अपने विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम का नाम ही भाषा है। भाषा को लेकर आधुनिक विचारकों का मानना है कि भाषा वह है जिसमें ध्वनि पायी जाती हो और विचारों के प्रकटीकरण में सहयोग करती हो। सुकुमार कवि के नाम से प्रख्यात सुमित्रानंदन पंत का कहना है कि भाषा एक प्रकार से विचारों का नादमय तंत्र, धवन्यात्मक स्वरूप एवं हृदयतंत्र की झंकार है, जिसके माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान होता है। वहीं भाषा के संदर्भ में प्लेटो का मत है कि विचार हमारी आत्मा की मूक बातचीत के स्वरूप में होते हैं, जब यह होठों से बाहर निकलकर ध्वन्यात्मक रूप ले लेते हैं तो वह भाषा है। भाषा को अकसर संस्कृति की परिचायक के रूप में देखा जाता रहा है। किसी भी देश की समृद्ध संस्कृति का अंदाजा भाषा के द्वारा सहज लगाया जा सकता है। किसी भी क्षेत्र की भाषा पर वहां के परिवेश का असर सर्वाधिक पड़ता है। ऐसे में हम भाषा के जरिए उस समाज के सभ्य होने या न होने का आकलन कर सकते हैं।
हमारी संविधान सभा ने हिंदी भाषा को 14 सितंबर 1949 के दिन राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। इसलिए हम 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया करते हैं। आज हिंदी भाषा न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में बड़े गर्व के साथ बोली जाती है। आज हमारे देश में हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। जैसा कि हमारे देश के संविधान में हिंदी भाषा के राजभाषा होने का उल्लेख अनुच्छेद 343 में मिलता है। हिंदी भाषा का उल्लेख संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लेखित 22 भाषाओं में भी मिलता है, जबकि इस आठवीं अनुसूची में अंग्रेजी भाषा को स्थान प्राप्त नहीं है। जब संविधान सभा के द्वारा हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया जा रहा था, तब यह तय किया गया कि 1965 के बाद देश की एकमात्र आधिकारिक भाषा हिंदी होगी। लेकिन दक्षिण भारत राज्यों के विरोध के परिणामस्वरूप यह सब संभव नहीं हो सका।
हिंदी भाषा के संदर्भ में जुड़ा एक बेहद रोचक प्रसंग मेरे ध्यान में आता है। यह प्रसंग स्वामी विवेकानन्द जी के व्यक्तित्व से जुड़ा हुआ है। दरअसल, एक बार स्वामी जी का किसी कारणवश विदेश जाना हुआ, वहां अगुवाई करने आए एक व्यक्ति ने स्वामी जी की तरफ हाथ मिलाने के लिए बढ़ाया और अपनी सभ्यता के अनुसार अंग्रेजी में 'हेलो' कहा। इसके जवाब में स्वामी जी ने दोनों हाथ जोड़कर कहा 'नमस्ते'। तब उस अगुवाई करने आए व्यक्ति ने सोचा कि शायद स्वामी जी अंग्रेजी से अनभिज्ञ हैं। फिर उसने हिंदी भाषा में बोलते हुए कहा स्वामी जी 'आप कैसे हैं?' स्वामी जी ने सहज भाव से प्रत्युत्तर दिया 'आई एम फाईन, थैंक यू'। उस व्यक्ति को बड़ा आश्चर्य हुआ और पूछा स्वामी जी जब मैंने आपसे अंग्रेजी में बात की, तो आपने हिंदी में उत्तर दिया और जब मैंने हिंदी में पूछा तो आपने अंग्रेजी में जवाब दिया। इसका क्या कारण है? इस पर स्वामी जी ने बहुत ही सुंदर जवाब दिया और कहा जब आप अपनी मां का सम्मान कर रहे थे, तब मैं अपनी मां का सम्मान कर रहा था और जब आपने मेरी मां का सम्मान किया, तब मैंने आपकी मां का सम्मान किया। इस प्रसंग में हम इस बात का सहज अनुभव कर सकते हैं कि स्वामी जी के हृदय में हिंदी भाषा के प्रति बहुत सारा प्यार और सम्मान था। हिंदी भाषा के प्रति ऐसा ही कुछ प्यार और सम्मान हर भारतीय के दिल में होना चाहिए।
आधुनिक प्रगतिशील जगत और भूमंडलीकरण के इस दौर में हिंदी भाषा का प्रचलन बढ़ा है। हिंदी भाषा की सबसे बड़ी खुबसूरती है कि यह बहुत सरल और लचीली भाषा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक हिंदी भाषा पूरी दुनिया में बड़ी तीव्रता के साथ प्रसारित हो रही है। आज हर भारतीय के लिए गर्व की बात है कि सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने भी हिंदी भाषा को अपनी सेवाओं में एक माध्यम के रूप में चयन किया है। आज सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्म पर हिंदी भाषा का उपयोग करने वालों की तादाद में दिन-प्रतिदिन इजाफा हो रहा है। इसके बावजूद भी सही मायनों में हिंदी भाषा अपने सम्मान से वंचित है। आज हिंदी भाषा को विभिन्न तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यदि हम हिंदी भाषा के सम्मान के बीच में आने वाली बड़ी अड़चनों का जिक्र करें, तो इसमें सरकार की उदासीनता, क्षेत्रीय भाषाओं का बढ़ता दबदबा, अभिभावकों का अंग्रेजी के प्रति बढ़ता प्रेम और उच्च पदों पर आसीन अहिंदी भाषी लोगों की मानसिकता शामिल हैं। ऐसे में हमें पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के विचारों पर चिंतन और मनन करने की आवश्यकता है कि जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह कभी समृद्ध नहीं हो सकता।
-अली खान
(स्वतंत्र लेखक, स्तंभकार एवं विचारक)
जैसलमेर, राजस्थान