एनएसजी सदस्यता पर चीन का तर्क भारत ने किया खारिज

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | May 20, 2016

भारत ने चीन की यह दलील आज खारिज कर दी कि उसे परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता हासिल करने के लिए एनपीटी पर हस्ताक्षर अवश्य ही करना चाहिए और कहा कि फ्रांस को परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर किए बगैर ही इस संगठन में शामिल कर लिया गया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, ‘‘मैं समझता हूं कि यहां कुछ भ्रम है। यहां तक कि एनपीटी भी गैर एनपीटी देशों के साथ परमाणु सहयोग की इजाजत देता है। यदि कोई संबंध है तो यह एनएसजी और आईएईए सुरक्षा मानकों और निर्यात नियंत्रणों के साथ है।’’

 

उनसे चीन के एक अधिकारी के इस बयान के बारे में पूछा गया था कि चीन भारत द्वारा परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करने के बाद एनएसजी के लिए उसकी कोशिश का समर्थन करेगा। स्वरूप ने कहा, ‘‘एनएसजी सदस्यों को सुरक्षा मानकों और निर्यात नियंत्रणों का सम्मान करना है, परमाणु आपूर्ति एनएसजी दिशानिर्देश के अनुरूप हो। एनएसजी एक तदर्थ निर्यात नियंत्रण व्यवस्था है तथा फ्रांस, जो कुछ समय से एनपीटी सदस्य नहीं था, एनएसजी का सदस्य था, क्योंकि वह एनएसजी के उद्देश्यों का सम्मान करता था।’’

 

चीन ने भारत की एनएसजी सदस्यता की कोशिश का इस आधार पर विरोध किया है कि उसने अब तक एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है। उसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने कहा था कि एनएसजी समेत सभी बहुपक्षीय परमाणु अप्रसार एवं निर्यात नियंत्रण व्यवस्था ने एनपीजी के विस्तार के लिए एनपीटी को एक महत्वपूर्ण मापदंड माना है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत के अलावा, ढेर सारे अन्य देशों ने जुड़ने की इच्छा प्रकट की है। तब यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए प्रश्न खड़ा होता है- क्या गैर एनपीटी सदस्य भी एनएसजी के सदस्य बनेंगे?’’

 

उन्होंने कहा, ‘‘चीन का रूख किसी खास देश के विरूद्ध नहीं है बल्कि यह सभी गैर एनपीटी सदस्यों पर लागू होता है।’’ चीन के विदेश उपमंत्री लिउ झेनमिन ने बाद में इस बात का खंडन किया कि उनका देश भारत द्वारा एनएसजी का सदस्य बनने के लिए की जा रही कोशिश में टांग अड़ा रहा है और कहा कि चीन 48 राष्ट्रों के इस संगठन के सदस्यों और भारत के साथ मिलकर इसका हल ढूंढने के लिए काम करेगा। उन्होंने कहा था, ‘‘परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के सदस्यों को एनपीटी का हिस्सा होना चाहिए। अतएव, मैं सोचता हूं कि चीन इसका हल ढूंढ़ने के लिए भारतीय सहयोगियों समेत अन्य लोगों के साथ मिलकर काम करेगा।’’ राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अगले हफ्ते अपनी चीन यात्रा के दौरान यह मुद्दा उठा सकते हैं।

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