मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से समाज में बढ़ती जा रही है प्रसन्नता

FacebookTwitterWhatsapp

By प्रह्लाद सबनानी | Mar 30, 2021

मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से समाज में बढ़ती जा रही है प्रसन्नता

किसी भी देश की आर्थिक नीतियों की सफलता का पैमाना, वहां के समस्त नागरिकों में प्रसन्नता विकसित करना होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति सामान्यतः प्रसन्नता तभी प्राप्त कर सकता है जब एक तो जो भी कार्य वह कर रहा है उसमें उसको आनंद की अनुभूति हो रही हो एवं दूसरे उसके द्वारा किए जा रहे कार्य से उसकी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से हो जाती हो। विकास के शुरुआती दौर में तो रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य सेवायें एवं अच्छी शिक्षा की प्राप्ति ही सामान्य जन को प्रसन्न रख सकती है।


भारतवर्ष की आज़ादी के लगभग 73 वर्षों के बाद भी, इस देश के नागरिकों को आज अपनी आवश्यक जरूरतों की पूर्ति हेतु अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है। कई बार तो इस संघर्ष के बाद भी परिवार के समस्त सदस्यों के लिए दो जून की रोटी जुटाना भी अत्यंत कठिन कार्य हो जाता है। अतः देश पर शासन करने वाले सत्ताधारी दलों का यह दायित्व होना चाहिए कि देश में रह रहे नागरिकों को रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध करवाएं जायें जिससे उनके द्वारा उनके परिवार के समस्त सदस्यों का पालन पोषण आसानी से किया जा सके। समाज में यह कहा भी जाता है की “भूखे पेट भजन ना हो गोपाला”। जब देश के नागरिकों की भौतिक आवश्यकताएं ही पूरी नहीं होंगी तो वे अध्यात्मवाद की और कैसे मुड़ेंगे। चाणक्य ने तो यहां तक कहा है कि अर्थ के बिना धर्म नहीं टिकता।

इसे भी पढ़ें: भारत की प्रगति की राह में कोरोना अकेला बाधक नहीं है, आंदोलनजीवी भी पूरा साथ दे रहे हैं

विश्व के विभिन देशों में नागरिकों की खुशी आंकने की दृष्टि से प्रतिवर्ष प्रसन्नता सूचकांक का आंकलन वैश्विक स्तर पर सभी देशों के लिए किया जाता है। इस सूचकांक के आंकलन में 6 पैरामीटर का उपयोग किया जाता है, इनमें शामिल हैं, सकल घरेलू उत्पाद का स्तर, देश के नागरिकों की अनुमानित औसत आयु, नागरिकों की सामाजिक स्थिति एवं आपस में सहयोग, देश में भ्रष्टाचार का स्तर, देश में नागरिकों की स्वतंत्रता की स्थिति एवं देश के सतत विकास की स्थिति। वैश्विक स्तर पर वर्ष 2020 में फिनलैंड, डेनमार्क एवं स्विट्ज़रलैंड प्रसन्नता सूचकांक में सबसे आगे रहे हैं। भारत चूंकि एक विकासशील देश है एवं देश की आबादी बहुत अधिक है अतः उक्त 6 पैरामीटर पर भारत की स्थिति विकसित देशों की तुलना में बहुत अच्छी रहने वाली नहीं है। 

 

अतः भारत में भी हाल ही में देश के 36 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के नागरिकों में प्रसन्नता सूचकांक का आंकलन किया गया है। इसके आंकलन में उक्त वर्णित 6 पैरामीटर के इतर 6 अन्य पैरामीटर का उपयोग किया गया है। यथा, देश में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति, धार्मिक एवं आध्यात्मिक उन्मुखीकरण, परोपकार की भावना, रिश्तेदारों के आपस में सम्बंध निभाने की स्थिति, कार्य की उपलब्धता, कोरोना महामारी का असर। इस आंकलन के लिए मार्च से जुलाई 2020 के बीच में 36 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के 16,950 नागरिकों से जानकारी एकत्रित की गई थी। इस प्रसन्नता सूचकांक में मिज़ोरम, पंजाब, अंडमान एवं निकोबार आयलैंड क्रमशः प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर रहे हैं। बड़े राज्यों की सूची में पंजाब, गुजरात एवं तेलंगाना राज्य क्रमशः प्रथम तीन स्थानों पर रहे हैं, जबकि उत्तर प्रदेश ने भी प्रथम 10 राज्यों में अपनी जगह बनाई है। 

 

अब मूल प्रशन हमारे सामने यह है कि देश के नागरिकों के प्रसन्नता सूचकांक में किस प्रकार सुधार किया जाये। एक सीधा-सा तरीका तो यह हो सकता है कि देश के नागरिकों को, उनकी आवश्यकता के अनुसार, रोजगार के उचित अवसर उपलब्ध कराए जाएं। आज जब हम भारतवर्ष में देखते हैं कि देश की लगभग एक चौथाई आबादी, आज भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर है, तब यह अनायास ही आभास होने लगता है कि क्या देश में पिछले 73 वर्षों के दौरान आर्थिक नीतियों का क्रियान्वयन पूर्णतः सफल नहीं रहा है? श्रम करना नागरिकों का मूलभूत कर्तव्य है अतः देश में निवास कर रहे नागरिकों के लिए, सरकार की ओर से रोजगार के अधिकार की गारंटी भी होनी चाहिए।

इसे भी पढ़ें: अर्थव्यवस्था को तेजी से उबारना है तो एमएसएमई क्षेत्र पर सर्वाधिक ध्यान देना होगा

देश की कुल आबादी का एक बहुत बड़ा भाग आज भी गांवों में ही निवास करता है। गांवों में निवास कर रहे नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर वहीं पर प्रतिपादित किए जाने की अत्यधिक आवश्यकता है जिससे ये नागरिक अपने परिवार का लालन पोषण गांव में ही कर सकें एवं इन नागरिकों का शहर की ओर पलायन रोका जा सके ताकि अंततः इन नागरिकों की प्रसन्नता में वृद्धि दर्ज हो सके। 

 

वैसे भी भारतवर्ष की आर्थिक प्रगति में कृषि क्षेत्र के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। प्रायः यह पाया गया है कि जिस किसी वर्ष में कृषि क्षेत्र में विकास की दर अच्छी रही है तो उसी वर्ष देश के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर भी अच्छी रही है। ठीक इसके विपरीत, जिस किसी वर्ष में कृषि क्षेत्र में विकास की गति कम हुई है तो देश में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर भी कम ही रही है। इसका सीधा-सा कारण यह है कि कृषि क्षेत्र पर निर्भर जनसंख्या के अधिक होने के कारण, एवं इस क्षेत्र पर निर्भर लोगों की आय में कमी होने से अन्य क्षेत्रों, यथा उद्योग एवं सेवा, द्वारा उत्पादित वस्तुओं की मांग में भी कमी हो जाती है। अतः इन क्षेत्रों की विकास दर पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए भारतवर्ष की आर्थिक नीतियां कृषि एवं ग्रामीण विकास केंद्रित होनी चाहिए एवं रोजगार के अधिक से अधिक अवसर भी कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में ही उत्पन्न होने चाहिए। कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों के सम्पन्न होने पर उद्योग एवं सेवा क्षेत्रों में भी वृद्धि दर में तेजी आने लगेगी। 

 

कई विकसित देशों में प्रायः यह देखा गया है कि कृषि क्षेत्र के विकसित हो जाने के बाद ही औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई है। इससे आर्थिक वृद्धि की दर में तेज गति आई है। क्योंक, उद्योगों को कच्चा माल प्रायः कृषि क्षेत्र द्वारा ही उपलब्ध कराया जाता है। यदि कृषि क्षेत्र विकसित अवस्था प्राप्त नहीं कर पाता है तो कच्चे माल के अभाव में उस देश के उद्योगों को पनपने में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। हां, उस कच्चे माल का आयात करके तो उस तात्कालिक कमी की पूर्ति सम्भव है परंतु लम्बे समय तक आयात पर निर्भर रहना स्वदेशी औद्योगिक क्रांति के लिए यह ठीक नीति नहीं कही जा सकती। अगर देश के उद्योग अपने कच्चे माल की पूर्ति के लिए अपने देश के कृषि क्षेत्र पर अपनी निर्भरता बढ़ाते हैं तो इससे देश के ही कृषि क्षेत्र का तेज गति से विकास होगा। कृषि क्षेत्र पर निर्भर जनसंख्या की आय में वृद्धि होगी और इन्हीं उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की मांग में वृद्धि होगी। परिणामतः देश की तरक्की में स्वदेशी योगदान भी बढ़ेगा और अंततः देश के नागरिकों में खुशी का संचार होगा। 

 

भारतवर्ष में आज भी कृषि क्षेत्र के विकास की असीमित संभावनाएं मौजूद हैं। किसानों की आय बहुत ही कम है, वे अपने परिवार के सदस्यों की आवश्यक जरूरतों की पूर्ति कर पाने में भी अपने आप को असहाय महसूस कर रहे हैं। परिणामतः कई जगह तो किसान आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने को मजबूर हैं। स्वाभाविक रूप से ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे लोगों के आर्थिक उत्थान पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है। 

इसे भी पढ़ें: भारत में पूंजी की बढ़ती मांग की पूर्ति के लिए करने होंगे नवोन्मेष उपाय

केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार के वर्ष 2014 में, सत्ता में आने के बाद से ही गरीब तबके के लोगों में प्रसन्नता की वृद्धि करने के उद्देश्य से कई योजनाओं का सफलता पूर्वक क्रियान्वयन किया गया है। इनमें मुख्य रूप से शामिल हैं, प्रधानमंत्री आवास योजना- जिसके अंतर्गत 1.50 करोड़ से अधिक आवासों का निर्माण किया जा चुका है। सौभाग्य योजना- जिसके अंतर्गत 100 प्रतिशत गांवों में बिजली उपलब्ध करवा दी गई है। स्वच्छ भारत अभियान- जिसके अंतर्गत लगभग 10 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया है। उज्जवला योजना- जिसके अंतर्गत लगभग 8 करोड़ एलपीजी के कनेक्शन दिलवाए गए हैं। वित्तीय वर्ष 2019-20 का बजट प्रस्तुत करते हुए देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा देश की संसद में यह घोषणा की गई थी कि गांव, गरीब एवं किसान को केंद्र में रखकर, उक्त योजनाओं को और आगे बढ़ाने हेतु कार्य किया जाएगा। जैसे, प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत 1.95 करोड़ नए आवासों का निर्माण वर्ष 2022 तक किया जाना प्रस्तावित है ताकि “हर परिवार को आवास” के नारे को धरातल पर लाया जा सके। सौभाग्य योजना के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को बिजली का कनेक्शन उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित है साथ ही एलपीजी कनेक्शन भी दिलवाया जाना प्रस्तावित है। 

 

वर्ष 2024 तक ग्रामीण इलाकों के हर घर में जल पंहुचाने की व्यवस्था किया जाना भी प्रस्तावित है। इसके लिए अलग से “जल शक्ति मंत्रालय” बनाया गया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत देश के 97 प्रतिशत गांवों को समस्त मौसम में उपलब्ध सड़कों के साथ जोड़ दिया गया है। अब इन सड़कों को अपग्रेड किया जाएगा। प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान भी चलाया जा रहा है, इस अभियान के अंतर्गत 2 करोड़ से अधिक ग्रामीणों को डिजिटल क्षेत्र में प्रशिक्षित किया जा चुका है। इस योजना को और अधिक जोश के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक ग्रामीणों को डिजिटल क्षेत्र में कार्य करने हेतु प्रशिक्षित किया जा सके। इससे ग्रामीणों की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज होगी। 

 

मूल प्रश्न यह है कि केंद्र एवं राज्यों की विभिन्न सरकारों द्वारा तो गरीबों, किसानों, पिछड़ें वर्गों आदि में खुशी का संचार करने के उद्देश्य से कई योजनाएं बनाई जा रही हैं परंतु क्या देश का शिक्षित वर्ग भी इन योजनाओं को सफलता पूर्वक लागू कराने में अपना योगदान नहीं दे सकता है? देश की सामाजिक संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए एवं गरीब तबके को इन योजनाओं की जानकारी देने एवं उनके द्वारा इन योजनाओं का लाभ उठाने हेतु मदद करनी चाहिए। देश के इस वर्ग को यदि हम आर्थिक रूप से ऊपर उठाने हेतु मदद करते हैं तो न केवल यह एक मानवीय कार्य होगा बल्कि इससे देश के कृषि क्षेत्र के साथ-साथ औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्रों में भी विकास को गति मिलेगी क्योंकि यह वर्ग इन क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के लिए एक बाजार के रूप में भी विकसित होगा और इस वर्ग में प्रसन्नता की वृद्धि भी दृष्टिगोचर होगी। 

 

अतः न केवल सरकार बल्कि सामाजिक संस्थाओं, युवा वर्ग एवं पढ़े लिखे नागरिकों को भी आगे आकर देश के गरीबों, किसानों, पिछड़े वर्गों, आदि की मदद करनी चाहिए ताकि देश के नागरिकों में भी खुशी का संचार किया जा सके, जो इनका हक है।


-प्रह्लाद सबनानी

सेवानिवृत्त उप-महाप्रबंधक

भारतीय स्टेट बैंक

प्रमुख खबरें

How To Stop Emotional Eating: इमोशनल ईटिंग को मैनेज करने के लिए अपनाएं ये आसान उपाय

Vaishakh Amavasya 2025: वैशाख अमावस्या पर ऐसे करें श्राद्ध और तर्पण, जानिए मुहूर्त और पूजन विधि

South Indian Breakfast Ideas: बचे हुए इडली बैटर से बनाई जा सकती हैं ये चार टेस्टी साउथ इंडियन डिशेस

KKR vs PBKS Highlights: बारिश के कारण कोलकाता नाइट राइडर्स और पंजाब किंग्स के बीच मैच हुआ रद्द, श्रेयस अय्यर की टीम को हुआ फायदा