मानसिक रोगियों के पुनर्वास के लिए दिशानिर्देश जरूरी: SC

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Feb 22, 2017

उच्चतम न्यायालय ने आज केन्द्र से कहा कि मानसिक रोग से निजात पा चुके व्यक्तियों के पुनर्वास के लिये दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देते हुये टिप्पणी की कि यह ‘बेहद संवेदनशील’ मुद्दा है। प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने टिप्पणी की कि मानसिक रोगी जब उपचार से ठीक हो जाता है तो उसके परिवार के सदस्य भी उसे घर वापस नहीं लाना चाहते हैं।

 

पीठ ने कहा, ''यह बहुत, बहुत संवेदनशील मुद्दा है। आपको (केन्द्र) इस ओर ध्यान देना चाहिए। कोई इंसान मानसिक रोग चिकित्सालय जाता है और उपचार के बाद वह ठीक हो जाता है, उसे घर वापस ले जाने के लिए कोई तैयार नहीं होता। आपको (केन्द्र) इस बारे में सोचना चाहिए।’’ न्यायालय ने केन्द्र की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल रंजीत कुमार से कहा कि बीमारी से पूरी तरह ठीक हो चुके व्यक्ति को सरकार मानसिक रोगी अस्पताल अथवा नर्सिंग होम में बने रहने देने की इजाजत नहीं दे सकती। पीठ ने कहा, ''उन्हें समाज में वापस लाया जाना चाहिए। आपको इसके लिये नीति बनानी पड़ेगी।’’ शीर्ष अदालत ने केन्द्र सरकार से कहा, ''इसे बेहद आसानी से हासिल किया जा सकता है, आप हमें योजना का नमूना दीजिए। हम इसे राज्य सरकारों के समक्ष रखेंगे और उनकी राय लेंगे। हमें एक योजना दीजिए।’’ सॉलीसिटर जनरल ने हालांकि पीठ से कहा कि उन्हें कुछ वक्त चाहिए क्योंकि दो मंत्रालय- स्वास्थ्य मंत्रालय और सामाजिक न्याय मंत्रालय इस प्रक्रिया से जुड़े हैं। इस पर न्यायालय ने केन्द्र सरकार को इसके लिए आठ सप्ताह का वक्त दे दिया।

 

पीठ ने कहा, ''केन्द्र को दिया गया इस न्यायालय का प्रस्ताव अस्थाई रूप से स्वीकार कर लिया गया है और भारत सरकार मानसिक रोग अस्पतालों या नर्सिंग होम में रह रहे मानसिक रोगियों और उपचार के पश्चात पूरी तरह ठीक हो चुके लोगों के पुनर्वास के लिए दिशानिर्देश अथवा योजना तैयार करेगी।’’ शीर्ष अदालत ने सरकार से कहा कि दिशानिर्देश या योजना उसके समक्ष विचारार्थ पेश की जाये। इसके साथ ही न्यायालय ने इस मामले को आठ सप्ताह बाद सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दिया।

 

न्यायालय अधिवक्ता जीके बंसल की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस याचिका में उत्तर प्रदेश के विभिन्न मानसिक रोगी अस्पतालों के 300 लोगों की छुट्टी का मुद्दा उठाया गया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि ये लोग ठीक हो जाने के बावजूद अभी भी वहीं रह रहे हैं और इनमें से अधिकतर गरीब वर्ग के लोग हैं। याचिका में बरेली, आगरा, वाराणसी के मानसिक रोग अस्पतालों से ऐसे व्यक्तियों की छुट्टी के बारे में आरटीआई के तहत प्राप्त सूचनाओं का भी जिक्र किया गया है। बंसल ने यह भी जानकारी मांगी है कि किस वर्ष में रोगियों को अस्पताल से छुट्टी के लिये पूरी तरह ठीक घोषित किया गया। इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने मानसिक रोगियों और ठीक हो चुके लोगों के लिए समान राष्ट्रीय नीति बनाने की हिमायत की थी और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को नोटिस जारी किया था।

 

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