आईबीसी की धारा 29ए के तहत अयोग्य नहीं होने पर पूर्व प्रवर्तक, निदेशक बोली कर सकते हैं जमा

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jan 11, 2024

राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने बृहस्पतिवार को कहा कि दिवाला प्रक्रिया से गुजर रही कंपनी के पूर्व प्रवर्तकों और निदेशकों को तब तक बोलियां जमा करने से नहीं रोका जाएगा जब तक कि वे दिवाला कानून की धारा 29ए की धारा के तहत अयोग्य न हों। अपीलीय न्यायाधिकरण ने इस संबंध में राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण की मुंबई पीठ के एक आदेश को रद्द कर दिया। उसने कहा कि केवल यह तथ्य कि कोई व्यक्ति कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) से गुजर रही कंपनी का प्रवर्तक और निदेशक था, उस व्यक्ति को समाधान योजना जमा करने के लिए अयोग्य नहीं बनाता है। एनसीएलटी ने कहा था कि दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) की धारा 29ए ऐसे व्यक्तियों को समाधान योजना जमा करने से रोकती है क्योंकि इसका पूरे सीआईआरपी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

न्यायाधिकरण ने ब्लू फ्रॉग मीडिया के लिए महेश मथाई की समाधान योजना को खारिज करते हुए यह बात कही थी। मथाई कंपनी में निदेशक थे। मथाई के प्रस्ताव को कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) ने 91.86 प्रतिशत मतों के साथ मंजूरी दे दी। उसके बाद समाधान पेशेवर ने एनसीएलटी के समक्ष अनुमोदन के लिए याचिका दायर की। लेकिन एनसीएलटी ने उसे खारिज कर दिया। इसे समाधान पेशेवर ने अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती दी थी। अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा, ‘‘धारा 29ए प्रवर्तकों और निदेशकों को समाधान योजना जमा करने को लेकर अयोग्य नहीं बनाती है। जब तक कि वे आईबीसी के उपबंध (ए) से (जी) के तहत अयोग्य न हों, वे समाधान योजना जमा करने को लेकर पात्र हैं।’’

अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा कि मथाई ने समाधान योजना जमा करने से पहले ही कंपनी से इस्तीफा दे दिया था। आईबीसी की धारा 29ए ऐसे व्यक्तियों को परिभाषित करती है, जो समाधान आवेदन के लिए पात्र नहीं है। ऐसे व्यक्ति जो जानबूझकर चूककर्ता हैं, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के प्रवर्तक हैं, किसी अपराध को लेकर दो साल के कारावास की सजा पा चुके हैं या सेबी की तरफ से उनपर पाबंदी लगायी गयी है, एक कॉरपोरेट कर्जदार के संबंध में कर्जदाताओं के पक्ष में गारंटी दी है - धारा 29ए के तहत उन पर पाबंदी है।

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