By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Dec 16, 2020
नयी दिल्ली। प्रदर्शन कर रहे किसान संघों के नेताओं ने कहा है कि तीन नये कृषि कानूनों पर जारी गतिरोध तोड़ने के लिए एक नयी समिति गठित करना कोई समाधान नहीं है क्योंकि वे चाहते हैं कि इन कानूनों को पूरी तरह से वापस लिया जाए। उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को दिन में संकेत दिया कि वह गतिरोध का समाधान करने के लिए सरकार और किसान संघों के प्रतिनिधियों की एक समिति गठित कर सकता है। किसान संघों के नेताओं ने यह भी कहा है कि सरकार को संसद में ये कानून पारित करने से पहले किसानों और अन्य की एक समिति गठित करनी चाहिए थी। प्रदर्शन कर रहे 40 किसान संघों में शामिल राष्ट्रीय किसान मजदूर सभा के नेता अभिमन्यु कहार ने कहा कि वे लोग इस तरह की एक समिति गठित किए जाने के सरकार के प्रस्ताव को हाल ही में खारिज कर चुके हैं।
उन्होने कहा, ‘‘न्यायालय द्वारा एक नयी समिति गठित किया जाना कोई समाधान नहीं है। हम तीनों नये कृषि कानूनों को पूरी तरह से निरस्त किया जाना चाहते हैं। केंद्रीय मंत्रियों के एक समूह और किसान संघों के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है, जो खुद में एक समिति जैसी थी। ’’ संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य एवं स्वराज इंडिया पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने अपने एक ट्वीट में कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय यह फैसला कर सकता है कि ये कानून संवैधानिक है, या नहीं। लेकिन इनसे किसानों का हित होगा या नहीं, यह एक कानूनी मामला नहीं है। इसे किसानों और जनप्रतिनिधियों को ही सुलझाना होगा। समझौता करवाना अदालत का काम नहीं है। कमेटी के विचार (समिति गठित करने के प्रस्ताव) को किसान संगठन एक दिसंबर को ही खारिज कर चुके हैं।’’
संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 40 किसान संघ प्रदर्शन कर रहे हैं। टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राहां) ने कहा कि अब किसी नयी समिति (के गठन) का कोई मतलब नहीं रह गया है। बीकेयू एकता उग्राहां की पंजाब इकाई के महासचिव सुखदेव सिंह ने कहा, ‘‘हम नयी समिति में तभी शामिल होंगे, जब सरकार पहले तीनों नये कृषि कानूनों को निरस्त कर देगी। सरकार को नये कृषि कानून लागू करने से पहले किसानों एवं अन्य की एक समिति गठित करनी चाहिए थी। इस वक्त नयी समिति गठित करने का कोई मतलब नहीं है। ’’
हालांकि, भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा, ‘‘हमने उच्चतम न्यायालय के आदेश के बारे में मीडिया में आई खबरें ही अभी देखी हैं। हम पहले आदेश की प्रमाणित प्रति देखेंगे और फिर यह देखेंगे कि सरकार क्या कहती है। तभी जाकर हम इस पर टिप्पणी कर सकते हैं। ’’ कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों को हटाने के लिये दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने संकेत दिया कि न्यायालय इस विवाद का समाधान तलाशने के लिये एक समिति गठित कर सकता है। वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से यह सुनवाई की गई। न्यायालय इस मामले में बृहस्पतिवार को आगे सुनवाई करेगा। दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को तुरंत हटाने के लिये न्यायालय में कई याचिकायें दायर की गयी हैं।
इनमें कहा गया है कि इन किसानों ने दिल्ली-एनसीआर की सीमाएं अवरूद्ध कर रखी हैं, जिसकी वजह से आने जाने वालों को बहुत परेशानी हो रही है और इतने बड़े जमावड़े की वजह से कोविड-19 के मामलों में वृद्धि का भी खतरा उत्पन्न हो रहा है। पीठ ने केन्द्र से कहा, ‘‘आपकी बातचीत संभवत: सफल नहीं रही है। यह नाकाम होने वाली है। आप कह रहे हैं कि आप बातचीत को इच्छुक हैं। ’’ केन्द की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा, ‘‘हां, हम किसानों के साथ बातचीत करने को इच्छुक हैं। ’’ उल्लेखनीय है कि नये कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली से लगी सीमाओं पर हजारों की संख्या में किसान पिछले 20 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका दावा है कि कानून मंडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को खत्म कर देंगे। हालांकि, सरकार ने इन आशंकाओं को खारिज किया है।