By अजय कुमार | Apr 29, 2024
लखनऊ। समाजवादी पार्टी पिछड़ों और खासकर यादव बिरादरी को अपना मजबूत वोट बैंक मानती है, लेकिन जब यादव नेताओं को टिकट देने की बारी आती है तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव को अपने कुनबे के अलावा कोई यादव नेता दिखाई नहीं देता है। इसलिये अबकी से समाजवादी पार्टी का यादव नेताओं को टिकट देने के मामलें में शून्य पर खड़ा है। समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में पहली बार परिवार के बाहर के किसी यादव को टिकट नहीं दिया है। यानी जिन पांच यादवों को मैदान में उतारा है, वे सभी अखिलेश के कुनबे से आते हैं यानी परिवार के ही सदस्य हैं।
ऐसा मुलायम के समय में नहीं होता था। इसी लिये कहा जा रहा है कि मुलायम सिंह यादव की राजनीति के भरोसे शिखर पर पहुंचे अखिलेश की राजनीति से पिता मुलायह की राजनीति से काफी अलग है। नेताजी हर लोकसभा चुनाव में अपने परिवार के तीन से चार सदस्यों के अलावा भी यादवों को उतारते रहे हैं। इन चुनावों में करीब 19. फीसदी हिस्सेदारी वाले यादव वोटबैंक की अनदेखी वाले सपा के प्रयोग की भी परीक्षा होगी।
गौरतलब हो, सपा 62 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अब तक 59 उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। मैनपुरी से डिंपल, कन्नौज से अखिलेश यादव, आजमगढ़ में धर्मेंद्र यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव, बदायूं से आदित्य यादव मैदान में हैं। सैफई परिवार के क्षत्रप अपनी ही सीट पर फंसे हुए हैं। वे अन्य सीटों नहीं पहुंच पा रहे हैं। भाजपा ने भी सैफई परिवार के उम्मीदवारों को उनके घर में ही घेरे रखने की रणनीति बनाई है, तो दूसरी तरफ यादव वोटबैंक को अपने पाले में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है।
बहरहाल, सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि भाजपा की हार चाल को जनता समझ चुकी है। सपा पीडीए के फॉर्मूले पर कार्य कर रही है। पांच यादवों को टिकट दिया है। वर्ष 1999 में पहली बार मुलायम सिंह सांसद बने थे। वह सात बार सांसद रहे, जबकि अखिलेश ने वर्ष 2000 में लोकसभा के उपचुनाव से सियासी सफर शुरू किया। फ्लैशबैक में जाएं तो वर्ष 2014 में सपा ने 13 यादवों को टिकट दिया था, जिनमें मुलायम सहित पांच लोग विजेता रहे। इसी तरह 2019 में 11 यादवों को टिकट मिला था, जिसमें पांच सीटें मिलीं। मुलायम और अखिलेश के अलावा अन्य हार गए थे।
इस पर कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष, अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा अरूण यादव का कहना है कि पिछड़ों में यादवों की हिस्सेदारी 19.40 फीसदी है। सभी दलों ने निराश किया है। सपा ने सैफई परिवार के पांच लोगों को टिकट दिया है। इन्हें यादव के तौर पर नहीं देखा जाता है। फिर भी प्रतिशत के हिसाब से देखें तो सपा ने 8.47 फीसदी टिकट दिया है, जबकि बसपा ने अब तक घोषित टिकट के अनुसार 9.30 फीसदी टिकट यादवों को दिया। भाजपा ने सिर्फ एक यादव को उतारा है। ऐसे में यादव समाज को अपनी हिस्सेदारी के लिए नई रणनीति अपनानी होगी।