"पीओके पर आने वाले दो घंटे के अंदर बड़ी स्ट्राइक की जाएगी, मतलब करीब 12:45 मिनट पर।"
पीओके यानी जम्मू-कश्मीर का वो इलाका जिस पर पाकिस्तान ने धोखे से कब्जा कर लिया। जिसको वापस भारत में मिलाने की बातें अक्सर गाहें-बगाहें की जाती रहती हैं। फर्ज कीजिए की आप रोज की तरफ अपना फोन चेक कर रहे हैं और तभी आपको ये मैसेज मिले। आगे और भी मैसेज आते हैं। फिर आपको समझ आता है कि एक बड़े सैन्य हमले की योजना लिखी हुई है। वो आप तक पहुंच गई है। लेकिन अब जरा काल्पनिकता से पर्याय वास्तविक्ता की ओर शिफ्ट करते हैं। क्योंकि वास्ताव में कुछ ऐसा ही हुआ है। बस किरदार कुछ अलग हैं। 11 मार्च 2025 को अमेरिकी मैगजीन द अटलांटिक के एडिटर इन चीफ जेफरी गोल्डबर्ग के साथ ऐसा ही कुछ हुआ। यमन के हूती विद्रोहियों के खिलाफ डोनाल्ड ट्रंप का सीक्रेट वॉर प्लान लीक हो गया। मगर जो प्लान लीक हुआ है वो पहले से अमल हो चुका है इसलिए इसका अमेरिकी मिलिट्री पर कोई खास असर पड़ेगा नहीं। हालांकि इसने ट्रंप सरकार को सवालों के घेरे में तो ला ही दिया है क्योंकि क्लासिफाइड इंफार्मेशन रियल टाइम में ऐसे व्यक्ति तक पहुंची है जिसतक किस भी हालत में नहीं पहुंचनी थी। अमेरिका में इसको लेकर बवाल हो गया है। विपक्षी नेता इसको लेकर ट्रंप सरकार पर निशाना साध रहे हैं। उन पर नेशनल सिक्योरिटी को कॉम्प्रोमाइज करने का आरोप लग रहा है। इससे पेंटागन पेपर के बाद अमेरिका में हुआ सबसे बड़ा पेपर लीक बताया जा रहा है। ये लीक कैसे हुआ? लीक प्लान में आखिर क्या था और इसका अमेरिका पर क्या असर पड़ सकता है? क्या ये प्लान जानबूझकर लीक किया गया था?
अमेरिकी वॉर प्लान कैसे हुआ लीक?
गोल्डबर्ग ने 24 मार्च को द अटलांटिक की वेबसाइट पर एक आर्टिकल लिखकर इस बात की जानकारी दी। आर्टिकल के मुताबिक 11 मार्च को वो अपने रोजमर्रा के काम में लगे थे। तभी उनके फोन पर एक कनेक्शन रिक्वेस्ट आया। ये रिक्वेस्ट सिग्नल एफ से था। सिग्नल एक कनेक्टिंग एप है और इसका इस्तेमाल अधिकारी और पत्रकार संवेधनशील जानकारी साझा करने के लिए करते हैं। गोल्डबर्ग को ये रिएक्वेस्ट अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्ज ने भेजा था। उन्होंने ये रिएक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लिया। उन्हें लगा कि वाल्ज को यूक्रेन या ईरान से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करनी हो। दो दिन बीते 13 मार्च को माइकल वाल्ज की ओर से एक और मैसेज आया। लिखा था कि आपको हूती पीसी स्माल ग्रुप नाम के एक ग्रुप में एड किया जा रहा है। वाल्ड का अगला मैसेज इसी ग्रुप में आया। लिखा था हमारी टीम ने हूतियों पर हमला करने के लिए ये ग्रुप बनाया है। खास तौर पर आने वाले 72 घंटों के लिए। फिर एक एक करके अमेरिकी सरकार के बड़े नेताओं के नाम से मैसेज आने शुरू हो गए। ग्रुप में कुल 18 लोग थे। विदेश मंत्री मार्को रूबियो, खुफिया विभाग की हेड तुलसी गबार्ड, रक्षा मंत्री हेगसेथ समेत सीआईए के बड़े नाम शामिल थे।
वॉर प्लान में क्या निकला
ऐसा पहली बार हुआ था कि ऐसे किसी ग्रुप में एक पत्रकार भी शामिल हुआ हो। आने वाले दो दिन ऐसे ही बीते। ग्रुप में सभी लोग यमन में बमबारी की योजना बना रहे थे। गोल्डबर्ग सब ऑब्जर्व कर रहे थे और कयास लगा रहे थे कि क्या इन बातों में सच्चाई है। फिर 15 मार्च की सुबह अमेरिकी रक्षा मंत्री हेगसेथ ने अपडेट डाला और कहा कि यमन में आने वाले दो घंटे के अंदर बम गिराया जाएगा। गोल्डबर्ग ने इसको लेकर अपने आर्टिकल में लिखा कि मैं कार में बैठकर इंतज़ार कर रहा था। अगर इस चैट में सच्चाई है, तो यमन में बने हूती टारगेट पर जल्द ही बमबारी होगी। क़रीब 1 बजकर 55 मिनट पर मैंने एक्स खोला और यमन सर्च किया। फ़िर जो मिला, मैं सन्न रह गया। यमन की राजधानी सना तेज़ धमाकों से गूंज उठी थी। फिर मैंने वापस ग्रुप खोला। लोग एक दूसरे को शाबाशी और बधाई दे रहे थे। इसके बाद गोल्डबर्ग ने ग्रुप छोड़ दिया।
क्या जानबूझकर किया गया लीक
जेफरी गोल्डबर्ग का दावा है कि ये एस्पिनॉज एक्ट का उल्लघंन है। ये एक्ट 1917 में लागू हुआ था। इसके तहत यूएस मिलिट्री के क्लासिफाइड इंनफार्मेशन को गलत व्यक्ति से साझा करने को अपराध की श्रेणी में डाला गया। गोल्डबर्ग के पास सीक्रेट इंफार्मेशन देखने का क्लियरेंस नहीं था। फिर भी माइक वाल्ज ने उन्हें ग्रप में जोड़ा। वहीं अमेरिका में क्लासीफाइड इंफार्मेशन शेयरिंग के लिए कई टेक्नोलाजी का इस्तेमाल होता है। लेकिन उनमें सिग्नल एप अप्रूव नहीं है। सीक्रेट टॉक के लिए उनका अलग सिस्टम है। इसे भी नजरअंदाज किया गया। कई जानकार बताते हैं कि ये सब जानबूझकर किया गया है। कुछ मानते हैं कि ये जानबूझकर किया गया। ताकी दुनिया को अमेरिका की ताकत का पता चले।
पटेल-तुलसी समेत ट्रंप प्रशासन के कई दिग्गजों तक जांच
हूती विद्रोहियों पर हमले की रणनीति से जुड़ी चैट लीक होने के मामले में एफबीआई निदेशक काश पटेल, राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड और सीआईए निदेशक जॉन रैटक्लिफ पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। यह सुरक्षा चूक इतनी गंभीर थी कि सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी को तुरंत इस पर सुनवाई करनी पड़ी, जहां ट्रम्प प्रशासन के दिग्गजों को कड़े सवालों का सामना करना पड़ा। सुनवाई के दौरान गबार्ड ने कहा कि चैट में कोई गोपनीय जानकारी नहीं थी। जब सीनेटर एंगस किंग ने पूछा कि क्या हथियार, लक्ष्य और हमले की टाइमिंग गोपनीय नहीं होती है। इस पर गबार्ड बोलीं- रक्षा मंत्री जवाब देंगे। काश पटेल से पूछे जाने पर कि क्या एफबीआई इस मामले की जांच शुरू करेगा। इस पर उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
आगे क्या हो सकता है?
सुनवाई के दौरान सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी के वाइस चेयरमैन मार्क वार्नर ने तीखे तेवर दिखाते हुए कहा यह राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ घिनौना खिलवाड़ है। इतनी बड़ी गलती कोई कैसे कर सकता है। अगर एफबीआई जांच शुरू करती है, तो इसमें शामिल अधिकारियों को राष्ट्रीय सुरक्षा उल्लंघन के तहत दंडित किया जा सकता है। वहीं, चैट में गोपनीय जानकारी पाई गई, तो इस लीक में शामिल अधिकारियों पर जासूसी अधिनियम के तहत मुकदमा चल सकता है। रक्षा मंत्री को पद भी छोड़ना पड़ सकता है।
साल 2016 के चुनाव में ट्रंप ने बनाया था बड़ा मुद्दा
साल 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में हेलरी क्लिंटन डेमोक्रेट की उम्मीदवार थी। उसी समय रिपोर्ट छपी की हेलरी ने विदेश मंत्री रहते हुए क्लासिफाइड एंड कम्युनिकेशन के लिए प्राइवेट सर्वर का इस्तेमाल किया। डोनाल्ड ट्रंप ने इसे लेकर अपने चुनावी कैंपेन में हेलरी क्लिटंन की खूब आलोचना की। इस घटना ने हेलरी को खूब नुकसान पहुंचाया और आखिर में हो चुनाव हार गई। इन्हीं हेलरी क्लिंटन ने हालिया प्रकरण को लेकर एक्स पर लिखा यू हैग गॉट टू बी किडिंग मी।
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