By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Apr 26, 2020
नयी दिल्ली। कोविड-19 की वहनीय जांच पद्धति से लेकर पृथक वार्डों में भोजन एवं दवाइयां देने के लिये रोबोट का इस्तेमाल, बड़े इलाकों में ड्रोन से दवाइयों का छिड़काव करने और खाने-पीने की चीजों को संक्रमण मुक्त करने के लिये पराबैंगनी (अल्ट्रा वॉयलेट) किरणों का इस्तेमाल जैसे उपायों के जरिए देश में आईआईटी सहित कई संस्थान कोरोना वायरस महामारी से निपटने में नवोन्मेष का बखूबी उपयोग कर रहे हैं।
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कोरोना वायरस का टीका विकसित करने के लिये 20 से अधिक तकनीकी और वैज्ञानिक संस्थान काम कर रहे हैं, वहीं आईआइटी ने ‘कोविड-19 विशेष शोध केंद्र’ स्थापित किये हैं। इन गतिविधियों से नवोन्मेष के माहौल को प्रोत्साहन मिल रहा है। कोरोना वायरस संक्रमण की वैकल्पिक क्लीनिकल जांच विकसित करने वाला दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) देश में ऐसा पहला संस्थान बन गया है। इस जांच को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भी मंजूरी दी है। उपलब्ध मौजूदा जांच पद्धति ‘जांच-आधारित’ है, जबकि आईआईटी टीम ने जो जांच पद्धति विकसित की है वह ‘‘जांच-मुक्त’’ पद्धति है, जिसने सटीकता से कोई समझौता किये बगैर जांच की लागत घटा दी है।
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आईआईटी दिल्ली के निदेशक वी रामगोपाल राव ने कहा, ‘‘इस पद्धति को आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है क्योंकि इसमें फ्लोरोसेंट जांच की जरूरत नहीं है। टीम वहनीय कीमतों पर और उपयुक्त औद्योगिक साझेदार के साथ यथाशीघ्र किट उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखे हुए है।’’ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलोर में शोधार्थी कोविड-19 संक्रमण का पता लगाने के उपाय पर काम कर रहे हैं जो सांस, खांसी और आवाज पर आधारित हो। इस उपाय को मान्यता मिलने के बाद जांच की पेशकश करेंगे, जो स्वास्थ्य कर्मियों के लिये न्यूनत जोखिम पैदा करेगा और मौजूदा जांच पद्धति की तुलना में कहीं अधिक तेजी से नतीजे देगा। इस बीच, रोम का एक विश्वविद्यालय कृत्रिम बुद्धिमत्तता खुफिया जानकारी आधारित औजार का पेटेंट प्राप्त करने के लिये प्रायोगिक परीक्षण कर रहा है। इसे जैव प्रौद्योगिकी के तीन छात्रों और मुंबई के एक प्रोफेसर ने विकसित किया है।
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उनका दावा है कि यह स्मार्टफोन का उपयोग कर आवाज के आधार पर कोविड-19 संक्रमण का पता लगा सकता है। रोम में स्थित टोर वेरगाटा विश्वविद्यालय इस जांच पद्धति का परीक्षण कर रहा है।इसका 300 लोगों पर परीक्षण किया जा चुका है और इसने 98 प्रतिशत सटीक नतीजे दिये हैं। अस्पतालों में इस्तेमाल के लिये विशेष संक्रमण मुक्त कपड़ा, कोरोना वायरस की कम लागत वाली जांच, कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिये आइसोलेशन पॉड, पारंपरिक ऑक्सीजन मास्क के विकल्प ‘बबल हेलमेट’ और सामाजिक मेलजोल से दूरी का उल्लंघन करने पर सतर्क करने वाले लॉकेट उन नवोन्मेषी विचारों में शामिल हैं जिन्हें कोरोना वायरस महामारी फैलने के बाद से देश में मूर्त रूप दिया गया है।
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आईआईटी रोपड़ ने ट्रंक के आकार वाला एक उपकरण विकसित किया है जो अल्ट्रा वॉयलेट प्रौद्योगिकी से लैस है। उसने इसे दरवाजों पर लगाने का सुझाव दिया है। साथ ही, बाहर से लाई जाने वाली खाने-पीने की चीजों और करेंसी नोट सहित हर चीज को इससे होकर गुजारने का भी सुझाव दिया है। आईआईटी बॉम्बे स्टार्टअप ने एक ‘डिजिटल स्टेथेस्कोप’ विकसित किया है जो एक तय दूरी से दिल की धड़कन सुन सकता है और उन्हें रिकार्ड कर सकता है, इससे स्वास्थ्यकर्मियों को कोविड-19 मरीजों के संपर्क में आने से होने वाला खतरा कम होगा। रोगी के सीने से प्राप्त आवाज को ब्लूटूथ के जरिये डॉक्टर के पास भेजा जा सकता है। आईआईटी मद्रास ने ‘नेगेटिव प्रेशर मेडिकल केबिन’ विकसित किया है। एक वाइड एंगल कैमरा भी विकसित किया जा रहा है जो शरीर के अधिक तापमान का पता लगाएगा और लोगों को आगाह करेगा। इसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थलों पर लगाया जाएगा। आईआईटी रूड़की के एक प्रोफेसर ने दावा किया है कि उन्होंने एक ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित किया है जोसंदिग्ध रोगी का एक्स-रे स्कैन कर पांच सेकेंड के अंदर कोविड-19 संक्रमण का पता लगा सकता है। इसे विकसित करने वाले प्रोफेसर ने इसके लिये पेटेंट का आवेदन किया है और समीक्षा के लिये भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) से संपर्क किया है।
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आईआईटी गुवाहाटी में शोधार्थियों के एक समूह ने बड़े इलाकों में दवाओं का छिड़काव कर उन्हें संक्रमण मुक्त करने के लिये एक ड्रोन विकसित किया है, जबकि एक अन्य समूह ने इंफ्रारेड कैमरों से लैस ड्रोन विकसित किया है जो लोगों की समूह में थर्मल स्क्रीनिंग करने में मदद कर सकता है और कोविड-19 के संदिग्ध मामलों की शुरूआती दौर में पहचान कर सकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, देश में कोविड-19 से मरने वाले लोगों की संख्या रविवार को बढ़ कर 824 हो गई और संक्रमण के मामले बढ़ कर 26,496 हो गये हैं।