घरों का सफाई अभियान (व्यंग्य)

By अरुण अर्णव खरे | Nov 07, 2023

मुरारी जी इन दिनों काफी व्यस्त चल रहे हैं। व्यस्त तो उनकी श्रीमती जी भी हैं। दोनों दीपावली से पहले अपने घर की अच्छे से सफाई कर लेना चाहते हैं। श्रीमती जी घर को ही अपना घर समझती हैं क्योंकि उनका अधिकतर समय घर पर ही बीतता है। मुरारी जी रिटायर होने के बाद रहते तो घर पर ही हैं किंतु उन्होंने घर को घर समझना बंद कर दिया है। उनका अधिकतम समय फेसबुक पर बीतता है सो वह फेसबुक को ही अपना घर समझने लगे हैं। श्रीमती जी घर का कूड़ा-करकट साफ करने में लगी हैं। मुरारी जी भी यही काम अपने घर में कर रहे हैं।


श्रीमती जी ने अपना सफाई अभियान घर में लगे जाले हटाने से शुरु किया। मुरारी जी ने भी यही काम सबसे पहले अपने हाथ में लिया। उन्होंने अपने पाँच हजार मित्रों में से 47 ऐसे लोगों को चिन्हित कर सूची से बाहर का रास्ता दिखाया जिनके दिमाग के हर कोने में जाले लगे हुए थे। ये सभी हर दिन मुरारी जी की वाल पर आकर मजहबी नफरत और सांप्रदायिकता की गंदगी फैला जाते थे। श्रीमती जी ने अगला काम अनुपयोगी पड़े सामान को छाँट कर कबाड़ी को देने का किया। उनकी देखा-देखी मुरारी जी ने भी यही काम हाथ में ले लिया। सूची में उन्हें 112 बेमुरब्बत लोग मिले जिन्होंने कभी भी उनकी किसी पोस्ट को लाइक नहीं किया था। ये अलग बात है कि मुरारी जी ने भी कभी उनकी ओर नहीं देखा था लेकिन मुरारी जी को उनकी धृष्टता नाकाबिले बर्दास्त लगी। उन्होंने ऐसे अनुपयोगी मित्रों को एक ही क्लिक में डस्टबिन के हवाले करने में जरा भी हिचक नहीं दिखाई। इसके बाद श्रीमती जी ने घर में काम करने वाली बाइयों को देने के लिए पुराने किंतु उपयोग लायक सामानों की छँटनी करना शुरु किया। मुरारी जी भी क्यों पीछे रहते। उन्होंने बेमतलब हर पोस्ट में उन्हें टैग करने वाले 27 दोस्तों की छँटनी कर दी।

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अगले दिन मुरारी जी ने श्रीमती जी को शो-पीसेज को झाड़-फूँक कर वापस शोकेस में जमाते देखा। फिर क्या था मुरारी जी भी काम में लग गए। उन्होंने तरह-तरह की जुगत लगाकर कबाड़े गए सम्मानों की पोस्ट ढूँढ़-ढूँढ़ कर निकाली और उन्हें नए कैप्शन के साथ सजाकर पुन: शेयर कर दिया। एक पोस्ट में तो उन्होंने हद ही कर दी। पहले उन्होंने लिखा था कि फलाँ-फलाँ संस्था से सम्मान ग्रहण कर गौरवान्वित हूँ। उसी पोस्ट को रिशेयर करते हुए उन्होंने संस्था के अध्यक्ष के हवाले से लिखा कि संस्था मुरारी जी जैसी शख्सियत को सम्मानित कर गौरवान्वित अनुभव कर रही है। उल्लेखनीय है कि उस संस्था के अध्यक्ष को वह अनुपयोगी मित्र मान कर पहले ही मित्रता-सूची से बेदखल कर चुके थे।


पाँचवें दिन मुरारी जी जब सोकर उठे तो देखा श्रीमती जी दरवाजे-खिड़कियों पर नए पर्दे लगा रही हैं और त्रिपुरारी को निर्देश दे रही हैं कि कौन सी झालर कहाँ लगानी है। यह देखकर मुरारी जी भी तुरंत काम में लग गए। पैंडिंग मित्रता-अनुरोधों की हर प्रोफाइल में घुस-घुस कर उन्होंने बारीकी से पड़ताल की और फिर चालीस मनभावन चेहरे-मोहरे वाली मोहत्तरमाओं के अनुरोध को स्वीकार कर डाला। कुछ ही घंटों में जब उनमें से कुछ का हाथ वेव करते हुए या पुष्प गुच्छ के साथ आभार का संदेश आ गया तो मुरारी जी को अपनी वाल पर झालर लग जाने वाली फीलिंग होने लगी।


दीवाली से पहले ही घरों की मनमाफिक सफाई हो जाने से मुरारी जी और श्रीमती जी खुश थे। श्रीमती जी को विश्वास था कि इस बार लक्ष्मी जी जरूर उनके घर आएँगी दूसरी ओर मुरारी जी केटी लक्ष्मी की फ्रेंड रिक्वेस्ट देखकर गदगद थे।


- अरुण अर्णव खरे

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