आम जनता बहुत सहनशील, विवेकशील व शांतिप्रिय प्रवृति की होती है तभी विकास प्रिय शासकों की बातें, योजनाएं व उनका क्रियान्वन बहुत पसंद करती है। जनता की इस अच्छाई के कारण समाज के अनायक और अनायिकाएं भी अति प्रसन्न रहते हैं। वैसे तो आजकल प्रकृति प्रेम, बहुत स्वादिष्ट वस्तु हो चुकी है इसके मोहपाश से बचना मुश्किल हो चुका है। इतने सकारात्मक मौसम में कुदरत के विकास बारे राजनीतिक आश्वासन मिल जाए इससे बेहतर क्या हो सकता है। ऐसा हो जाने पर प्राकृतिक तत्व संतुष्ट महसूस कर मुस्कुराने लगते हैं उन्हें लगने लगता है कि अच्छे दिन आए समझो। शासन ने एक सर्वे के दौरान समझदार इंसानों से पूछा कि प्रकृति के पांच तत्व कौन कौन से होते हैं। शासक को इस बात की खुशी भरी संतुष्टि हुई कि कोई यह नहीं बता पाया कि वे तत्व क्या हैं। तब शासक ने जनता की विशाल बैठक कर ज्ञान बढ़ाऊ घोषणा की, कि वे तत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी हैं।
जनता को समझाया गया क्यूंकि विकास और प्रकृति का बंधन अटूट है इसलिए आने वाले समय में विकास के माध्यम से हम इन पांच तत्वों की पहचान स्थापित करेंगे ताकि आप लोग कभी इन्हें भूलें नहीं। जीवन का अभिन्न अंग मानकर, अपने आराध्य की तरह, इनकी पूजा करें। शासकों ने अपने कारिंदों से मिलकर महत्वकांक्षी योजना पर काम करना शुरू कर दिया। मीडिया में कई दिन रात, शासक का शानदार ब्यान छाया रहा जिसमें उनका मुस्कराहट बिखेरता नया रंगीन चित्र प्रयोग हुआ था। इस चित्र के माध्यम से उनकी बेहद सौम्य, शालीन, सरल, आध्यात्मिक, सामाजिक व राजनीतिक छवि छलक रही थी। खबर सूचित कर रही थी कि प्रबुद्ध शासकों के आह्वान पर प्रशासन ने प्रकृति के पांच तत्वों को जीवन का आवश्यक तत्व मान लिया है।
गहन मंथन के बाद संदर्भित योजना कार्यान्वित की जा रही है ताकि आम लोग प्रकृति से ज़्यादा प्यार करना शुरू करें। उन्हें प्रकृति के तत्वों के महत्त्व का ज्ञान हो। प्रकृति के यह महत्त्वपूर्ण हिस्से हमारी बाल व युवा पीढ़ियों की आँखों के सामने रहें ताकि प्रकृति प्रेम निरंतर परवान चढ़ता रहे। शासकों की योजना के अनुसार शीघ्र ही इन पांच तत्वों को मूर्त रूप में जगह जगह स्थापित किया जाएगा। आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी की आकर्षक, सुन्दर, टिकाऊ मूर्तियां लगाईं जाएंगी।
देश के प्रसिद्ध कलाकार, प्रारूपकार व कल्पना विशेषज्ञ इन मूर्तियों की सामग्री, रंग, आकार, बनावट बारे सुनिश्चित करेंगे ताकि पांच तत्वों के प्राकृतिक सम्प्रेषण में कोई कमी न रहे। स्वाभाविक है इन मूर्तियों का आकार विशाल ही होगा जिसकी एक झलक से ही आम आदमी को इनकी महत्ता की अनुभूति होने लगेगी। इस महान योजना बारे जिसने भी सुना धन्य होता गया वह बात अलग है कि कुछ प्रकृति प्रेमी नाराज़ हो गए जिससे किसी को कोई फर्क नहीं पढ़ना था।
- संतोष उत्सुक