भारी उद्योगों को कार्बन उत्सर्जन मुक्त बनाने की पहल में शामिल हुआ भारत

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | May 25, 2022

 दावोस|  भारत भारी उद्योगों और लंबी दूरी वाले परिवहन क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की वैóश्विक पहल ‘फर्स्ट मूवर्स कोलिशन’ में शामिल हुआ है। वैóश्विक कार्बन उत्सर्जन में इन दोनों क्षेत्रों की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत है।

जलवायु मामलों पर अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत जॉन केरी ने बुधवार को इसकी घोषणा की। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और विóश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) ने जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप 26) में इस पहल की शुरुआत की थी।

इस सार्वजनिक-निजी भागीदारी का मकसद सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाले क्षेत्रों को पर्यावरण के हिसाब से स्वच्छ बनाना है। इस पहल से 50 नई कंपनियां जुड़ी हैं जिनका बाजार पूंजीकरण 8,500 अरब डॉलर है।

नीतिगत उपायों और निजी कंपनियों के सहयोग से स्वच्छ प्रौद्योगिकी के लिये बाजार तैयार करने को लेकर अमेरिका की इस पहल से भारत के अलावा, डेनमार्क, इटली, जापान, नॉर्वे, सिंगापुर, स्वीडन और ब्रिटेन भी सरकारी भागीदार के रूप में जुड़े हैं। जापान और स्वीडन के साथ भारत भी गठबंधन के संचालन मंडल में शामिल है।

केरी ने ब्रेकथ्रू एनर्जी के संस्थापक बिल गेट्स के साथ विश्व आर्थिक मंच की बैठक के दौरान संवाददाता सम्मेलन में यह घोषणा की। वाणिज्य और उद्योग मंत्री मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, ‘‘भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने से जुड़े कार्यों में सबसे आगे रहा है। हमारा जीवन को लेकर विचार ...‘‘पर्यावरण के लिए जीवन शैली’’...। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह रेखांकित किया है। जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के प्रधानमंत्री का सतत यानी पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली के लिये वैश्विक जन आंदोलन का आह्वान काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन, एक सूर्य, एक दुनिया, एक ग्रिड जैसे कदमों के साथ वैश्विक स्तर पर अगुवाई कर रहा है।

गोयल ने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि तकनीकी नवोन्मेष को मजबूत करना समय की जरूरत है ताकि बड़े पैमाने पर कम लागत वाली जलवायु प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जा सके। इसमें और हमारे जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये ‘फर्स्ट मूवर्स कोलिशन’ की बड़ी भूमिका है।’’

अमेरिका और डब्ल्यूईएफ की पहल में ‘फर्स्ट मूवर्स कोलिशन’ में एल्युमीनियम, विमानन, रसायन, कंक्रीट, पोत परिवहन, इस्पात जैसे क्षेत्रों पर जोर दिया गया है। इन क्षेत्रों का वैश्विक उत्सर्जन में 30 प्रतिशत का हिस्सा है।

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