By अंकित सिंह | Mar 20, 2024
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हमारा देश तेजी से विकास के रास्ते पर है। हालांकि, एक सवाल हम सबके सामने बार-बार आता है कि देश पर करोड़ों का कर्ज भी है। सरकार ने भी इसको स्वीकार किया है। विपक्ष इसको लेकर लगातार सरकार पर सवाल खड़े करता है। दावा किया जाता है कि प्रत्येक भारतीय पर लगभग 1.5 लाख का कर्ज है। हालांकि, बड़ा सवाल यही है कि देश पर इतना बड़ा कर्ज होने के बावजूद नेता मुफ्तखोरी की संस्कृति को आगे बढ़ाने में लगे रहते हैं। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, कोई भी इसको लेकर सख्त होता दिखाई नहीं देता है। दोनों ओर से मुफ्तखोरी को कैसे रोका जाए, इसको लेकर ठोस कार्रवाई की बात नहीं की जाती। यही कारण है कि मुफ्तखोरी पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट में डाला गया है। सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई भी हो रही है। इसी को लेकर देश के प्रसिद्ध अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय ने अपनी बात रखी है, सुनते हैं।
अश्वनी उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत पर 225 लाख करोड रुपए का कर्ज है और प्रत्येक भारतीय पर 1.5 लख रुपए का खर्च है। इसके साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि राजनीतिक दल मुफ्तखोरी को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली की सरकार एक-एक हजार देने का वादा कर रही है, हिमाचल प्रदेश की सरकार डेढ़-डेढ़ हजार रुपए देने की बात कर रही है। चुनावी माहौल में रेवड़ी बांटने की बात की जा रही है। कुछ दल स्कूटी देने की बात कह रहे हैं, कुछ मुफ्त बिजली पानी की सुविधा देने की बात कर रहे हैं, कोई स्मार्टफोन देने की बात कर रहा है, कुछ ने तो मंगलसूत्र देने की बात कह दी है। राजनीतिक दलों की ओर से लगातार चुनाव जीतने के लिए वायदे किए जा रहे हैं और मुफ्तखोरी को बढ़ावा दिया जा रहा है। हालांकि इन राजनीतिक दलों को यह बात अच्छे तरीके से पता है कि खजाना खाली है। बावजूद इसके उनकी ओर से ही ऐसी बातें कही जा रही है।
उपाध्याय ने कहा कि देश पर इतना बड़ा कर्ज होने के बावजूद राजनीतिक दल मनमाने ढंग से वायदे कर रहे हैं और चुनाव जीतने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपना रहे है। चुनाव से पहले खाते में मुफ्त में पैसे भेजना अपने आप में घूसखोरी है, भ्रष्टाचार है और इसे बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कानून में हमारे कुछ खामी है। इसी की वजह से राजनीतिक दलों पर कोई एक्शन नहीं हो पता है। उन्होंने कहा कि मेनिफेस्टो को लेकर कोई मॉडल नहीं है। इस वजह से राजनीतिक दल मनमानी ढंग से वायदे करते हैं। मेनिफेस्टो बनाते समय राजनीतिक दलों को यह बताना चाहिए कि वह इन वादों को वे कैसे पूरा करेंगे। उन्होंने कहा कि इलेक्शन कमीशन को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि जो भी दल मनमाने ढंग से वायदे कर रहे है उन्हें डी रजिस्टर किया जा सके।