दोनों सदनों में आपातकाल की निंदा की गयी लेकिन सवाल उठता है कि क्या इतना भर पर्याप्त है?

By नीरज कुमार दुबे | Jul 04, 2024

हाल में संपन्न लोकसभा चुनावों से लेकर 18वीं लोकसभा के पहले सत्र के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन तक विपक्ष खासकर कांग्रेस ने संविधान की दुहाई दी। विपक्ष ने ऐसी तस्वीर प्रस्तुत की जैसे वह संविधान की रक्षा के लिए खड़ा है और सत्ता पक्ष संविधान को खत्म करना चाहता है। लेकिन देश पर आपातकाल थोप कर भारत के संविधान पर सबसे बड़ा हमला करने वाली कांग्रेस को करारा जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हालिया लोकसभा चुनाव अगर संविधान की रक्षा का ही चुनाव था तो देशवासियों ने भाजपा को इसके योग्य पाया है।


एक दिन पहले संसद के समाप्त हुए सत्र के दौरान सत्ता पक्ष ने आपातकाल को लेकर विपक्ष पर हमला किया तो विपक्ष ने सरकार पर संविधान विरोधी रुख अपनाने का आरोप लगाया। संसद सत्र के दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण में आपातकाल का जिक्र आया, प्रधानमंत्री के भाषण में आपातकाल का जिक्र आया, दोनों सदनों में आपातकाल की निंदा की गयी लेकिन सवाल उठता है कि क्या इतना भर पर्याप्त है। क्या कांग्रेस के संविधान विरोधी कदम की निंदा भर कर देने से यह सुनिश्चित हो जायेगा कि फिर कभी यह पार्टी संविधान पर हमला नहीं करेगी? इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय का कहना है आपातकाल की सिर्फ निंदा करने से काम नहीं चलेगा बल्कि उस दौरान संविधान के बेसिक स्ट्रकचर के साथ जो छेड़छाड़ की गयी थी उसको ठीक किया जाना चाहिए।

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प्रधानमंत्री का संबोधन


जहां तक प्रधानमंत्री के संबोधन की बात है तो हम आपको याद दिला दें कि राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए मोदी ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया' पर लोकसभा चुनाव में संविधान की रक्षा का ‘फर्जी विमर्श’ गढ़ने का आरोप लगाया। उन्होंने आपातकाल की याद दिलाते हुए कहा कि उस दौर में संविधान पर जुल्म हुआ, बुलडोजर चलाया गया और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा दी गई थीं। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस को संविधान की ‘सबसे बड़ी विरोधी’ पार्टी बताया और कहा कि इसका विरोध ही उसके जेहन में है। उन्होंने इस बात पर आपत्ति जताई कि अभिभाषण के दौरान कई विपक्षी सदस्यों ने 2024 के लोकसभा चुनाव को देश के इतिहास का पहला चुनाव बताया जिसका मुद्दा ‘संविधान की रक्षा’ था। उन्होंने सवाल किया, ‘‘अभी भी यह फर्जी विमर्श चलाते रहोगे क्या? क्या आप भूल गए 1977 का चुनाव?’’ उन्होंने कहा, ‘‘अखबार बंद थे, रेडियो बंद था, बोलना भी बंद था। और एक ही मुद्दे पर देशवासियों ने वोट किया था। लोकतंत्र की पुनर्स्थापना के लिए वोट किया था। संविधान की रक्षा के लिए पूरे विश्व में इससे बड़ा कोई चुनाव नहीं हुआ है।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के लोगों की रगों में लोकतंत्र कैसे जीवित है यह 1977 के चुनाव ने दिखा दिया था। उन्होंने कहा, ‘‘मैं मानता हूं संविधान की रक्षा का सबसे बड़ा चुनाव 1977 का चुनाव था। उस समय देश की विवेक बुद्धि ने संविधान की रक्षा के लिए, तब सत्ता पर बैठे लोगों को उखाड़ फेंका था। और इस बार संविधान की रक्षा का चुनाव था तो देशवासियों ने संविधान की रक्षा के लिए हमें योग्य पाया, हम पर भरोसा जताया।’’


विपक्षी सदस्यों पर सदन को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के संविधान की बातें करने वालों से वह पूछना चाहते हैं कि किस संविधान के तहत लोकसभा को सात साल तक चलाया गया था जबकि इसका कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। उन्होंने पूछा, ‘‘वह कौन-सा संविधान था जिसे लेकर आप सात साल तक सत्ता की मौज लेते रहे और लोगों पर जुल्म करते रहे। और आप संविधान हमें सिखाते हो।’’ संविधान के 38वें, 39वें और 42वें संशोधन का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि संविधान की आत्मा को छिन्न-भिन्न करने का पाप इन्हीं लोगों ने उस कालखंड में किया था। उन्होंने कहा, ‘‘यह सब क्या था? आपके मुंह से संविधान की रक्षा का शब्द शोभा नहीं देता है। आप लोग यह पाप करके बैठे हुए हो।’’ 


मोदी ने पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के 10 वर्ष के कार्यकाल का उल्लेख करते हुए कहा कि उस दौरान प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद की गरिमा को गिराते हुए उसके ऊपर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन कर दिया, रिमोट से सरकार चलाई गई और एक सांसद ने मंत्रिमंडल के फैसले की प्रति सार्वजनिक रूप से फाड़ डाली। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘कौन-सा संविधान आपको यह अनुमति देता है? जरा यह बताएं हमको कि वह कौन सा संविधान है जो एक सांसद को कैबिनेट के निर्णय को सार्वजनिक रूप से फाड़ देने का हक दे देता है...किस हैसियत से फाड़ा गया था।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि संविधान की मर्यादाओं को तार-तार करके ‘प्रोटोकॉल’ में एक परिवार को प्राथमिकता दी गई और वह भी संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को नजरअंदाज करके। उन्होंने कहा, ‘‘और आज आप संविधान की बातें करते हैं। जय संविधान कहते हैं। अरे, आप लोग तो ‘इंडिया इज इंदिरा’ और ‘इंदिरा इज इंडिया’ का नारा देकर जिए हैं। आप संविधान को कभी आदर भाव नहीं दे पाए। देश में कांग्रेस संविधान की सबसे बड़ी विरोधी है, संविधान का विरोध उसके जेहन में है।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि आज कांग्रेस के साथ जो लोग गठबंधन में हैं उनमें बहुत लोग ऐसे हैं जो आपातकाल के भुक्तभोगी रहे हैं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, ‘‘लेकिन उनकी कुछ मजबूरियां होंगी कि वह आज उनके साथ बैठे हैं। यह अवसरवादिता का दूसरा नाम है। संविधान के प्रति समर्पण का भाव होता तो ऐसा नहीं करते।’’


प्रधानमंत्री ने कहा कि आपातकाल सिर्फ एक राजनीतिक, लोकतांत्रिक और संवैधानिक संकट ही नहीं था बल्कि एक बहुत बड़ा मानवीय संकट भी था, जिसमें अनेक लोगों को प्रताड़ित किया गया। उन्होंने कहा कि सदन में कुछ ऐसे दल भी हैं तो खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी बताते हैं लेकिन आपातकाल के दौरान मुजफ्फरनगर और दिल्ली के तुर्कमान गेट के पास अल्पसंख्यकों के साथ क्या हुआ था, इस बारे में कांग्रेस से सवाल करने की हिम्मत नहीं करते। उन्होंने कहा, ‘‘यह कांग्रेस को क्लीन चिट दे रहे हैं। कैसे देश उनको माफ करेगा? यह शर्मनाक है। ये, ऐसी तानाशाही को भी आज सही ठहराने वाले लोग हैं। ये हाथ में संविधान की प्रति लेकर अपने काले कारनामों को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं।''


बहरहाल, देखा जाये तो आपातकाल के ‘‘काले दिनों’’ को कभी नहीं भूला जा सकता जब संस्थानों को सुनियोजित तरीके से ध्वस्त कर दिया गया था। आपातकाल हमें निरंकुश ताकतों के खिलाफ विद्रोह तथा तानाशाही, भ्रष्टाचार और वंशवाद के विरुद्ध संग्राम का सबक और साहस भी देता है। लोकतंत्र की मूल अवधारणाओं को तभी मजबूत किया जा सकता है जब हम तानाशाहों के खिलाफ आवाज उठाते रहेंगे। हमें उस राजनीतिक दल और उस राजनीतिक परिवार से भी सावधान रहना होगा जो लोकतंत्र और संविधान के बारे में बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन उनका इतिहास सत्ता के सुख के लिए और एक परिवार की खातिर देश को जेल में तब्दील कर देने का है।

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