पाकिस्तान के कप्तान लौटने वाले हैं पवेलियन! इमरान के लिए एक तरफ कुंआ एक तरफ खाई, सत्ताबदर करने की तैयारी में विपक्ष, सेना और ISI

By अभिनय आकाश | Nov 17, 2021

तख्‍तापलट क्या है, ऐसी स्थिति जब सेना, अर्धसैनिक बल या फिर विपक्षी पार्टी वर्तमान सरकार को हटाकर खुद सत्‍ता पर काबिज हो जाते हैं। जबकि मिलिट्री कूप यानी सैन्‍य तख्‍तापलट में सेना सरकार को हटाकर सिर्फ एक दिखावटी असैन्‍य सरकार को स्‍थापित कर देती है। बोलिविया दुनिया का वह देश है जिसने अब तक कई बार तख्‍तापलट का दौर देखा है। सन् 1950 से लेकर 2019 तक देश में 23 बार तख्‍तापलट या तख्‍तापलट की कोशिशें हुई हैं। वैसे तो शीत युद्ध के बाद तख्‍तापलट की कोशिशों में आश्‍चर्यजनक तौर पर कमी आई। 1950 से 1989 यानी 39 सालों में दुनिया में 350 बार तख्‍तापलट हुए। जबकि 1990 से 2019 यानी 19 वर्षों में 113 तख्‍तापलटों का रिकॉर्ड दर्ज हुआ। लेकिन भारत के पड़ोसी देश पाकिस्‍तान में इन दिनों तख्तापलट को लेकर चर्चाएं खूब तेज हैं। वैसे तो सैन्य तख्तापलट का पुराना पाकिस्तानी इतिहास रहा है और वहां आजादी के कुछ वर्षों के बाद ही इसे बखूबी अंजाम दिया गया और आगे के वर्षों में दिया जाता रहा। लेकिन अब वहां इमरान खान की सरकार के खिलाफ तख्तापलट की कोशिशें शुरू हो गई हैं। 

इसे भी पढ़ें: आजादी के 75वां वर्ष होने पर 465 स्थलों पर होगी भारत माता की आरती, 75000 लोग गाएंगे वंदे मातरम

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान जब से अमेरिका से वापस आए हैं तब से उनपर कई तरह के खतरे मंडरा रहे हैं। दरअसल, माना जा रहा है कि पाकिस्तान की सेना, आम लोग विपक्षी दल के नेता और यहां तक की उनकी पार्टी के कई नेता इमरान खान से खुश नहीं हैं। ऐसे में क्या अब इमरान खान की छुट्टी हो जाएगी। क्या वे वापस पवेलियन लौट जाएंगे। इन दिनों इस पाकिस्तान में तख्तापलट की आशंकाओं को लेकर खबरें मीाडिया जगत में सुर्खियों में हैं। इमरान को सत्ता से बेदखल कर पाकिस्तान की सेना या तो अपने नुमाइंदे या फिर आर्मी चीफ बाजवा को गद्दी पर बैठा सकती है। ऐसा बस ऐसे ही नहीं कहा जा रहा है। बल्कि पाकिस्तान में इस वक्त घटित घटनाक्रमों से इसे बल भी मिल रहा है।

इमरान के लिए एक तरफ कुंआ एक तरफ खाई

पाकिस्तान में इमरान खान की हालात ऐसी है कि एक तरफ कुआं है तो एक तरफ खाई है। एक तरफ जहां पाकिस्तान में इमरान खान के गिरने की आशंका जताई जा रही है। वहीं सुप्रीम कोर्ट से लेकर सेना तक से इमरान को झटका लगा है। जिसके बाद वो हिले हुए और डरे हुए नजर आ रहे हैं। पाकिस्तान में इमरान खान से इस्तीफा मांगा जा रहा है। संसद में इमरान सरकार ने एक बिल पेश किया था लेकिन सपोर्ट नहीं मिलने की वजह से ये पास नहीं हो सका। जिसके बाद विपक्षी पार्टियों ने ये कहा कि इमरान सरकार के पास बहुमत नहीं है। ये भी हो सकता है कि आने वाले समय में इमरान सरकार को जल्द ही बहुमत सिद्ध करने के लिए कहा जाए। पाकिस्तानी पत्रकारों ने तो इमरान सरकार के गिरने की तारीख तक बता रहे है।

इसे भी पढ़ें: क्या है करतारपुर साहिब का इतिहास जहां सिर्फ सिख ही नहीं मुसलमान भी झुकाते हैं सिर, पाकिस्तान में होने के बावजूद भारत के श्रद्धालु कैसे करते हैं दर्शन?

बाजवा ने इमरान को कहा 'ना'

अब जरा पाकिस्तान में इमरान खान की मौजूदगी को समझते हैं। इमरान खान की सबसे नई दुश्मनी पाकिस्तानी जनरल कमर जावेद बाजवा से हुई है। प्रधानमंत्री इमरान खान ने तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग करने का आदेश पाकिस्तानी आर्मी चीफ को दिया। लेकिन बाजवा ने साफ कर दिया कि वो तहरीक-ए-लब्बैक के खिलाफ बल का प्रयोग नहीं करेंगे। बता दें कि तहरीक-ए-लब्बैक इमरान के लिए गले का कांटा बन गई है। जैसे ही इस संगठन ने इस्लामाबाद कूच किया इमरान सरकार की धड़कने तेज हो गई। आनन-फानन में रेंजर्स को तैनात किया गया लेकिन वो भी इन्हें रोकने में नाकामयाब नजर आने लगे। तब इमरान ने आर्मी चीफ बाजवा से मुलाकात कर तहरीक-ए-लब्बैक के खिलाफ एक्शन लेने की बात कही। लेकिन बाजवा ने इससे साफ इनकार कर दिया। 

फैज हमीद की विदाई से इमरान को लगा झटका

जिस पाकिस्तानी आर्मी ने बड़ी उम्मीदों के साथ इमरान को सत्ता पर बैठाया था। आज वही आर्मी इमरान के खिलाफ है। इमरान हर मोर्चे पर नाकाम रहे तो पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और इमरान खान के बीच दूरियां भी बढ़ती रही। इसके बाद इमरान की आखिरी उम्मीद आईएसआई चीफ फैज हमीद थे। लेकिन उनकी विदाई से इमरान खान को गहरा झटका लगा है। इमरान खान फैज हमीद के कार्यकाल को बढ़ाना चाहते थे। लेकिन उनकी उम्मीदों को तब बड़ा झटका लगा जब बाजवा के करीबी लेफ्टिनेंट नदीम अहमद अंजुम आईएसआई के पूर्व चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज़ हमीद को ये कमान सौंपना चाहते थे। बाजवा के दवाब में इमरान को हामी बढ़नी पड़ी। फैज हमीद जिन्हें इमरान ख़ान का बहुत करीबी माना जाता है। फैज हमीद ने ही वर्ष 2018 में इमरान खान की पार्टी को चुनाव में जिताने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी। अगले साल यानी वर्ष 2022 में पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा रिटायर हो रहे हैं और उसके अगले साल यानी वर्ष 2023 में पाकिस्तान में चुनाव होने हैं। इमरान खान चाहते थे कि फैज हमीद को नया सेना प्रमुख बनाया जाए और इसके बदले में फैज हमीद उन्हें 2023 का चुनाव जिताने में मदद करें। पाकिस्तान की सेना इसके लिए तैयार नहीं हुई और इमरान खान का ये प्लान बेकार हो गया।

इसे भी पढ़ें: किसकी वजह से हुआ भारत का विभाजन? गांधी की जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने की पेशकश, नेहरू ने अव्यावहारिक बताया

पाकिस्तान में सैन्य तख्तापलट की शुरुआत

साल 1958 में पाकिस्तान में पहली बार तख्तापलट हुआ था। उस वक्त पाकिस्तानी आर्मी ने तत्कालीन सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन को बढ़ावा दिया। पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति मेजर जनरल इस्कंदर मिर्ज़ा ने पाकिस्तानी संसद और प्रधानमंत्री फिरोज खान नून की सरकार को भंग कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने देश में मार्शल लॉ लागू कर आर्मी कमांडर इन चीफ जनरल अयूब खान को देश की सत्ता सौंप दी। तेरह दिन बाद ही अयूब खान ने तख्तापलट करते हुए देश के राष्ट्रपति को पद से हटा दिया था और खुद नए राष्ट्रपति बन गए थे। 

1977 में  फिर लौटा सेना का राज

जिया उल हक़ दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़े थे। ब्रिटिश इंडियन आर्मी में अफसर थे। हिंदुस्तान के आज़ाद होने के बाद इन्होंने पाकिस्तान चुना। लौट के आये तो प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने इनको चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ बना दिया। 5 जुलाई 1977 को जिया ने तख्तापलट कर दिया। ये हुआ 4 और 5 जुलाई, 1972 की दरम्यानी रात को। पाकिस्तान रात को जब सोया, तो लोकतंत्र था। अगली सुबह जगा, तो मालूम हुआ कि सेना का राज फिर लौट आया है। भुट्टो न केवल सत्ता से बेदखल हुए, बल्कि उन्हें जेल भी भेज दिया गया। अक्टूबर, 1977 में जुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ हत्या का मुकदमा शुरू किया गया। मुकदमा लोअर कोर्ट में नहीं सीधे हाईकोर्ट में शुरू हुआ। उन्हें फांसी की सजा मिली। सुप्रीम कोर्ट ने भी बहुमत निर्णय में फांसी की सजा बहाल रखी। अप्रैल, 1979 में रावलपिंडी जेल में उन्हें फांसी से लटका दिया गया। भुट्टो के आखिरी शब्द थे, ‘या खुदा, मुझे माफ करना मैं बेकसूर हूं। दुनिया का सबसे पुराना लोकतांत्रिक देश अमेरिका जिया के सपोर्ट में था। क्योंकि जिया अमेरिका की मदद कर रहे थे अफगानिस्तान में रूस के खिलाफ। नतीजा ये हुआ कि जिया ने पाकिस्तान में एटम बम बनाने की प्रक्रिया तेज कर दी। 

इसे भी पढ़ें: यमुना की दुर्दशा की कहानी: हजारों करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी क्यों काला पानी और जहरीला झाग तैरता नजर आता है

कारगिल युद्ध का बहाना बना कर नवाज शरीफ को किया गया सत्ताबदर

पाकिस्तान में एक बार फिर तख्तापलट का दौर देखने को मिला और परवेज मुशर्रफ तीसरे मिलिट्री कमांडर थे, जिन्होंने पाकिस्तान पर शासन किया, जब उन्होंने 1999 में नवाज शरीफ की लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलट कर दिया था। उन्होंने देश के संविधान को सस्पेंड कर दिया था।  इसके बाद मुशर्रफ खुद पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति बन गए। दिलचस्प है कि नवाज शरीफ को 2017 में भ्रष्टाचार के मामले में 10 साल जेल की सजा सुनाई गई, जब उन्हें इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा। वह भी फिलहाल लंदन में हैं और कई सारी बीमारियों के लिए इलाज ले रहे हैं। 

सेना को है अब नवाज शरीफ की जरूरत

ये तो हर कोई जानता है कि इमरान खान को प्रधानमंत्री बनाने के पीछे वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई और पाक सेना का हाथ है। लेकिन अब वहीं सेना पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ के साथ खड़ी नजर आ रही है। मीडिया रिपोर्ट की माने तो पाकिस्‍तान की सेना ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को देश लौटने का संकेत दिया है। सीएनएन-न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार नवाज शरीफ को कहा गया कि उनकी पाकिस्तान में जरूरत है और उन्हें वापस आना चाहिए। 2018 में हुए आम चुनाव में इमरान खान कैसे प्रधानमंत्री बने इसे लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है। पाकिस्तान की मीडिया में आई ये रिपोर्ट बताने के लिए काफी है कि वहां की न्यायपालिका कितनी करप्ट है। जो रिपोर्ट सामने आई है वो पूर्व पीएम नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम नवाज से जुड़ी है। गिलगिट बाल्टिस्तान के पूर्व जज राणा एम शमीम ने अपने एक शपथ पत्र में कहा है कि उनपर पंजाब हाइकोर्ट से इस बात का दवाब बनाया गया कि नवाज और उनकी बेटी मरियम किसी भी हाल में 25 जुलाई 2018 के आम चुनाव से पहले जेल से बाहर न आ पाए। दरअसल भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराए गए नवाज शरीफ ने हाइकोर्ट में जमानत के लिए अर्जी लगाई है। भ्रष्ट जज की वजह से सुनवाई आम चुनाव के बाद हुई।  अब पूर्व जज की तरह में हलफनामा भी दाखिल किया गया है। कहा जा रहा  है कि ये हलफनामा भी सेना की अनुमति लेकर ही दाखिल किया गया है। 

इसे भी पढ़ें: आखिर क्यों स्वाभाविक मौत से पहले ही खत्म हो जाती है पाकिस्तानी नेताओं की पारी

इमरान सरकार बिल पास नहीं करा सकी 

10 नवंबर को इमरान खान ने संसद का संयुक्त सत्र बुलाने का फैसला लिया। लेकिन 30 मिनट बाद ही इसे टाल दिया। असल में इमरान एक बिल पास करना चाहते थे लेकिन वो अपने सहयोगी दलों को भी सपोर्ट करने के लिए राजी नहीं कर पाए। सासंदों को अपने पक्ष में करने के लिए इमरान खान ने लंच का प्रोग्राम रखा। सहयोगी पार्टियों को बुलाया। समर्थन के लिए जिहाद वाला भाषण भी दिया। लेकिन सारी कवायद बेकार साबित हुई। इमरान खान के सांसद ने एक बिल पेश किया लेकिन वो पास नहीं हो सका। जबकि विपक्षी दलों ने अपना बिल संसद में रखकर बहुमत से पास करा लिया। यानी पाकिस्तान में सरकार तो इमरान की है लेकिन उनके सांसद ही अपने कप्तान के खिलाफ वोटिंग कर रहे हैं। संसद में विपक्ष की मर्जी से बिल पास हो रहे हैं। इस्लामाबाद में किसी सरकार ने ऐसी शर्मिंदगी का सामना आज तक नहीं किया। जिसके बाद से ही पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर इमरान खान की सरकार के गिरने की अटकलें लगाई जाने लगी। पाकिस्तान का इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी वहां राजनैतिक अस्थिरता फैलती है तो सेना  को तख्ता पलट का मौका मिल जाता है। इसके साथ ही इस बात को लेकर भी चर्चा है कि सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बावजा इमरान खान की अगले साल उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है और वो तख्ता पलट के जरिए ही पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज रह सकते हैं।

-अभिनय आकाश 

प्रमुख खबरें

मुंबई में बहुमंजिला इमारत में आग लगी, कोई हताहत नहीं

उत्तर प्रदेश में डकैती का आरोपी 17 साल बाद महाराष्ट्र से पकड़ा गया

मणिपुर: सेना ने लापता व्यक्ति की तलाश में ड्रोन और खोजी कुत्ते तैनात किये

दिल्ली पुलिस ने नकाबपोश लुटेरे की पहचान करने के लिए ‘एआई’ का इस्तेमाल किया