Brave Bytes | किस तरह से Acid Attack ने छीन ली Shaheen Malik की पहचान और बदल दी पूरी ज़िन्दगी

By नेहा मेहता | May 22, 2024

प्रभासाक्षी ने जोश टॉक्स के साथ एक नई सीरिज़ की शुरुआत की है जिसका नाम है ब्रेव बाइट्स जहाँ हम बात करते हैं उन जांबाज़ लोगों से जिन्होंने ना सिर्फ अपनी ज़िन्दगी की जंग को बखूबी लड़ा बल्कि बहुत सारे और लोगों को भी इंस्पायर किया है। ब्रेव बाइट्स के दूसरे एपिसोड में हमनें बात की एक और ब्रेव वॉरियर से जो बिना रुके अपनी ज़िंदगी की जंग लड़ रही हैं। कहते हैं यहां घायल तो हर परिंदा है, मगर जो फिर से उड़ा वही ज़िंदा हैऔर ऐसी ही उड़ान लेकर अपनी ज़िंदगी को फिर से शुरू किया शाहीन ने। शाहीन मालिक सिर्फ एक एसिड अटैक सरवाइवर नहीं हैं, बल्कि हज़ारों औरतों के लिए प्रेरणा सत्रोत भी हैं। वो यह प्रेरणा देती है कि हमें किस तरह से जिंदगी के इन उलझनों में उलझना नहीं है और कैसे आगे बढ़ते जाना है। शो के इस एपिसोड में हम जानेंगे कि कैसे शाहीन ने एसिड अटैक से जमकर मुकाबला किया और कैसे अपनी आगे की नयी ज़िन्दगी शुरू की


लाइफ में कुछ करने या मुश्किलों से लड़ने का जज़्बा शुरू से था या इस अटैक के बाद आपको लड़ने की नई हिम्मत मिली?

 मैं वैसे तो कुछ अलग तरह की लड़की में बचपन से ही हूं। मतलब अपने सपनों में जीती थी। कुछ अलग करना चाहती थी। मैं एक ऐसी फैमिली से थी जो कंजरवेटिव थी और एक ऐसे मोहल्ले से थी, जहां पर लड़कियां ज्यादा बाहर नहीं जाती। लेकिन मुझे कुछ करना था कि लोग मुझे याद करें। ऐसी सोच लेकर मैंने साल 2007 में अपना घर छोड़ दिया था और एमबीए में एडमिशन ले लिया था। मैं अपनी पढ़ाई कर रही थी और साथ साथ एक जॉब भी कर रही थी। एसिड अटैक के बाद जिंदगी को अलग नजरिए से देखना शुरू किया; मैंने समझा कि चेहरा ही सब कुछ नहीं है। आप क्या फील करते हो, आप क्या सोचते हो, आपके विचार कैसे हैं वो सुंदरता ज्यादा मायने रखती है।


आपके साथ यह हादसा कैसे हुआ और किस तरह से आप इससे उबर पाईं?

जैसे मैंने बताया कि साल 2007 में मैंने अपना घर छोड़ दिया था और पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी के ऑथराइज्ड लर्निंग सेंटर में मैं जॉब करने लगी थी। मैं वही पर स्टूडेंट काउंसिल थी और वहां पर स्टूडेंट भी थी। मैंने एमबीए में एडमिशन लिया था और जॉब भी कर रही थी, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आपकी सक्सेस से जलते हैं और पता नहीं होता कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है तो ऐसे ही कुछ लोगों से मेरा सामना हुआ। तीन चार लोगों का ग्रुप था जो मुझे पसंद नहीं करते थे और एक दिन मैं अपने ऑफिस से नीचे उतर रही थी, 19 नवंबर 2009 शाम के 6:00 बजे थे। मैंने देखा रोड पर एक लड़का खड़ा है और उसने मुंह पर रूमाल बांध रखा है तो मुझे लगा शायद पॉल्यूशन की वजह से बंधा है और मैं बिल्कुल उसके पास जाकर खड़ी हो गयी। जैसे ही मैंने उसकी तरफ टर्न किया, उसने एकदम से कुछ लिक्विड मेरे चेहरे पर फेंक दिया। कुछ सेकेंड के लिए मुझे लगा कि किसी ने मजाक किया था लेकिन दूसरे ही सेकंड मुझे ये रिलाइज हो गया कि वो पानी नहीं एसिड है। मैं बहुत ज्यादा डर गई कि मैं बहुत तेज तेज चिल्लाने लगी। मेरी वह चीखे बहुत हॉरिबल थी। 

 

मैं वापस खुद को बचाने के लिए ऑफिस की तरफ भागी मेरी चीख सुनकर कोई भी मेरी मदद के लिए नहीं आया। मतलब सब लोग घेरा बनाकर मुझे देख रहे थे। फिर वहां किसी ने गाड़ी निकाली और फिर सिलसिला शुरू हो गया एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का। एक अस्पताल में जहां गई  वहां उन्होंने कहा इसका सबसे पहले इलाज पानी है। 19 नवंबर था, ठंडी के दिन थे और मेरे हर कपड़े को काट के उतरा गया, मेरे गहने काट के उतारे गए और मुझ पर पानी की बौछार डाली और वो हर पानी की हर बूंद मुझे ऐसे चुभ रही थी जैसे लाखों सुइयां चुभती हैं। 

 

उन्होंने फिर मुझे दिल्ली एम्स के लिए रेफर कर दिया और मुझे यहाँ से वहां ले जाने वाले लोगों में वो लोग भी शामिल थे जिन्होंने ये अटैक किया था। फिर मुझे मेरे घर की याद आई और मैंने अपने भाई को फोन किया कि मेरे साथ ऐसा हो गया। अब तक रात के 11:00 बज चुके थे और हम एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटक रहे थे और फिर वहां से मुझे दिल्ली के लिए लाया गया। सुबह 4:00 बजे मैं दिल्ली के प्राइवेट हॉस्पिटल में थी। उन्होंने कहा यह पुलिस केस है और इलाज शुरू करने के लिए आप ₹5 लाख जमा करा दीजिये। सुबह 7:00 डॉक्टर मेरे पास आये तब तक मेरी दोनों आंखें बंद हो चुकी थी फिर जाके उन्होंने इलाज शुरू किया। 

 

मैं डॉक्टर से अक्सर पूछती थी कि मैं कब तक मैं ठीक हो जाऊंगी। डॉक्टर ने कहा कि अभी तो आप 1 साल तक यह सवाल मत पूछो, तब भी मैं सोचती थी। एक साल तो दूर मुझसे तो एक-एक दिन नहीं कट रहा है। लेकिन आज देखो 15 साल हो गए हैं। 

 

एसिड अटैक के बाद क्या क्या मुश्किलें सामने आई?

अटैक के बाद 3 साल मैं डिप्रेशन में रही; घर से बाहर नहीं निकली। एक-एक रुपए के लिए परेशान थी, क्योंकि मैंने कहा ना की बचपन से ही एक अलग तरह की लड़की थी जो मांगना पसंद नहीं  करती थी मैं ऐसे हाल में थी कि मतलब ₹100 के लिए जरूरत पड़ती थी कि हॉस्पिटल जाना है तो किराया चाहिए। दवाइयों का हजारों रुपए महीने का खर्चा था। मैंने नमाज पढ़ते समय अल्लाह से दुआ करी कि कोई तो रास्ता होगा आगे के लिए। फिर एक जगह से मेरे पास कॉल आया और उन्होंने कहा कि आपने जॉब के लिए बोला था। आप आकर मिलो और मैं अगले दिन अपनी फाइल लेकर गई। उनको मेरा काम पसंद आया और मुझे ऐसी जगह जॉब मिली जहां पर वो पहले से ही कुछ एसिड अटैक सरवाईवर्स के साथ काम कर रहे थे। वहां जाकर मैंने पहली बार देखा कि मेरे अलावा भी और लडकियां हैं जिनके साथ ऐसा हुआ है। ये 2013 की बात है जब मुझे लगा कि अब ये सिर्फ मेरा दर्द नहीं है। 

 

मैंने वहां कम करते वक्त तक 200 प्लस केसेस में सर्जरी करवाई और कंपनसेशन दिलवाया है। फिर 2021 में मुझे लगा कि अब कोई एक ऐसी संस्था होनी चाहिए जो हॉलिस्टिक अप्रोच के साथ काम करें। और तब हमने अपनी आर्गेनाईजेशन को रजिस्टर किया और ब्रेव सोल्स फाउंडेशन नाम रखा। जहाँ हम सिर्फ हेल्थ के लिए नहीं बल्कि लीगल तरीके से, मेडिकल ट्रीटमेंट से, साइकोलॉजिकल थेरेपी, पढ़ाई करवा कर, जॉब दिलवा कर हर तरह से एसिड अटैक विक्टिम्स को आत्मनिर्भर बनाते हैं। 


घरवालों की तरफ से आपको आगे बढ़ने में कितना सपोर्ट मिला?

अगर बात करूं तो फैमिली ने स्टार्टिंग में तो सपोर्ट नहीं किया क्योंकि कंजरवेटिव फैमिली थी तो जब मैं साल 2013 में बाहर निकली और मैंने अपने लिए जॉब ढूंढना शुरू किया तो उनको लगता था कि वो कैसे इसको डील करेंगे। वो नहीं चाहते थे कि मैं जॉब करूं। मुझे फाइनेंशियल इंडिपेंडेंट होना था तो मैंने अपनी जॉब कंटिन्यू रखी और फिर जैसे-जैसे मैं काम करती गई तो एक कॉन्फिडेंस इतना बढ़ गया कि मैं अपने लिए स्टैंड लेने लगी और मैंने फिर वही किया जो मुझे ठीक लगा। आज एक अच्छी चीज है कि मेरी फैमिली आज सपोर्ट करती है, उन्हें अच्छा लगता है जो काम आज मैं कर रही हूँ।

 

इस बैटल को खुद को एक्सेप्ट करने में मुझे बहुत टाइम लगा। इतने सालों तक तो बस इस उम्मीद में थी कि वह चेहरा फिर से मिल जाए। वो जरा फिर से मिल जाए। धीरे-धीरे वक्त लगा और फिर चीज़ें समझ आ गयी।

 

आप बाकी एसिड अटैक सरवाइवर्स को क्या मेसेज देना चाहेंगी?

जो भी एसिड अटैक सरवाइवर है या जो भी महिलाएं हैं उन सब से यही कहना चाहूंगी कि हार तब होती है जब आप हार जाते हो; वो कहते हैं ना मन के हारे हारे है, मन के जीते जीत। आप आगे बढ़ो, जब तक जिंदगी है तब तक उम्मीद बनाये रखो। जो हुआ वो बुरा हुआ लेकिन वो हो चुका है उसे छोड़ दो जो बचा है उसे संभाल के रखो।

 

एक अकेली लड़की बहुत सारी लड़कियों को रिप्रेजेंट करती है। अगर आप आज आवाज उठाओगी तो 10 और लड़कियां  भी आवाज उठाएंगी। कभी  डरना नहीं चाहिए, हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए। आपके साथ कितना ही बुरा हुआ हो ये वक्त है जो बीत जाएगा। आपको अगर कभी मदद की ज़रुरत लगे तो आप हमें कांटेक्ट कर सकती हैं। हमारी वेबसाइट है https://bravesoulsfoundation.org/

 

इस शो की वीडियो देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। अगली बार ऐसी ही एक और कहानी के साथ फिर से हाज़िर होंगे।

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