माओ से जिनपिंग तक, जल, जमीन पर कब्जा, 100 साल में चीन नहीं है बदला

By अभिनय आकाश | Jul 01, 2021

एक मुल्क के हुक्मरानों के साथ कितनी दिक्कतें जुड़ी हो सकती हैं? ये मुल्क जो हमारे पड़ोस में है, ये मुल्क जिसका नाम चीन है। जिसने कोरोना के मामले में लापरवाही बरती और पूरी दुनिया ने इसका खामियाजा भुगता। जो पूरी दुनिया में कभी कारोबार फैलाने के नाम पर तो कभी किसी मदद को देने के नाम पर घुसपैठ कर चुका है। जो अपने यहां के अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार करता है। इसके साथ ही दूसरे देशों की सरकारी संस्थाओं में घुसकर जासूसी करता है। चीन की सत्ताधारी पार्टी सीसीपी आज 100वीं वर्षगांठ मना रही है। चीन के लाल सुल्तान शी जिनपिंग शताब्दी समारोह को भव्य तरीके से मनाने की पहले ही घोषणा कर चुके हैं। सीसीपी केंद्रीय कमेटी के महासचिव और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आज भाषण दिया। चीन के कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1921 में हुई थी। आज कम्युनिस्ट पार्टी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है और यह भारत की भारतीय जनता पार्टी (BJP) की आधी है। थ्येनआनमन चौक और ग्रेट हॉल ऑफ पीपुल में समारोह का आयोजन किया गया है। पार्टी और देश के अमूल्य योगदान के लिए 29 कार्यकर्ताओं को शी जिनपिंग ने पदकों से नवाजा। थ्येनआनमन चौक की तरफ से जाने वाले रास्ते को एक महीने से बंद रखा गया।  चीन के राष्ट्रपति एवं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के प्रमुख शी चिनफिंग इस समारोह में ‘माओ सूट’ पहने नजर आए। समारोह की शुरुआत ‘फ्लाईपास्ट’ के साथ हुई। इस दौरान, पार्टी के हजारों कार्यकर्ता देश की सराहना करते हुए गीत गाते नजर आए। इस मौके पर सैन्य परेड नहीं निकाली गई। सेना, वायु सेना और नौसेना कर्मियों ने एक संक्षिप्त मार्च में भाग लिया। सैन्य बैंड के साथ हजारों स्कूली बच्चों ने सीपीसी की प्रशंसा में गीत गाए। 

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किसी भी विदेशी ताकत को धमकाने, उत्पीड़ित करने नहीं देंगे

शी चिनफिंग ने सीपीसी की 100वीं वर्षगांठ के मौके पर देश की रक्षा के लिए एक मजबूत सेना बनाने का आह्वान किया और चेतावनी दी कि चीन के लोग किसी भी विदेशी ताकत को ‘‘ उन्हें धमकाने, उत्पीड़ित करने या अपने अधीन करने ’’ की अनुमति कभी नहीं देंगे। ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना’ की 100वीं वर्षगांठ के मौके पर तियानमेन चौक पर आयोजित सामरोह को शी ने करीब एक घंटे संबोधित किए। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि ताइवान को चीन की मुख्य भूमि के साथ जोड़ना सत्ताधारी पार्टी का एक ऐतिहासिक लक्ष्य है। आधिकारिक टेलीविजन पर प्रसारित संबोधन में 68 वर्षीय शी ने कहा, ‘‘ किसी को भी अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने के लिए चीनी लोगों के विशाल संकल्प, दृढ़ इच्छाशक्ति और असाधारण क्षमता को कम करके नहीं आंकना चाहिए। हमें राष्ट्रीय रक्षा तथा सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण में तेजी लानी चाहिए। हम अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा तथा विकास हितों की रक्षा के लिए अधिक क्षमता और अधिक विश्वसनीय साधनों से लैस हैं।’’ शी ने कहा कि चीन कअन्य देशों पर अत्याचार नहीं करता और उन्हें भी ‘‘हमें परेशान’’ करने नहीं देगा। उन्होंने कहा, ‘‘ हमने कभी किसी अन्य देश के लोगों को परेशान, उत्पीड़ित या अपने अधीन नहीं किया है और ना ही हम कभी ऐसा करेंगे। वहीं, चीन विदेशी ताकतों को चीन के लोगों को परेशान, उत्पीड़ित करने या अपने अधीन कभी नहीं करने देगा।’’ उन्होंने आगाह किया कि अगर किसी ने भी ऐसा करने की कोशिश की तो उसे 1.4 अरब से अधिक चीनी लोगों की ‘स्टील’ की विशाल दीवार से टकराना होगा। राष्ट्रपति शी ने कहा कि ताइवान के मामले का समाधान करना और चीन के पूर्ण एकीकरण को साकार करना एक ऐतिहासिक लक्ष्य है और सीपीसी इसको लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, ‘‘ हमें ‘ताइवान की स्वतंत्रता’ की दिशा में किसी भी प्रयास को पूरी तरह से विफल करने के लिए दृढ़ कार्रवाई करनी चाहिए और राष्ट्रीय कायाकल्प के वास्ते एक उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।’’ स्कूली बच्चों के अलावा पार्टी के कायर्कर्ता, सैन्य अधिकारियों सहित 70 हजार से अधिक लोग उनके भाषण के दौरान पूरे जोश से उनका समर्थन करते दिखे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सेना को पार्टी के नेतृत्व में काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ‘पीपल्स लिबरेशन आर्मी’ समाजवादी देश की रक्षा तथा राष्ट्रीय गरिमा की रक्षा के लिए एक मजबूत स्तंभ है और क्षेत्रीय तथा विश्व शांति की रक्षा के लिए एक प्रबल शक्ति है। 

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CPC के 100 साल, माओ से जिनपिंग तक

साल 1917 में सोवियत संघ में लेनिन के नेतृत्व में अक्टूबर समाजवादी क्रांति की जीत के बाद कम्युनिस्ट विचारधारा पूरे चीन में फैल गई। जिसके बाद चीन के विचारकों को यह लगने लगा की देश को एकीकृत करने के लिए मार्क्सवाद ही सबसे ताकतवर हथियार है। 1919 में चीन में साम्राज्यवाद और सामंतवाद के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया। इसी दौरान वहां मजदूर वर्ग एक बड़ी ताकत बनकर उभरा। माओ तुंग ने एक जुलाई 1921 को सीपीसी की स्थापना की थी। साल 1937 में चीन पर जब जापान ने आक्रमण कर दिया तब कम्युनिस्ट और राष्ट्रवादी सेना आपस मे मिल गई। लेकिन जापान के हारने के बाद इन दोनों के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया। इस दौरान राष्ट्रवादी सेना पर कम्युनिस्ट सेना भारी पड़ी और 1949 में पूरे चीन पर माओत्से तुंग का शासन हो गया। 1949 में बना चीन जिसकी पहचान एक देश से ज्यादा कुछ चेहरों से होती रही। माओत्से तुंग चीन के पहले राष्ट्रपति और दुनिया के कई हिस्सों के लिए एक तानाशाह। 1 अक्टूबर 1949 को जब माओ ने चीन की आजादी की घोषणा की तो खुद को उस देश का सबसे बड़ा नेता भी घोषित कर दिया था। 27 सालों तक चले संघर्ष, विवाद और कई राजनीतिक उठापटक के बाद माउ को ये कुर्सी प्राप्त हुई थी। चीन के लोग जबतक ये समझ पाते कि उन्होंने किसे चुना है काफी देर हो चुकी थी। माओ ने सत्ता में आते ही भूमि सुधार की ऐसी योजना लेकर आए, जिसमें जमीन के मालिकों से जमीन को छीनकर लोगों में बांटा जाता था। चीन के लोगों को लगा कि इससे सभी को जमीन मिल रही है। चीन की सरकार जमीन के मालिकों या अमीर किसानों को पीट-पीटकर मार डाला जाता था और माओ की इस नीति पर कोई कुछ नहीं कहता था। चीन के आजादी के बाद शुरू हुई ये नीति 1951 तक चली। माना जाता है कि इसमें करीब 1 लाख लोगों की मौत हो गई थी। 

ग्रेट लीप फॉरवर्ड नीति और सांस्कृतिक क्रांति का दौर

 लैंड रिफॉर्म के बाद जनवरी 1958 में ग्रेट लीप फॉरवर्ड नीति लागू की। माओ का सोचना था कि वो 15 साल में अपने देश को फैक्ट्रियों और अनाज के दम पर ब्रिटेन से भी आगे ले जाएगा। इस नीति में चीन के लोगों को मजदूर बना दिया गया। लोगों से जबरदस्ती खेती कराई गई और उन्हें टारगेट दिए गए। देश के सारे खेत सरकार के कंट्रोल में आ गए। ज्यादा अनाज पैदा करने के लालच में लगे माओ ने ये साफ कर दिया था कि खेतों में काम करने वाले लोगों को तभी खाने के लिए अनाज मिलेगा जब वो अपने काम के टारगेट पूरे करेंगे। लगातार खेतों में काम करने की नीति ने भयंकर अकाल को जन्म दिया दो 1959 से 1961 तक चला जिसमें करोड़ों लोगों की मौत हो गई। 16 मई 1966 को माओ ने चीन में सांस्कृतिक क्रांति की शुरुआत की जिसे कल्चरल रिव्यलूशन के नाम से भी जाना जाता है। उसी दिन ‘16 मई की सूचना’ नाम से एक विज्ञप्ति जारी की गयी। उसमें कहा गया था कि विज्ञान, शिक्षा, साहित्य, कला, समाचार, पुस्तक-प्रकाशन इत्यादि कई क्षेत्रों का नेतृत्व अब ‘सर्वहारा वर्ग के हाथों में नहीं रह गया है. उन्हें चला रहे सारे बुद्धिजीवी साम्यवाद-विरोधी हैं, जनता के शत्रु प्रतिक्रांतिवादियों का ढेर हैं। माओ लिखित ‘लाल पुस्तक’ लिये बच्चे और छात्र सांस्कृतिक क्रांति के ‘लाल रक्षक’ (रेड गार्ड) कहलाते थे। हर दिन हज़ारों-लाखों की संख्या में गांवों-शहरों की सड़कों पर निकल कर माओ के कथित ‘शत्रुओं’ को ढूंढते हुए वे उन पर टूट पड़ते थे। 18 जून 1966 को विश्वविद्यालयों के 60 वरिष्ठ प्रोफ़ेसरों की अपराधियों जैसी सुनवाई के बाद सड़कों पर दौड़ा-दौड़ा कर उन्हें लातों-मुक्कों से मारा गया। चीन की ये सांस्कृतिक क्रांति 9 सितंबर 1976 को माओ की मौत के साथ खत्म हो गई। 

10 हजार प्रदर्शनकारियों को गोलियों से भून डाला गया

माओ की मौत के बाद चीन में डेंग जिआओपिंग के रूप में फिर एक चेहरा सामने आया। डेंग ने आर्थिक सुधारों की नीती को 1978 में चीन में लागू किया। डेंग जिआओपिंग एक ऐसे चीनी नेता के तौर पर सामने आए जिन्होंने वक्त की नजाकत को समझते हुए सत्ता संभालने के एक वर्ष बाद ही अमेरिका का दौरा किया और कई उद्दयोगपतियों को चीन में निवेश के लिए मनाया। लेकिन साथ ही देश में भ्रष्टाचार, महंगाई और रोजगार में कमी जैसी समस्याएं भी सामने आईं। इसी दौरान चीन के लोग जब दूसरे लोकतांत्रिक देशों के संपर्क में आए तो उनमें भी लोकतंत्र के प्रति दिलचस्पी बढ़ने लगी। यही कारण है कि वहां के युवाओं में भी अब असंतोष बढ़ने लगा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना बढ़ने लगी है। इन सबका नतीजा ये हुआ कि चीनी नागरिकों के बीच एक आंदोलन जन्म लेने लगा। 4 जून, 1989 के दिन बीजिंग के थियानमेन चौक पर चीन ने अपने ही नागरिकों के खिलाफ सेना को उतार दिया था। ये प्रदर्शनकारी चीन में लोकतांत्रिक सुधारों की मांग कर रहे थे। सेना ने इन प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इस घटनाक्रम में कम से कम 10 हजार लोग मारे गए।  2013 में चीन में एक बार फिर एक नया चेहरा शी जिनपिंग के रूप में सामने आया। चीन में शी जिनपिंग को माओ और डेंग जिआओपिंग के बाद तीसरा सबसे बड़ा नेता माना जाता है। शी जिनपिंग के पिता माओ और डेंग जिआओपिंग के कार्यकाल में पार्टी में काफी ऊंचे पद पर कार्यरत थे। 

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2018 में किया संविधान संशोधन

चीन में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष माओ त्से तुंग के बाद पिछले दो दशक से पार्टी के नेता दो कार्यकाल की अनिवार्यता का पालन करते रहे थे ताकि तानाशाही से बचा जा सके और एक दलीय राजनीति वाले देश में सामूहिक नेतृत्व सुनिश्चित किया जा सके। लेकिन राष्ट्रपति के कार्यकाल को लेकर चीन ने बकायदा 2018 में संविधान संशोधन किया। चीन की संसद ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए महज दो कार्यकाल की अनिवार्यता को आज दो-तिहाई बहुमत से खत्म कर देश के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग के जीवन भर शीर्ष पद पर आसीन रहने का रास्ता साफ कर दिया है.संविधान संशोधन के बाद 64 वर्षीय शी के जीवन भर चीन का राष्ट्रपति बने रहने की बाधा समाप्त हो गई है. पिछली अधिकतम दो कार्यकाल की अनिवार्यता वाली प्रणाली में शी शासन के 10 साल पूरे होने के बाद 2023 में सेवानिवृत्त हो जाते। जिनपिंग ने अपने पीछे की लीडरशिप को इस तरह से तैयार किया है कि अब उनको चुनौती देने वाला कोई नहीं बचा है। ऐसी स्थिति में आने वाले दिनों में ये देखेंगे कि जब चीन की पार्टी खुद एक प्रस्ताव पारित करके कह देगी की चीन की 150 करोड़ लोगों की ये इच्छा है कि उस पर शी जिनपिंग हमेशा-हमेशा के लिए शासन करें। 

बहरहाल, इसमें तो कोई शक नहीं है कि चीन ने आर्थिक विकास के कई प्रतिमान गढ़ें हैं लेकिन इस बात में भी कोई शक नहीं है कि उसने अपने यहां लोगों के सामाजिक और लोकतांत्रिक मूल्यों का गला घोटा है। उसकी विस्तारवादी नीतियों की आलोचना पूरी दुनिया में हो रही है। आलम ये है कि चीन के नागरिक खुली आवाज में कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना नहीं कर सकते हैं। लोगों पर कई तरह की पाबंदियां हैं। इन सबसे इतर आज कम्युनिस्ट पार्टी की 100 साल की ये कामयाबी को हम केवल इस रूप में देख सकते हैं कि चीन अब एक देश की बजाए एक पार्टी बन चुका है। उसी पार्टी के शताब्दी समारोह में पार्टी की तरफ से एक व्यक्ति को आगे बढ़ा रही है। एक ऐसा व्यक्ति जिसने अपने सत्ता के दरम्यिान अपने समांतर सभी नेताओं को जेल में भेज दिया, उन्हें प्रताड़ित किया ताकि उसके चुनिंदा सिपाहसालार ही बचे और वही तमाम पदों पर बैठे हुए हैं। ऐसी स्थिति में जो चीन के मामलों के जानकार हैं उनका मानना है कि आने वाले कई दशकों तक जिनपिंग को गद्दी से हटाने के लिए शायद ही कोई तैयार हो।- अभिनय आकाश


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