हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की कायल रही सारी दुनिया

By प्रज्ञा पाण्डेय | Aug 29, 2019

हॉकी के जादूगर ने अपनी काबिलियत के दम पर पूरे दुनिया में अपना नाम कमाया। 29 अगस्त को मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन है। तो आइए इस अवसर पर हॉकी के महारथी मेजर ध्यान चंद के बारे में कुछ रोचक बाते बताते हैं।

 

शुरूआती जीवन 

ध्यानचंद का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था। इनके पिता का नाम समेश्वर सिंह था जो आर्मी में थे। ध्यानचंद के छोटे भाई भी हाकी खेलते थे। ध्यानचंद का परिवार झांसी में बस गया था। ध्यानचंद को अपने बचपन के दिनों में पहलवानी पसंद थी। वह 16 साल की आयु मे आर्मी में भर्ती हो गए। ध्यानचंद केवल आर्मी हॉकी और रेजिमेंट गेम्स खेलते थे। ध्यानचंद ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे उन्होंने केवल छठवीं तक पढ़ाई की थी। इसके पीछे कारण यह था कि उनके पिता का हमेशा तबादला होता रहता था जिसके कारण उन्हें स्थायी रूप से पढ़ने का मौका नहीं मिला।

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कैरियर 

ध्यानचंद अभूतपूर्व प्रतिभा के धनी थे। उनके खेल के दौरान भारत ने ओलम्पिक में तीन गोल्ड मैडल जीते थे। ये गोल्ड मैडल 1928, 1932 और 1936 में जीते गए। ध्यानचंद का पहला विदेशी दौरा 1926 में हुआ था जब हॉकी टीम मैच खेलने न्यूजीलैंड जा रही थी। 1928 में एम्सटर्डम में खेल के दौरान ध्यानचंद ने 14 गोल किए। वह सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे। 1932 में ओलंपिक फाइनल का मैच के ऐसा मैच था जिसमें ध्यानचंद अपने भाई के साथ खेल रहे थे। उसमें उनके भाई रूप सिंह ने 10 गोल किए थे। विएना के स्पोर्टस क्लब में ध्यानचंद की चार हाथों वाली मूर्ति लगी है जिसमें दो हाथों के अलावा दो हॉकी भी बनी हुई है।

 

पुरस्कार

भारत के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार पद्मभूषण से ध्यानचंद को 1956 में सम्मानित किया गया। उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है। उनके जन्मदिन के अवसर पर अर्जुन तथा द्रौणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। भारतीय ओलम्पिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी कहा है। ध्यानचंद की याद में डाक टिकट जारी किया गया था। उनके सम्मान में दिल्ली में ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम का निर्माण भी कराया गया था। 

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खेल जगत की बड़ी हस्तियां भी थीं ध्यानचंद की मुरीद 

दुनिया में क्रिकेट के लिए मशहूर ब्रैडमैन भी ध्यानचंद की प्रशंसा करते थे। यह संयोग है कि 27 अगस्त को जहां ब्रैडमैन का जन्मदिन है वहीं 29 अगस्त को ध्यानचंद की जन्मतिथि मनायी जाती है। यही नहीं जर्मनी के हिटलर भी ध्यानचंद के खेल से बहुत प्रभावित थे। हिटलर के अलावा जर्मनी की जनता भी ध्यानचंद की बहुत प्रशंसक थी। 

 

मौत को नहीं हरा सके हॉकी के जादूगर 

हॉकी के जादूगर 42 साल की उम्र तक हॉकी खेलते रहे। बाद उन्होंने 1948 में संन्यास ग्रहण कर लिया। ध्यानचंद के आखिरी दिन अच्छे नहीं थे। वे अंत में पैसों की परेशानी से जूझ रहे थे। उसके 1979 में कैंसर जैसी बड़ी बीमारी से जूझते हुए उनकी मौत हो गयी। वह लीवर के कैंसर जैसी बड़ी बीमारी से जूझ रहे थे लेकिन इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। वह एम्स के जनरल वार्ड में रहकर अपना इलाज करा रहे थे।

 

प्रज्ञा पाण्डेय

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