By अंकित सिंह | Apr 25, 2024
हमेशा की तरह प्रभासाक्षी के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में हमने वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की। इस बार हमारा फोकस मिडिल ईस्ट की तरफ रहा। एक ओर जहां इजराइल और हमास के बीच युद्ध जारी ही था। तो दूसरी ओर इजराइल और ईरान एक दूसरे पर हमलावर देख रहे हैं। साथ ही साथ इजराइल के रवैया पर अमेरिका की नाराजगी भी है। इन तमाम मुद्दों पर हमने हमारे खास मेहमान ब्रिगेडियर डीएस त्रिपाठी से सवाल पूछा। साथ ही साथ हमने रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी चर्चा की और यह जानने की कोशिश की कि आखिर अमेरिका अब यूक्रेन की मदद करने के लिए फिर से कैसे तैयार हो गया है। हमने ईरान की रणनीति पर भी ब्रिगेडियर त्रिपाठी से सवाल पूछा क्योंकि हाल में ही उसके राष्ट्रपति पाकिस्तान पहुंचे थे।
- ब्रिगेडियर डीएस त्रिपाठी ने कहा कि 1979 में ईरान के इवोल्यूशन के बाद से दोनों देश एक दूसरे के दुश्मन बने। न्यूक्लियर को लेकर ईरान के आसपास हलचल बढ़ गई है। ईरान खुद को न्यूक्लियर पावर बनाना चाहता है। ऐसे में वह अपनी ताकत लगातार दिखाने की कोशिश कर रहा है। ईरान और इजरायल के बीच अघोषित युद्ध लगातार हमने देखा है। लेकिन दोनों के बीच जो एरियल डिस्टेंस है वह बड़ी चुनौती है जो की 1500 किलोमीटर है। हालांकि, ईरान इजराइल में मिसाइल भेज कर यह दिखा दिया कि उसे काम न समझा जाए। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि दोनों देश एक दूसरे को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही साथ एक दूसरे पर अटैक भी कर रहे हैं। बावजूद इसके यह युद्ध का रूप नहीं ले रहा है। इसका बड़ा कारण यह है कि कहीं ना कहीं दोनों अपने सैन्य क्षमता दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। यहां जमीनी लड़ाई नहीं है। दोनों एक दूसरे का कुछ भी डैमेज नहीं कर रहे हैं। दिखावे के लिए ही फायरिंग की जा रही है ताकि एक दूसरे पर दबाव बनाया जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि कहीं ना कहीं ईरान ने अपनी ताकत को बढ़ाने की कोशिश की है जिससे उसे पोलिटिकल फायदा तो हुआ ही है साथ ही साथ मिलिटेंट ग्रुप का ईरान पर भरोसा भी बढ़ा है।
- उन्होंने कहा कि इजरायल के रवैया को लेकर अमेरिका नाराज है। मानवीय त्रासदी भयंकर है। नेतन्याहू के खिलाफ भी माहौल बन रहा है। सीजफायर पर बात नहीं बन पा रही है। साथ ही साथ एक सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर गाजा पर कंट्रोल कौन करेगा? लड़ाई के इतने दिन बाद भी इजरायल हमास और हौती को लेकर कुछ खास हासिल नहीं कर सका है। जिस तरीके से इजरायल द्वारा मानवीय त्रासदी की गई है, उससे अमेरिका के लोगों में भी नाराजगी बढ़ी है। इसी वजह से इजराय का दबदबा कम हुआ है। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने बताया कि नेजा यहूदी करके एक बटालियन है जिस पर बैन लगाने की बात अमेरिका कर रहा है। यह पूरी तरीके से धार्मिक बटालियन है जिसमें जीव समाज के लोग ज्यादा है। इसकी लगभग 1000 की स्ट्रेंथ है। उन्होंने कहा कि इजरायल को मदद करना अमेरिका की मजबूरी भी है। इजरायल नाटो का सदस्य नहीं है फिर भी अमेरिका उसके साथ खड़ा रहता है। इजरायल का 15% सैन्य बजट अमेरिका ही देता है। इंग्लैंड से भी मदद मिलती है। इसका बड़ा कारण यह है कि अमेरिका इजरायल के जरिए मिडिल ईस्ट में अपना दबदबा कायम रखना चाहता है। इसके अलावा अमेरिका ईरान को भी सख्त संदेश देने की कोशिश कर रहा है।
- ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि आखिरकार यूक्रेन की गुहार को अमेरिका ने सुन लिया। रूस लगातार यूक्रेन पर आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं। खारकीव पर रूस की नजर है। अगर खारकीव पर रूस कब्जा कर लेता है तो यह यूक्रेन के लिए बड़ा झटका हो सकता है। यूक्रेन की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। वह छोटा-मोटा पलटवार ही कर पा रहा है। ऐसे में अमेरिका से उसे बड़ी उम्मीद दिखाई दी है। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने यह भी सवाल उठाया की देखना दिलचस्प होगा कि आखिर यूक्रेन को यह मदद कब मिल रही है क्योंकि घोषणा होने के बाद भी इसमें समय लग सकता है। लेकिन इस मदद से रूस पर कोई फर्क नहीं पढ़ने जा रहा। उल्टा यूक्रेन को ही नुकसान होगा। अगर यूक्रेन अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करेगा तो रूस और भी आक्रामक होकर उसपर पलटवार करेगा। उन्होंने कहा कि यूक्रेन में करप्शन बढ़ा है। पैसे का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा। जेलेंस्की पर भी कई सवाल उठे हैं। इसलिए यूक्रेन को मदद मिलनी थोड़ी कम हुई है। हालांकि, अमेरिका की मदद के बाद जेलेंस्की थोड़ा बहुत खुश जरूर हुए होंगे। उन्होंने कहा कि अगर यूक्रेन को हथियार मिल भी गया तो उसके पास मैनपावर की कमी है। वह इन हथियारों का इस्तेमाल कैसे करेगा, यह भी हमें देखना होगा। दूसरी ओर रूस अपना पोजीशन स्ट्रांग करके रखा हुआ है।
- ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि तीन दिन के दौरे पर ईरान के राष्ट्रपति पाकिस्तान पहुंचे थे। उन्होंने पाकिस्तान के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और आर्मी चीफ से मुलाकात भी की। दोनों देशों के बीच विवाद चल रहा था। हालांकि अब एक होने की वे दोनों बात कर रहे हैं। ईरान पर कई तरीके का बैन लगा हुआ है। इसलिए वह पाकिस्तान की तरफ व्यापार को लेकर देख सकता है। ईरान को पीछे से रूस और चीन का समर्थन है। चीन पाकिस्तान के साथ ईरान की दोस्ती में अहम भूमिका निभा सकता है। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने कहा कि दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध की बात हो रही है। लेकिन सुरक्षा और मिलिट्री पर बातचीत में जोर दिया गया है। डिप्लोमेसी बढ़ाने के लिए एग्रीमेंट भी किए गए हैं। हालांकि पर्दे के पीछे का मामला कुछ और है। उन्होंने कहा कि ईरान हर हाल में न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी चाहता है। पाकिस्तान से उसे मदद मिल सकती है। इसलिए ईरान के राष्ट्रपति ने आर्मी चीफ से मुलाकात की होगी। साथ ही साथ पाकिस्तान भी चाहता है कि ईरान अफ़ग़ानिस्तान में उसकी मदद करें। ब्रिगेडियर त्रिपाठी ने दावा किया कि ईरान के प्रेसिडेंट को पाकिस्तान में कुछ अच्छा रिस्पांस नहीं मिला, ना अच्छा रिसेप्शन मिला। बॉर्डर एरियाज में मिलिटेंसी दोनों देशों के लिए चुनौती है। उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान ईरान से कारोबार बढ़ाने की कोशिश करता है तो अमेरिका चेतावनी दे चुका है कि उसे पर भी कई तरीके की पाबंदी लग सकती हैं।