Jaago Nagrik Jaago । बच्चा गोद लेने से जुड़े सभी नियम और कानून, समझें Expert से

By Anoop Prajapati | Oct 25, 2024

बच्चों को गोद लेना भारत में यह एक ऐसी कानूनी प्रक्रिया है जो कई लोगों के जीवन में खुशियां लेकर आता है। साथ ही साथ हमारी सामाजिकता को भी मजबूत करता है। हालांकि, भारत में गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया क्या है, किस बच्चे को गोद लिया जा सकता है और गोद लेने के लिए मिनिमम क्राइटेरिया क्या होनी चाहिए, इस बात की जानकारी सभी को नहीं है। यही कारण है कि हमने प्रभासाक्षी के अपने खास कार्यक्रम जागो नागरिक जागो में इस बार Adoption law in India को लेकर ही चर्चा की है। हमेशा की तरह इस कार्यक्रम में मौजूद रहीं जाने-माने अधिवक्ता आकांक्षा सिंह।


प्रश्न- हमारे देश में बच्चा गोद लेने की क्या कानूनी प्रक्रिया है ?


जवाब - भारत में बच्चों को गोद लेने के लिए कानूनी प्रक्रिया बहुत लंबे समय से चल रही है। जिसमें समय-समय पर बदलाव भी होते रहे हैं, लेकिन वर्तमान समय में देश में गोद लेने से संबंधित दो कानून मौजूद हैं। जिसमें पहले 'हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटिनेस एक्ट' और दूसरा 'जुवेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटक्शन एक्ट' है और दूसरी कानूनी प्रक्रिया के तहत ही अधिकांशतः लोग बच्चों को गोद लेते हैं। 


प्रश्न - भारत में बच्चा गोद लेने से जुड़ी कुछ जरूरी बातें क्या हैं ?


जवाब - गोद लेने का मामला देश में बहुत ही ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण रहा है, लेकिन इस दौर में कोई वैवाहिक दंपति अकेला, व्यक्ति या एलजीबीटी समुदाय का भी कोई भी व्यक्ति किसी बच्चे को गोद ले सकता है लेकिन गोद लेने वाले के लिए शर्त यह होती है कि वह मानसिक और आर्थिक रूप से समृद्ध हो। यह सब जानकारी जुटाने के बाद डीएम या संबंधित न्यायालय उसे बच्चों को गोद लेने की अनुमति प्रदान कर देता है। इसमें भी नियम यह है कि एक सिंगल पुरुष केवल एक लड़के को ही गोद ले सकता है। 


तो वहीं, एक अकेली महिला किसी भी लिंग के बच्चों को गोद ले सकती है। साथ ही गोद लेने वाले व्यक्ति और बच्चे की उम्र में कम से कम 25 साल का अंतर निश्चित रूप से होना चाहिए। किसी भी दंपति की उम्र में 10 साल से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए और बालक होने के बाद उनकी संपत्ति पर उस बच्चे का पूरी तरह से मालिकाना हक हो जाता है। भारत में प्रायः सिविल कानून तो वर्णित हैं लेकिन पर्सनल लॉ परंपरा के अनुरूप ही चल रहे हैं। आजादी के बाद 1956 तक सिर्फ यह नियम था कि कोई भी दंपति सिर्फ लड़के को ही गोद ले सकती थी लेकिन समय के साथ हुए बदलावों से यह नियम भी कानून के दायरे में आई है और इसमें अभी भी लगातार सुधार जारी है। अगर किसी दंपति के पास पहले से ही तीन बच्चे हैं तो उनको एक बच्चा गोद लेने में कई प्रकार की प्रक्रियाओं से गुजरना होता है।


प्रश्न - 'जुवेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन एक्ट' 2015 क्या है और यह पिछले कानून से किस प्रकार से अलग होता है ?


जवाब - इसके पहले का कानून सिर्फ हिंदू समुदाय के ऊपर ही लागू होता था। जिसके तहत हिंदू लोग सिर्फ एक हिंदू बच्चों को ही गोद ले सकते थे। जो बहुत ही सीमित था। वह कानून सिर्फ एक पर्सनल लॉ के तहत धार्मिक मान्यताओं पर ही आधारित था। इसके बाद 2015 में आए जेजे एक्ट में धर्म को लेकर कोई भी चर्चा नहीं की गई है और इसमें राज्य का दायरा इस प्रक्रिया के लिए काफी बढ़ गया है। पहले के कानून में किसी रिश्तेदार के बच्चे को गोद लेने के लिए दंपति को न्यायालय जान् और कानूनी प्रक्रिया को पूरा करने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती थी, लेकिन 2015 के जुवेनाइल जस्टिस के बाद से उन्हें इस प्रक्रिया से होकर ही गुजरना पड़ता है। जिससे बच्चों का संरक्षण पर सरकार की भी नजर रहे और गोद लेने के 2 साल बाद तक राज्य बच्चा और उसके गार्जियन की गतिविधि पर कड़ी नजर रखता है।


प्रश्न - गार्जियन एंड बार्ड्स एक्ट ऑफ 1890 क्या है और यह कानून किसके लिए है ?


जवाब - यह कानून देश की आजादी के पहले से ही लागू है। इस कानून के तहत गोद लेने वाले लोग सिर्फ उस बच्चों के गार्जियन बन सकते थे, लेकिन उनके खुद के बच्चे की तरह उसे गोद लिए हुए बच्चे को अधिकार प्राप्त नहीं होते थे। इस स्थिति में नाबालिग गोद लिए हुए बच्चे के पास गार्जियन की मृत्यु के बाद संपत्ति नहीं आती थी, बल्कि किसी सगे-संबंधी को उस संपत्ति का संरक्षक बनाया जाता था। अब इस नए कानून के तहत अभिभावकों की देखभाल करने की पूरी जिम्मेदारी भी गोद लिए हुए बच्चे की ही होती है।


प्रश्न - भारत में विदेशी नागरिकों या एनआरआई के लिए क्या नियम हैं ?


जवाब - भारत ने 2003 में एक में हेग में हुए एक सम्मेलन में इस प्रकार के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। जिसके तहत कोई भी विदेशी व्यक्ति देश के किसी भी बच्चे को गोद ले सकता है और वह सामान्य प्रक्रिया से गुजरने के बाद उस बच्चों के अभिभावक बन सकते हैं। इस प्रकार के मामले में सरकार विदेश में रहने के बावजूद भी बच्चों पर पूरी नजर रखती है और किसी भी प्रकार की आशंका होने पर उसके अभिभावकों को बच्चों सहित समन किया जा सकता है। सिर्फ कागजों में देखने पर देश में गोद लेने की प्रक्रिया बहुत ही अच्छी मानी जाती है लेकिन वास्तविकता उससे कहीं उलट है। जिसमें सुधार की बहुत अधिक जरूरत है।


प्रश्न - भारत में गोद लेने के लिए प्रमुख कागजात कौन-कौन से हैं और यह प्रक्रिया किस प्रकार से शुरू होती है ?


जवाब - यह प्रक्रिया पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में ही शुरू होती है और अंतिम निर्णय भी सरकार का ही होता है। अगर गोद लेने वाले व्यक्ति की उम्र 55 साल से अधिक है, तो इस स्थिति में वह बच्चे को गोद नहीं ले सकता। लेकिन इसमें छूट तभी संभव है जब वह बच्चा उस व्यक्ति के किसी खास नजदीकी का हो। इसके साथ ही दंपति की कुल आयु और गोद लिए जाने वाले बच्चों की आयु की गणना में भी कई प्रकार के नियम सरकार द्वारा बनाए गए हैं। जिसके अंतर्गत अभिभावकों की क्षमता के अनुरूप ही बच्चे को गोद देने का फैसला किया जाता है। 


गोद लेने के लिए सबसे पहले सरकार के एक पोर्टल पर व्यक्ति को खुद को रजिस्टर करना पड़ता है। पूरी जानकारी देने के बाद फिर उसे जानकारी को वेरीफाई करने के लिए एक सरकार अपने किसी कर्मचारी को उसके घर भेजती है और एक रिपोर्ट तैयार की जाती है। जो 3 साल तक के लिए वैध रहती है। नव दंपति को बच्चा गोद लेने के लिए कम से कम 2 साल साथ रहना जरूरी होता है। इसके अलावा भी यदि किसी दंपति को एक या दो बच्चे पहले से हैं तो एक अन्य बच्चा गोद लेने के लिए उनकों पहले बच्चों की अनुमति लेना भी आवश्यक होता है। 


प्रश्न - क्या यह नियम एलजीबीटीक्यू के तहत आने वाले सभी सिंगल लोगों के लिए भी होते हैं ?


जवाब - बिल्कुल, एलजीबीटीक्यू समुदाय का कोई भी एकल व्यक्ति भी बच्चे को गोद ले सकता है। जिसके बाद कानूनी रूप से वह व्यक्ति उस बच्चे का अभिभावक बन जाता है। इस समुदाय के जोड़े में से एक व्यक्ति उस बच्चे का अभिभावक होगा और दूसरा उसका गार्जियन। तो वहीं, थर्ड जेंडर के लिए फिलहाल कोई कानून अस्तित्व में नहीं है। जिसको लेकर भी सरकार द्वारा विचार किया जा रहा है।


प्रश्न - मुसलमान, ईसाइयों, पारसी और यहूदियों के व्यक्तिगत कानून के तहत बच्चा गोद लेने की अनुमति क्यों नहीं है ?


जवाब - यह सभी लोग इस समय भी अपने पर्सनल लॉ के मुताबिक चल रहे हैं। पहले हिंदू धर्म भी पर्सनल लॉ के मुताबिक ही चलता था, लेकिन 1956 के बाद से इसमें सुधार आने के बाद उसे खत्म कर दिया गया है और इस प्रकार के नियमों में बदलाव करने को लेकर भी सरकार विचार विमर्श कर रही है। इन धर्मों में शुरुआत से ही बच्चा गोद न लेने की परंपरा रही है जो अभी तक जारी है।

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