By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | Nov 24, 2022
अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस साल देश में आजादी का अमृत महोत्सव भी मनाया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला की अपनी विशिष्ट पहचान है और समूचे देश की झलक इस व्यापार मेले में देखने को मिल जाती है। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला दिल्ली में देशी विदेशी दर्शकों को मिनी भारत की झलक कराता है। इस बार खास बात यह है कि लोकल, वोकल और ग्लोबल को इस मेले में साकार किया जा रहा है। आयोजकों का कहना है कि इस दफा व्यापार मेले में 95 प्रतिशत उत्पाद स्वेदशी या यों कहें के देश में ही बने हुए उत्पाद मिल रहे हैं। इसका सीधा सीधा अर्थ हो जाता है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में लोकल फोर वोकल की थीम साकार हो रही है तो देशी विदेशी दर्शकों को यह उत्पाद भा भी खूब रहे हैं। इसे स्वदेशी या यों कहें कि लोकल को प्रोत्साहित करने का प्रमुख माध्यम माना जा सकता है तो यह भी साफ हो जाता है कि देशवासी स्वदेशी उत्पादों को भी हाथोंहाथ लेते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मई, 2020 में देशवासियों के नाम अपने संबोधन में 20 लाख करोड़ का पैकेज देने की घोषणा के साथ ही लोकल, वोकल और ग्लोबल का संदेश दिया था तब लोगों ने यह नहीं सोचा था कि इस संदेश का असर इतने गहरे तक जाएगा और बहुत कम समय में यह समूचे देश की आवाज बन जाएगा। असल में कोरोना के दौर में अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बदल के रह गई है तो चीन का मुकाबला लोकल के लिए वोकल होकर ही किया जाना संभव माना गया। हालांकि देश में चीनी उत्पादों के खिलाफ जबरदस्त माहौल बना है पर आंकड़ों में बात करें तो अभी भी चीन से निर्यात के आंकड़े नीचे नहीं आये हैं। इसके लिए अभी देश में बहुत कुछ किया जाना जरूरी है। दरअसल कोरोना के दौर में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना भी सरकार के सामने बड़ी चुनौती हो गई थी। सबकुछ बदल के रख दिया था कोरोना ने समूची दुनिया में।
देखा जाए तो आर्थिक उदारीकरण के बाद ग्लोबलाइजेशन और आईटी क्रांति से कारोबार का जो नया ट्रैंड ऑनलाइन चला था उसे भी कोरोना बहुत हद तक प्रभावित किया। कोरोना से एक सबक और मिला कि महामारी संकट के दौर में जो कुछ आपके और आपके आसपास है वही आपका सहारा है। हालांकि यह भी हमारी अर्थव्यवस्था की खूबसूरती ही मानी जानी चाहिए कि स्थानीय स्तर पर छोटे-छोटे कुटीर उद्योग हमारी परंपरा से चलते आये हैं। इसके साथ ही औद्योगिकरण के दौर में स्थानीय स्तर पर जो औद्योगिक क्षेत्र विकसित हुए वे स्थानीय जरूरतों खासतौर से खाद्य सामग्री की आपूर्ति में पूरी तरह से सफल रहे और यही कारण रहा कि सब कुछ थम जाने के बावजूद देश में कही भी खाद्य सामग्री की सप्लाई चेन नहीं टूटी। यहां तक कि हम दुनिया के कई देशों के लिए दवा की आपूर्ति करने में सफल रहे। साथ ही कोरोना का टीका उपलब्ध कराकर भारत की साख को और अधिक मजबूत किया। यह अपने आप में बड़ी बात है।
मई 2020 के प्रधानमंत्री के संदेश में स्थानीय उत्पादों को अपनाने का संदेश देने के साथ ही उसकी आवाज बनने का यानि कि उसके प्रचार-प्रसार में सहभागी बनने का संदेश भी दिया था। इसी तरह से अब अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में स्थानीय उत्पाद को वैश्विक मंच पर पहुंचा कर यह साफ कर दिया है कि बदलते दौर में स्वदेशीकरण समस्याओं के समाधान का बड़ा माध्यम है। इससे निश्चित रूप से विदेशी का मोह भी कम होगा। याद कीजिए, महात्मा गांधी की 150वीं जयंती समारोह और उसके बाद जयपुर में आयोजित ग्लोबल खादी कांफ्रेंस में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने खादी को अपनाने का संदेश दिया था। इसी तरह से ग्लोबल खादी कांफ्रेंस में ही उन्होंने दुनिया के कई देशों के प्रतिनिधियों के सामने गांधी दर्शन और गांधी जी के स्वदेशी को अपनाने का संदेश दिया और ग्रामोद्योग को अपनाने के लिए कहने के साथ ही खादी उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक की छूट दी। राजनीतिक प्रतिबद्धता का ही परिणाम है कि आज देश और विदेश में खादी ब्राण्ड बनकर उभरी है और खादी लोगों की पसंद बनने लगी है।
एक बात और लोगों की सोच और परख में तेजी से बदलाव आया है। जानकारों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में लकड़ी और मिट्टी के बने उत्पादों की जबरदस्त मांग देखी जा रही है। यह प्रकृति से जुड़ने और पर्यावरण के प्रति सजगता की पहचान है। लोग पुरानों की ओर लौट रहे हैं तो लोकल उत्पादक पुरानों में ही नएपन का छोंकन लगा कर बाजार में उतार रहे हैं। यानि कि समय के अनुसार उनमें बदलाव कर रहे हैं डिजाइन व आज की आवश्यकता के अनुसार। लोक जूट के उत्पाद खरीद रहे हैं तो जड़ी बूटियों पर भी विश्वास बढ़ा है। मिट्टी और लकड़ी के बरतन तथा खिलौने आम होते जा रहे हैं। देखा जाए तो यह लोकल के लिए वोकल नहीं बल्कि प्रकृति से जुड़ाव का भी माध्यम बनता जा रहा है।
बदलते हालातों में देश के सामने नए अवसर आए हैं। आज एक बार फिर स्थानीय उत्पादों को अपनाने और उनकी ग्लोबल पहचान बनाने की आवश्यकता है। नई परिस्थितियों में दुनिया के देशों का चीन से लगभग मोहभंग हो गया है। यह देश और देश की अर्थव्यवस्था के लिए नया अवसर है। ऐसे में स्वदेशी तकनीक के आधार पर औद्योगिकरण को नई दिशा देनी होगी। निश्चित रूप से इससे आर्थिक क्षेत्र में दूसरे देशों पर निर्भरता कम होने के साथ ही देश में आत्मनिर्भरता आएगी और दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने का सपना पूरा होगा। युवाओं को रोजगार मिलेगा तो लोकल को ग्लोबल होने में देर नहीं लगेगी।
-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा