By अभिनय आकाश | May 02, 2023
ईसा की सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध की बात है। प्रयाग में एक बहुत बड़े दान समारोह का आयोजन किया गया था। संपूर्ण भारत से लोग दान-दक्षिणा पाने के लिए एकत्र थे। राजा दान-दक्षिणा की सभी वस्तुओं को यहां तक की राजकोष की संपूर्ण संपत्ति और अपने शरीर के संपूर्ण आभूषणों को दान दे चुके तो उन्हें ज्ञात हुआ कि एक व्यक्ति ऐसा शेष रह गया जिसे देने के लिए उनके पास कुछ शेष नहीं था। राजा ने पास खड़ी बहन से अपना तन ढकने के लिए दूसरा वस्त्र मांग कर अपना उत्तरीय उतार कर उस याचक को दे दिया। जन-जन को अपनी दानशीलता से मुग्ध करने वाले ये राजा और कोई नहीं दानवीर हर्षवर्धन थे। हर्षवर्धन के समय पुष्यभूति राजवंश का साम्राज्य नेपाल से नर्मदा नदी, असम से गुजरात तक फैला था। मातृभूमि की इस सीरिज में आज बात सम्राट हर्षवर्धन की करेंगे।
उत्तर भारत की सरहद लेने वाली थी एक नई करवट
ईसा के जन्म के पांच सौ साल बाद उत्तर भारत के हरियाणा में एक शक्तिशाली राज्य थानेस्वर अस्तित्व में आया। इस राज्य में राजा प्रभाकरवर्धन का राज था। प्रभाकरवर्धन को वीर, पराक्रमी और योग्य शासक माना जाता था। राजा प्रभाकरवर्धन ने महाराज की जगह महाराजाधिराज और परमभट्टारक की उपाधि धारण की थी। 570ईं तक राजा प्रभाकरवर्धन ने मालवो, गुर्जरों पर लागातर हमले किए। इन हमलों में राजा को अकूत सम्मान और विजयी मिली। लेकिन राज्य की उत्तर पश्चिमी सीमा पर कभी-कभार हूरो के छिटपुट उपद्रव होते रहते थे। राजा प्रभाकरवर्धन अपने समय के एक महान योद्धा सिद्ध हुए। इन्हीं युद्धों से जूझते हुए उत्तर भारत की सरहद एक नई करवट लेने वाली थी। महान कहे जाने वाले सामराज्यों को अब थानेस्वर के सामने नजरें झुकानी थी। एक महान योद्धा और शूरवीर पृथ्वी पर जन्म लेने वाला था। जो आगे चलकर वीर विराट सम्राट हर्षवर्धन के नाम से जाना गया।
पुष्पभूति वंश और हर्षवर्धन का जन्म
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय राजशाही में उथल-पुछथल हो चुकी थी। चीन के जंगलों की तरफ से आई विदेशी सेना अपने तलवारों के बल पर भारती की भूमि पर अधिकार स्थापित करने की फिराक में लगी थी। यही वो दौर था जब राजा प्रभाकरवर्धन की अर्धांगनि रानी यशोमति ने 590 ईं में एक शूरवीर महायोद्धा परम तेजस्वी बालक हर्षवर्धन ने जन्म लिया। समार्ट हर्षवर्धन ने 606 ई में सिंहासन प्राप्त किया था। सम्राट हर्ष का शासनकाल 606 ई से 647 ई के मध्य का माना जाता है। सम्राट हर्ष ने अपनी राजधानी थानेश्वर से स्थानान्तरित करके उत्तर प्रदेश के कन्नौज में बनाई थी। सम्राट हर्ष ने परमभट्टारक, परमेश्वर, परमदेवता, सकलोत्तरपथनाथ और महाराजाधिराज जैसी प्रख्यात उपाधियाँ धारण की थीं।
हर्ष और पुलकेशिन द्वितीय के बीच का युद्ध
सम्राट हर्ष ने वल्लभी के राजा ध्रुवसेन द्वितीय को पराजित किया था परन्तु उसकी बहादुरी से प्रभावित होकर बाद में उससे अपनी पुत्री का विवाह कर दिया था। सम्राट हर्ष बौद्ध धम्म के अनुयायी थे। सम्राट हर्ष ने असम के राजा भास्कर वर्मा के साथ मिलकर बंगाल के गौड़ राजा शशांक के पूरे साम्राज्य को तहस-नहस कर दिया था। कर्नाटक के एहोल मेगुती अभिलेख के अनुसार सम्राट हर्ष ने पुलकेशिन द्वितीय के साथ युद्ध किया था परन्तु पराजय का सामना करना पड़ा था।
बिखरे हुए उत्तर भारत को हर्षवर्धन ने कैसे किया एकजुट
राजा बनने के बाद हर्षवर्धन ने बिखरे हुए उत्तर भारत को एकजुट करना प्रारंभ किया। अप्रैल 606 की एक सभा में पंजाब से लेकर मध्य भारत तक के राजाओं और उनके प्रतिनिधियों ने हर्षवर्धन को महाराजा स्वीकार किया। हर्षवर्धन मे नेपाल से लेकर नर्मदा नदी तक, असम से गुजरात तक अपने साम्राज्य को फैलाया। सम्राट हर्ष के शासनकाल में कन्नौज बौद्ध धम्म का प्रसिद्ध केन्द्र था इसीलिए उसे महोदय नगर के नाम से जाना जाता था। प्रसिद्ध चीनी यात्री व्हेन सांग सम्राट हर्ष के शासनकाल में ही भारत भ्रमण के लिए आए थे। 643 ई. में सम्राट हर्ष के द्वारा कन्नौज में एक विशाल धार्मिक सभा का आयोजन किया गया था जिसमें 20 सामंत, 3000 बौद्ध साधु, 3000 जैन साधु, 1000 नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षक और 500 ब्राह्मणों को बुलाया गया था और इस सभा की अध्यक्षता व्हेन सांग के द्वारा की गई थी। हर्षवर्धन ने चीन के राजा के दरबार में अपना राजदूत भिजवाया था। भारत और चीन के बीच ये पहला कूटनीतिक संपर्क था।
बाद में बिखर गया पूरा साम्राज्य
हर्षवर्धन के बाद उनके राज का कोई वैध उत्तराधिकारी नहीं बचा। पत्नी दुर्गावती से जो दो बेटे हुए, उनकी मृत्यु पहले ही हो चुकी थी। 647 में जब हर्षवर्धन का देहांत हुआ तो तख्तापलट कर कन्नौज और आसपास के इलाके पर अरुणाश्व ने अधिकार कर लिया।