नौटंकी का मौसम (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Apr 04, 2024

कृत्रिम बुद्धि का जन्म अपनी बातें मनवाने के लिए कराया गया था लेकिन इस नकली बुद्धि ने नैसर्गिक बुद्धि को हजम करना शुरू कर दिया है। इस बार चुनाव में नकदी बुद्धि से असली बुद्धि नहीं जीत पाएगी। चुनाव के मौसम में नेता कुकरमुत्तों की तरह निकल आते हैं। जहां देखो नेता दिखता है। पुराने चेहरे नए मोहरे जैसे लगते हैं, जैसे शतरंज की बाजी खेलने के लिए मोहरों का नया आकर्षक सैट आ गया हो।  ईमानदारी, निस्वार्थ, सहयोग, आश्वासन जैसी आर्गेनिक क्रीमों से पुते हुए दागहीन चेहरों से लगता है समाज में नैतिक बदलाव आ गया है। ऐसा लगने लगता है उनके मौलिक चेहरे ऐसे ही हैं। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि वक़्त की अदालत ने उन्हें माफ़ कर दिया है। 

  

उनके फेंके रंगीन स्वादिष्ट दाने ध्यान से चुगने लगो तो पता चलता है अरे ! यह सब  तो नकली हैं। अब तो नकलीपन में ही ज्यादा खूबसूरती होने लगी हैं। बिलकुल ताज़ा, महकती हुई, जंगली लैवेंडर की ओरिजिनल सी खुशबू लिए। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि अब हम, नेता क्या किसी का भी भीतरी चेहरा देखना पसंद नहीं करते। अंदर तो नफरत, अलगाव और भ्रष्टाचार भरा पडा होगा उससे बेहतर तो बाहरी साधुता, नम्रता और ईमानदारी है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि नकली है लेकिन देखने में तो बेहतर है। चुनाव के पोस्टर बताते हैं कि आम लोगों का दिमाग चुग जाने वाले नेता, अपना पूरा कायाकल्प कर डालते हैं।

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सुन्दर, सौम्य, मुस्कुराता चेहरा, काले केश, नैतिक वस्त्र, धर्म का तिलक लगाए गर्वीला माथा। बंद गले का कमीज़, लेटेस्ट डिजाइन का काला चश्मा जिसमें से वे सभी को घूर सकें, कोई उनकी आंखों की हरकतें न भांप सके। सामने का टूटा हुआ दांत दरुस्त कराया हुआ। पहले मूछें उपर की तरफ तनी रहती थी अब झुकाए हुए । हाथों के नाखून कटे हुए, पांव में स्पोर्ट्स शू ताकि उचित समय पर भाग सकें। हम इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि कभी असामाजिक रहे तत्वों ने हवनयज्ञ कर, सृष्टि रचयिता से क्षमा मांग ली हो और उन्होंने माफ़ कर दिया है। अंग्रेज़ी और विज्ञान छोड़कर, इतिहास रचने को तैयार दिखते हैं। चुनाव में जो व्यक्ति हाथ जोड़कर, प्यार की जफ्फियां डाल कर लुभाने की कोशिश ईमानदारी से करना शुरू कर दे, समझ लेना चाहिए कि अब यह सज्जन किसी से नहीं लड़ेंगे, सिर्फ चुनाव लड़ेंगे।

 

अपने गुर्गों को भक्त बनाकर, घर आकर, उम्र में छोटों को अपना बड़ा भाई बताकर सिर्फ एक अवसर मांगेंगे ताकि इनकी चुगने की आदत पर सामाजिक स्वीकृति की मोहर लग जाए। उनके साथ मुस्कुराते मधुर भाषी चेले रहेंगे जो उनके लाल, काले, नोकीले शब्दों का रंग रूप और आकार बदलने में माहिर होंगे। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि हमाम में सब नंगे हैं। कोशिश यही रहनी चाहिए कि हम, कम नंगे की पहचान कर, अपना नायक चुन सकें।  वह बात अलग है कि चुने जाने के बाद, हीरोइन की तरह अर्धनग्न होकर भी कहते रहेंगे कि वह संस्कृति के वाहक हैं। सामाजिक और शालीन वस्त्र पहन रखे हैं। हम इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि उन्होंने अपने आप को, संभावित नई सामाजिक भूमिका के लिए बेहतर तरीके से तैयार कर लिया है। नौटंकी का मौसम आ गया है।


- संतोष उत्सुक

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