By विजयेन्दर शर्मा | Oct 12, 2021
कांगड़ा। राज्यपाल श्री राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर आज अपने दो दिवसीय कांगड़ा जिला के दौरे के दौरान गग्गल एयरपोर्ट पहुंचे। उपायुक्त निपुन जिंदल, पुलिस अधीक्षक कुशाल शर्मा तथा केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एस. पी. बंसल ने राज्यपाल का स्वागत किया।
इसके पश्चात, राज्यपाल ने शक्तिपीठ नगरकोट धाम माता वज्रेश्वरी मंदिर में माथा टेका और पूजा अर्चना की। नवरात्रि के पावन पर्व पर राज्यपाल ने माता से प्रदेशवासियों के सुख, शांति व समृद्धि के लिये प्रार्थना की। इस अवसर पर, राज्यपाल ने कहा कि यह शक्तिपीठ देशवासियों की आस्था व श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती के पिता दक्षेश्वर द्वारा किए यज्ञ में उन्हें न बुलाने पर उन्होंने अपना और भगवान शिव का अपमान समझा और उसी हवन कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये थे। तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड के चक्कर लगा रहे थे। उसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था और उनके अंग धरती पर जगह-जगह गिरे। जहां उनके शरीर के अंग गिरे, वहां एक शक्तिपीठ बन गया। उसमें से सती की बायां वक्षस्थल इस स्थान पर गिरा था, जिसे मां ब्रजेश्वरी या कांगड़ा माई के नाम से पूजा जाता है।
कहा जाता है महाभारत काल में पांडवों ने मंदिर का निर्माण करवाया था। मां दुर्गा ने पांडवों के स्वपन में आकर नगरकोट नामक स्थान पर मंदिर निर्माण करने को कहा था। वरना उनका समूल नाश हो जाएगा। जिस कारण पांडवों ने मूल मंदिर का निर्माण करवाया था, जो 1905 में हुए भूकंप के दौरान पूरी तरह से ध्वस्त हो गया तथा लगभग 22 वर्षों की मेहनत के बाद माता श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ जो दुनिया के लिए पूजनीय स्थल बना है।
मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार में एक नागरखाना है इसे किले के प्रवेश द्वार की तरह बनाया गया है। मंदिर परिसर भी किले की भांति पत्थरों की दीवारों से घिरा हुआ है। मंदिर के पीछे क्षेत्रपाल भगवान शिव का मन्दिर भी बना हुआ है मंदिर परिसर में भैरव का एक मंदिर तथा ध्यानू भक्त की मूर्ति भी मौजूद है, जिसने अकबर काल में देवी को अपना सिर भेंट किया था। मंदिर की वर्तमान संरचना में तीन गुबंद मुस्लिम, सिख तथा हिन्दू धर्म की आस्था के प्रतीक माने जाते है जो अपने आप में अद्वितीय हैं।
मंदिर में हर वर्ष जनवरी के दूसरे सप्ताह मकर संक्रांति का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। किदवंतियों के अनुसार एक युद्ध के दौरान महिषासुर को मारने के पश्चात देवी को काफी चोटें आई थी, उन चोटों से उत्पन्न घावों को ठीक करने के लिए देवी ने नगरकोट में अपने शरीर पर मक्खन का लेप लगाया था। इसी दिन को चिन्हित करने के लिए कांगड़ा के श्री बज्रेश्वरी मंदिर में माता के पिंडी रूप को मक्खन से ढका जाता है। सप्ताह भर चलने वाली इस प्रक्रिया के बाद मक्खन उतार कर श्रद्धालुओं को प्रशाद के रूप वितरित किया जाता है। इस प्रशाद को पाने के लिए देश के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु कांगड़ा पहुंचते हैं। माना जाता है कि यह मक्खन फोड़े फुंसियों के उपचार में लाभप्रद साबित होता है।