और 17 लोग घायल हो गए। उन्होंने कहा कि यह हमला पाकिस्तान में चीनी श्रमिकों के खिलाफ हिंसा की श्रृंखला में नवीनतम घटना है। उन्होंने कहा कि यह हमला इस्लामाबाद में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन से दो सप्ताह से भी कम समय पहले हुआ। उन्होंने कहा कि प्रतिबंधित बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि यह विस्फोट एक आत्मघाती हमला था, जिसमें जिन्ना अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से निकल रहे चीनी इंजीनियरों और निवेशकों के काफिले को निशाना बनाया गया। उन्होंने कहा कि हमले में एक इलेक्ट्रिक पावर कंपनी के चीनी कर्मचारियों को ले जा रहे काफिले को निशाना बनाया गया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस हमले को जघन्य कृत्य बताया और चीनी लोगों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने एक बयान में कहा है कि आतंकवाद का यह निंदनीय कृत्य न केवल पाकिस्तान पर बल्कि पाकिस्तान और चीन के बीच स्थायी मित्रता पर भी हमला है। उन्होंने कहा कि विदेश कार्यालय ने कहा है कि पाकिस्तान और चीन घनिष्ठ साझेदार और भाइचारे का रिश्ता है, जो आपसी सम्मान और साझा नियति के बंधन से एकजुट हैं। उन्होंने कहा कि बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान चीनी नागरिकों, परियोजनाओं और पाकिस्तान में संस्थानों की सुरक्षा और संरक्षा के लिए अपनी अटूट प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है, और आतंकवादी ताकतों को हराने के लिए अपने चीनी भाइयों के साथ मिलकर काम करना जारी रखेगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ईरान और अफगानिस्तान की सीमा से सटा बलूचिस्तान लंबे समय से हिंसक विद्रोह का गढ़ रहा है। बलूच विद्रोही समूहों ने पहले भी चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजनाओं को निशाना बनाकर कई हमले किए हैं। उन्होंने कहा कि बीएलए चीन और पाकिस्तान पर संसाधन संपन्न प्रांत का शोषण करने का आरोप लगाता है। यह समूह लंबे समय से अलग मातृभूमि की मांग कर रहा है। पिछले दो सालों में इस समूह ने कराची में विदेशी नागरिकों को निशाना बनाकर इसी तरह के कई आत्मघाती बम हमले किए हैं। उन्होंने कहा कि इस साल मार्च में बीएलए ने चीन द्वारा संचालित ग्वादर बंदरगाह के पास एक पाकिस्तानी नौसैनिक हवाई अड्डे पर हमले की जिम्मेदारी ली थी। अप्रैल 2022 में, कराची विश्वविद्यालय के कन्फ्यूशियस संस्थान के पास इस समूह के एक आत्मघाती हमले में तीन चीनी प्रशिक्षक और एक पाकिस्तानी ड्राइवर की मौत हो गई। नवंबर 2018 में, कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास पर हुए हमले में बंदूकधारियों ने कम से कम चार लोगों की हत्या कर दी थी।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसीलिए पाकिस्तान सरकार ने सशस्त्र बलों के लिए 45 अरब रुपये का अतिरिक्त बजट उपलब्ध कराने का फैसला किया है, ताकि नकदी की कमी से जूझ रहे देश में चीन के वाणिज्यिक हितों की रक्षा करने और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर बाड़ लगाने का प्रबंधन करने की उसकी क्षमता को मजबूत किया जा सके। उन्होंने कहा कि 45 अरब रुपये में से 35.4 अरब रुपये सेना को और 9.5 अरब रुपये नौसेना को विभिन्न उद्देश्यों के लिए दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि जून में बजट की मंजूरी के बाद सशस्त्र बलों के लिए स्वीकृत यह दूसरा बड़ा अनुपूरक अनुदान है। इससे पहले ईसीसी ने ‘ऑपरेशन अज्म-ए-इस्तेहकाम’ के लिए 60 अरब रुपये दिए थे। उन्होंने कहा कि ये अनुपूरक अनुदान 2127 अरब रुपये के रक्षा बजट के अतिरिक्त है। उन्होंने कहा कि आतंकवादी हमलों की बढ़ती संख्या के कारण, चीन ने अपनी सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए आतंकवाद विरोधी सहयोग पर एक समझौते पर हस्ताक्षर करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि चीन ने पाकिस्तान में पहले से काम कर रहे अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक संयुक्त कंपनी की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा है।
प्रश्न-4. ऐसा लग रहा है कि भारत अपने पड़ोसियों से बेहतर संबंध बनाने पर जोर दे रहा है। हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर श्रीलंका गये, वह जल्द ही पाकिस्तान भी जाएंगे। जयशंकर मालदीव भी गये थे। मालदीव के राष्ट्रपति भी भारत यात्रा पर आये। नेपाल के साथ भी संबंध बेहतर हो रहे हैं। खासतौर पर जिस तरह मालदीव के साथ भारत के संबंधों में आश्चर्यजनक सुधार आया है उसके क्या कारण रहे?
उत्तर- भारत के साथ संबंधों के प्रति मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का बदला हुआ दृष्टिकोण कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि यह पहले से लग रहा था कि जिस दिन उनको चीन की सच्चाई समझ आयेगी उस दिन वह भारत के प्रति कड़वी भाषा का उपयोग बंद कर देंगे। उन्होंने कहा कि कर्ज में डूबे अपने देश को उबारने के लिए मुइज्जू को भारत की मदद की सख्त जरूरत है इसलिए चुनावों में इंडिया आउट का नारा देने वाले मुइज्जू भारत की शरण में आये हैं। उन्होंने कहा कि चीन की यात्रा के दौरान ढेरों आश्वासन मिलने के बावजूद मुइज्जू अपने देश के लिए कुछ ठोस हासिल नहीं कर पाये इसलिए भारत से मदद मांगने आये हैं। उन्होंने कहा कि दरअसल मालदीव को ऋण भुगतान में चूक का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उसका विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 440 मिलियन डॉलर हो गया है, जिससे कि सिर्फ डेढ़ महीने तक ही वस्तुओं का आयात किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह द्विपीय राष्ट्र खाने पीने से लेकर अपनी तमाम जरूरतों के लिए विदेशों से सामान आयात करता है। विदेशों से सामान आयात करने के लिए उसे डॉलर की जरूरत है। विदेशी कर्ज चुकाने के लिए भी उसे डॉलर की जरूरत है। इसलिए मालदीव के सामने मुश्किल यह है कि वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े डॉलरों से कर्ज चुकाये या अपनी जनता के लिए जरूरत का सामान मंगवाये।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस साल जनवरी में दोनों देशों के संबंधों में आये तनाव के मद्देनजर भारतीयों ने मालदीव में पर्यटन का बहिष्कार कर दिया था जिससे वहां की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुँचा है। उन्होंने कहा कि मुइज्जू को अपनी चीन यात्रा के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग से आश्वासन मिला था कि वह बड़ी संख्या में चीनियों को मालदीव में पर्यटन के लिए भेजेंगे लेकिन चीन से कोई नहीं आया। बताया जाता है कि मालदीव जाने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या में 50,000 की गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप देश को लगभग 150 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है। इसलिए मालदीव के राष्ट्रपति ने अपने भारत दौरे के दौरान कहा है कि वह मालदीव में बड़ी संख्या में भारतीय पर्यटकों का स्वागत करने के लिए उत्सुक हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मुइज्जू ने परोक्ष रूप से भारत पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि इस छोटे से देश को "धमकाने का लाइसेंस" किसी के पास नहीं है। उन्होंने भारत के लिए अपने सैन्य कर्मियों को देश से वापस बुलाने के लिए 15 मार्च की समय सीमा भी तय की थी। मगर अब मुइज्जू भारत को साथ लेकर चलना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने कहा है कि मालदीव कभी भी ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे भारत की सुरक्षा कमजोर हो।