By नीरज कुमार दुबे | Feb 12, 2024
मोदी है तो मुमकिन है यह कोई चुनावी नारा नहीं बल्कि हकीकत बन चुका है। कतर जेल में बंद भारतीय नौसेना के आठ पूर्व कर्मियों की रिहाई दर्शाती है कि वाकई मोदी में नामुमकिन को भी मुमकिन करने का माद्दा है। दो देशों के बीच युद्ध छिड़ जाये तो मोदी के आग्रह पर युद्धरत देश भारतीयों को सकुशल निकलने का रास्ता दे देते हैं, कहीं सैन्य तख्तापलट हो जाये और हथियारबंद लोग देश पर कब्जा कर लें और गोलीबारी के बीच किसी का बाहर निकलना ही मुश्किल हो जाये तो भी मोदी की कूटनीति ऐसा कमाल करती है कि भारतीयों को सकुशल निकलने का रास्ता दे दिया जाता है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के दौरान भारतीयों को सकुशल निकालने की बात हो, समुद्री डाकुओं के चंगुल से लोगों को छुड़वाने की बात हो, कभी ऑपरेशन गंगा तो कभी ऑपरेशन कॉवेरी या ऐसे ही अन्य अभियानों के माध्यम से विदेशों में फंसे भारतीयों को निकालने की बात हो... मोदी सरकार हमेशा सफल रही है। खासतौर पर मोदी ने खाड़ी देशों के साथ जो निकट संबंध बनाये हैं उसका लाभ समय-समय पर भारत को मिला है। जरा पिछले साल सूडान में हुए तख्तापलट के बाद की घटनाओं को याद कीजिये। उस समय भारतीयों को सकुशल निकालने के लिए जो अभियान चला था उसके तहत जेद्दा ने भारतीय नौसेना के जहाजों और वायुसेना के विमानों को अपने यहां तैनात करने की मंजूरी दे दी थी जिसके चलते जैसे ही सूडान में संघर्षविराम हुआ वैसे ही भारतीयों की सुरक्षित निकासी का अभियान ऑपरेशन कावेरी शुरू हो गया था।
कतर में भी जब आठ भारतीयों को मृत्युदंड सुनाये जाने का वाकया सामने आया था तब अधिकांश लोगों ने यह उम्मीद छोड़ दी थी कि वहां फंसे भारतीयों की वापसी कभी हो पायेगी। दरअसल इतिहास गवाह रहा है कि जासूसी का आरोप लगाकर पकड़े जाने वाले लोगों के मामलों में वहां की अदालतें और सरकार पारदर्शिता नहीं बरततीं। ना ही कभी यह बताया जाता है कि क्या-क्या आरोप लगाये गये हैं, ना ही आरोपी को कभी उसके वकील या परिजन से मिलने दिया जाता है। अचानक से दोषी ठहरा कर सजा सुना दी जाती है। लेकिन पिछले दस सालों में माहौल पूरी तरह बदल चुका है। विदेश में फंसे हर भारतीय को पता होता है कि उसे उसके हाल पर नहीं छोड़ दिया जायेगा। उसे यकीन होता है कि भारत सरकार उसे बचाने आयेगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसे बचाने के लिए व्यक्तिगत रूप से पहल करेंगे। उसका यह यकीन तब हकीकत में बदल जाता है जब वह सकुशल लौट कर भारतीय जमीं पर कदम रखता है। पिछले दस सालों में जितने भी लोग संघर्षरत या युद्धरत देशों से लौटे हैं आप उन सभी के बयान सुनेंगे तो उसमें एक बात समान होगी कि यह सब प्रधानमंत्री मोदी की वजह से ही मुमकिन हुआ है। कतर से लौटे भारतीयों ने भी एकदम यही बात कही है।
इस मामले में एक बात यह भी सामने आ रही है कि यदि यह मामला न्यायिक स्तर पर ही लटका रहता और प्रक्रियागत रूप से ही इसे सुलझाने का प्रयास होता तो संभव है यह मुद्दा कभी नहीं सुलझता या इस काम को होने में सालों लग जाते। मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निजी हस्तक्षेप से यह सारा मामला बहुत जल्दी सुलझ गया। दिसंबर माह में जब प्रधानमंत्री यूएई गये थे तब भी उन्होंने कतर के अमीर के साथ इस मामले पर चर्चा की थी। खास बात यह है कि कतर से आठ भारतीयों की रिहाई ऐसे समय पर हुई है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर यूएई के दौरे पर गये हैं। हम आपको यह भी बता दें कि कतर से भारतीयों की रिहाई की खबर तब ही सामने आई जब वह स्वदेश वापस पहुँच गये। इसके बारे में विदेश मंत्रालय (एमईए) ने कहा कि रिहा किए गए आठ भारतीयों में से सात भारत लौट आए हैं और देश अपने नागरिकों की रिहाई तथा उनकी घर वापसी को संभव बनाने के लिए कतर के अमीर के फैसले की सराहना करता है। विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘भारत सरकार कतर में हिरासत में लिए गए दहरा ग्लोबल कंपनी के लिए काम करने वाले आठ भारतीय नागरिकों की रिहाई का स्वागत करती है।’’
जहां तक इस पूरे मामले की बात है तो आपको बता दें कि नौसेना के पूर्व कर्मियों को 26 अक्टूबर को कतर की एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। खाड़ी देश की अपीलीय अदालत ने हालांकि 28 दिसंबर को मृत्युदंड को कम कर दिया था और पूर्व नौसैन्य कर्मियों को अलग-अलग अवधि के लिए जेल की सजा सुनाई थी। निजी कंपनी अल दहरा के साथ काम करने वाले भारतीय नागरिकों को जासूसी के एक कथित मामले में अगस्त 2022 में गिरफ्तार किया गया था। हम आपको यह भी बता दें कि न तो कतर के अधिकारियों और न ही भारत ने भारतीय नागरिकों के खिलाफ आरोपों को कभी सार्वजनिक किया। पिछले साल 25 मार्च को भारतीय नौसेना के आठ पूर्व कर्मियों के खिलाफ आरोप दाखिल किए गए थे और उन पर कतर के कानून के तहत मुकदमा चलाया गया था। अपीलीय अदालत ने मौत की सजा को कम करने के बाद भारतीय नागरिकों को उनकी जेल की सजा के आदेश के खिलाफ अपील करने के लिए 60 दिन का समय दिया था। इसके बाद भारत सजायाफ्ता व्यक्तियों के स्थानांतरण पर द्विपक्षीय समझौते के प्रावधानों को लागू करने की संभावना पर भी विचार कर रहा था। उल्लेखनीय है कि भारत और कतर के बीच 2015 में हुए समझौते के तहत भारत तथा कतर के उन नागरिकों के अपने-अपने देश में सजा काटने का प्रावधान है जिन्हें किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया है और सजा सुनाई गई है।