विकसित हो रहे समाज के ज़माने में पुराने समाधान दफना कर नए उगाए जा रहे हैं। वह बात और है कि कानून बहुत सख्त होने के बावजूद भी कितनों के अपने कानून हैं। उन्हें दूसरों के बनाए कानून स्वादिष्ट नहीं लगते। रोज़ उनका ताज़ा ‘कानूनी’ किस्सा देखने सुनने को मिलता है। मनोरंजन चौबीस घंटे उपलब्ध है जनता खुश, परेशानी नाखुश है। सोशल मीडिया के ओपन माउथ थिएटर में डायलागबाज़ी का अंत नहीं, एक बंदा पंगा करता है और कीमत लाखों को नकद चुकानी पड़ती है। अख़बार पढ़ लो, चैनल देख लो, प्रवचन सुन लो, जीवन मैला करने वाली ख़बरें किसी न किसी कोने से आ ही जाती हैं।
राजनीति और बुद्धि के वज़ीरों ने काफी कुछ करके देख लिया। खूब बातें होती है लेकिन बात बनती नहीं दिखती। समझदार सोहबत में बैठने वालों के अनुसार बहुत लोगों की शारीरिक भूख पूरी नहीं हो रही। उन्होंने सुझाया कि इस भूख को वैध घोषित कर देना चाहिए, वैसे भी यह वृति समाज में व्याप्त तो है ही, हां इसके रूप और कोण अलग अलग हैं। समझदारों के अनुसार यह कार्य कुछ न करने वाली एनजीओज को करना चाहिए। बताते हैं हमारे यहां करोड़ों एनजीओज हैं जिनमें से हज़ारों सही ढंग से कार्य करती हैं। जिन एनजीओज के कर्ताधर्ताओं को समझ नहीं आता कि वे क्या करें उन्हें मिलकर राष्ट्रीय सर्वे करना चाहिए। जिसके आधार पर शारीरिक कुभावना से पीड़ित व्यक्तियों को वैध तरीके से उचित जगह पर बुलाकर उनकी भूख मिटाने का प्रबंध किया जाना चाहिए। उसी केंद्र में उनकी मानसिक, आर्थिक व शारीरिक काउंस्लिंग की सुविधा भी होनी चाहिए।
विकास होते रहते कुछ और ज़रूरी काम भी कर लेने चाहिए। लोगों को ज़रा ज़रा सी बात पर तैश खाने, मरने मारने, सार्वजनिक प्रॉपर्टी तोड़ने फोड़ने का शौक है। एक विकसित बुद्धिमान के अनुसार इसके लिए अधिकृत अहाते बना देना चाहिए जहां पुरानी टूटी फूटी बसें, फर्नीचर, तार कोल के ड्रम, पत्थर इत्यादि उपलब्ध होने चाहिए ताकि जब भी बदलाव प्रेमी व्यक्तियों का दिल करे यहां आकर तोड़ फोड़ कर लें। कई शहरों में यह प्रयोग हुआ है कि पोस्टर लगाने के लिए कुछ जगहें चिन्हित कर दी गई। इसी तर्ज़ पर पहले से चिन्हित कुछ स्थानों पर नारे लगाने, एक दूसरे को पीटने, सिर फोड़ने, कपड़े फाड़ने की सुविधा उपलब्ध करवाई जाए ताकि धार्मिक, राजनैतिक, जातीय वैमनस्य या किसी भी तरह की खुन्नुस बिना किसी विघ्न के सम्पन्न हो और दूसरे परेशानी से बचें। इन जगहों पर एनजीओ की तरफ से एक मुफ्त डिसपैंसरी भी खोली जा सकती है। इस बहाने डाक्टर को नौकरी भी मिल सकती है।
स्वच्छता अभियान के अंतर्गत ऐसे क्षेत्र भी उपलब्ध करवाए जाने चाहिए जहां पर कोई भी, किसी भी किस्म का कूड़ा कचरा हवा में ऊछाल कर फेंक सकता हो। चाहे तो कचरा अपने ऊपर डालने का आनंद भी ले सकता है। ज़ोर ज़ोर से पूजा करने व करवाने वालों को किसी साउंड प्रूफ जगह पर सुविधा दी जा सकती है ताकि उनका काम भी हो जाए और दूसरों के कान ठीक रहें। समझदारों को लगता है अगर ये सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सामाजिक संस्थाएं तैयार हो जाएंगी, तो उनके लिए यह नया काम होगा और इसके माध्यम से वे खूब पुण्य कमा सकेंगी। समाचार पत्रों को भी नए विषय मिलेंगे।
वैसे तो हमारे यहां सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को लागू करने में टाल मटोल करने की राष्ट्रीय, ऐतिहासिक व सांस्कृतिक परम्परा है। लेकिन ये नैतिक कार्य तो ईमानदारी से कुछ भी करने वाले व्यक्तियों द्वारा भी कराए जा सकते हैं। सब जानते और मानते हैं कि आपसी सदभाव व समझ से बड़े बड़े काम हो जाते है। निरंतर विकसित होते जा रहे नए समाज के लिए कुछ नए विकसित समाधानों की ज़रूरत भी तो है।
- संतोष उत्सुक