सरकार को जल्द कुछ करना होगा, दिल्ली का पुराना ड्रेनेज सिस्टम दम तोड़ चुका है

By संतोष पाठक | Jul 29, 2020

दिल्ली देश की राजधानी है। जिस तरह से वैश्विक स्तर पर भारत का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे दुनियाभर की निगाहें भी दिल्ली पर फोकस होती जा रही हैं। दुनिया के विशाल लोकतांत्रिक देश की राजधानी होने का गौरव हासिल करने वाली दिल्ली की छोटी-सी-छोटी घटना भी अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियां बटोर लेती है। वैसे तो राजधानी होने के बावजूद दिल्ली कई तरह की समस्याओं से जूझ रही है लेकिन एक समस्या ऐसी है जो पिछले कई दशकों से दिल्लीवासियों को त्रस्त करती रही है और वह समस्या है जलभराव की। कुछ घंटों की बारिश में ही दिल्ली का हाल-बेहाल हो जाता है। सड़कों पर पानी भरा नजर आता है, नालियां उफान मारने लगती है, सड़कों पर लंबा-लंबा जाम लग जाता है और हाल ही में इसकी वजह से एक 56 वर्षीय व्यक्ति को जान भी गंवानी पड़ी।


कुछ घंटों की बारिश में पानी-पानी दिल्ली


ऐसे में इस बात का विश्लेषण करना बहुत जरूरी हो जाता है कि आखिर इस समस्या के लिए जिम्मेदार कौन है ? केवल एक और सवा इंच की औसत बारिश में ही दिल्ली की सड़कों पर 2 से 3 फीट पानी कैसे भर जाता है ? नालियों से गाद निकालने का काम समय पर पूरा करना किसकी जिम्मेदारी है ? बारिश में जलभराव के कारण किसी को समस्या न हो, यह देखने के लिए कोई विभाग है भी या नहीं ? आखिर इस समस्या का कोई स्थायी समाधान क्यों नहीं निकाला जाता है ?

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दो-दो सरकारें और इतनी एजेंसी होने के बावजूद हर बारिश में दिल्ली पानी-पानी हो जाती है। दिल्ली के वीवीआईपी लुटियन जोन में सड़को पर पानी भरा नजर आता है। मिन्टो ब्रिज तो हर बारिश में डूब ही जाता है। ITO चौराहे पर भी पानी की वजह से जाम लग जाता है और इसका असर नई दिल्ली से लेकर यमुनापार तक सड़कों पर गाड़ियों की लंबी-लंबी कतारों के रूप में दिखाई देता है। दिल्ली में जहां-जहां अंडरपास बना है, वो सभी कुछ घंटों की बारिश में डूबे नजर आते हैं। दिल्ली में संगम विहार जैसी सैंकड़ों कॉलोनियां हैं, जहां के निवासी हर बारिश में नारकीय जीवन जीने को मजबूर होते हैं। इस तरह की हर बारिश के बाद दिल्ली में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो जाता है। दिल्ली की विपक्षी पार्टी दिल्ली सरकार को घेरती है तो नगर निगम में विपक्ष की कुर्सियों पर बैठने वाले निगम के सत्ताधारी दल पर निशाना साधते हैं। दिल्ली की सत्ता की संरचना भी ऐसी ही है कि ज्यादातर समय लोग समझ ही नहीं पाते कि समस्या के लिए वास्तविक तौर पर जिम्मेदार कौन है ?


दिल्ली में जलभराव की समस्या के पीछे का खेल


आइए अब आपको समझाते हैं दिल्ली में जलभराव की समस्या का पूरा खेल। इस समस्या को सुलझाने का जिम्मा मुख्य तौर पर पांच विभागों अर्थात एजेंसियों- लोक निर्माण विभाग, दिल्ली जल बोर्ड, दिल्ली राज्य औद्योगिक और अवसंरचना विकास निगम, बाढ़-सिंचाई नियंत्रण विभाग और सभी नगर निगम के जिम्मे हैं लेकिन दिल्ली की सड़कों और नालियों के रखरखाव में 17 सरकारी विभागों की भी भूमिका होती है।


तीनों नगर निगमों पर लगभग 24 हजार किलोमीटर सड़कों की जिम्मेदारी है। इन सड़कों से लगे 4 फुट तक चौड़ाई वाली नालियों की सफाई का जिम्मा नगर निगम के पास है। इन नालियों से गाद निकालना, कूड़े की सफाई करने की जिम्मेदारी नगर निगम की है। लोक निर्माण विभाग-पीडब्लूडी के अंतर्गत 1,200 किलोमीटर की सड़क आती है, जिससे सटे नालियों की सफाई की जिम्मेदारी इनकी है। बड़े-बड़े नालों से गाद निकालने की जिम्मेदारी बाढ़-सिंचाई नियंत्रण विभाग की होती है। आपको यह जानकर हैरत होगी कि हर साल यह सभी विभाग मिलकर कई लाख टन गाद नालियों से निकालता है और इस पर खर्च होने वाली कुल राशि 800 करोड़ रुपये से भी ज्यादा होती है।  


सामान्य नियम तो यह है कि बारिश के मौसम के शुरू होने से पहले जिम्मेदार विभाग नालियों की सफाई करवा कर गाद निकाल दे और उसे समय रहते उठा भी ले। गाद निकलने की वजह से नालियों में पानी का प्रवाह तेज हो जाता है और बारिश का पानी भी सड़कों पर इकट्ठा होने की बजाय नालियों के तेज प्रवाह में बहने लगता है। इस काम की जिम्मेदारी 5 मुख्य एजेंसियों पर होती है लेकिन इन विभागों की लापरवाही का आलम दिल्ली की सड़कों पर साफ-साफ नजर आता है।


इन सभी की यह जिम्मेदारी होती है कि ये हर साल बारिश का मौसम आने से पहले इन लाखों टन गाद को नालियों से निकाल कर वहां से हटा भी दें। लेकिन इन विभागों के काम करने का तरीका लापरवाही भरा है और लगभग हर साल यही होता है कि समय पर नालियों की सफाई नहीं हो पाती है। दिल्ली की सड़कों पर तो कई बार यह नजारा आम देखने को मिलता है कि आसमान से बारिश हो रही होती है और साथ ही सरकारी एजेंसी नालियों से गाद निकाल कर सड़क पर रखती नजर आती है और बाद में वही गाद बारिश के पानी के साथ बह कर फिर से नालियों के अंदर ही समा जाता है। इसके बाद दिल्ली फिर से पानी-पानी नजर आने लगती है। नई दिल्ली के वीवीआईपी इलाके का जलभराव तो फिर भी मीडिया की वजह से सरकार की नजर में आ जाता है और तेजी से कार्रवाई भी होती है लेकिन दिल्ली में संगम विहार जैसी हजारों ऐसी कॉलोनियां भी हैं जहां के लोग बारिश के पूरे मौसम में जलभराव के कारण नारकीय जीवन जीने को मजबूर होते हैं। 


इसे लेकर सरकारों के पास अजग-गजब से बहाने भी होते हैं। समस्या हर साल की होती है इसलिए हर साल के लिए बहाना भी नया ढूंढ़ा जाता है। जैसे इस बार तर्क दिया जा रहा है कि सभी एजेंसियों की प्राथमिकता में कोरोना के होने की वजह से समय पर नालियों की सफाई नहीं हो पाई। इस तर्क पर हम और आप खीझ सकते हैं, हंस सकते है या गुस्सा हो सकते हैं। लेकिन सच्चाई तो यही है कि जब तक नालियों की सफाई से जुड़े सभी विभागों के कामकाज के रवैये में बदलाव नहीं आता है तब तक हर बारिश में दिल्ली में यही नजारा दिखाई देगा।


दम तोड़ चुका है दिल्ली का पुराना ड्रेनेज सिस्टम


जलभराव की समस्या के लिए दिल्ली का ड्रेनेज सिस्टम भी जिम्मेदार है जो काफी पुराना हो चुका है। पिछली बार साल 1976 में दिल्ली का जल निकासी मास्टर प्लान तैयार किया गया था। पिछले 44 सालों में दिल्ली की जनसंख्या में 5 गुना से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है लेकिन ड्रेनेज सिस्टम की संरचना और क्षमता में कोई बड़ा विस्तार नहीं हुआ है। वास्तव में दिल्ली के ड्रेनेज की क्षमता बढ़ने की बजाय 30 प्रतिशत तक घट गई है। कई ड्रेन भर चुके हैं, पाइप टूट चुके हैं और रही-सही कसर अनियमित तौर पर बनी कॉलोनियों ने निकाल दी है। आज हालत यह है कि नियमित तौर पर ड्रेनेज की सफाई तक नहीं हो पाती है।

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सरकारी एजेंसियां किस तरह से काम कर रही है, इसका अंदाजा इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि दिल्ली में 60 के लगभग ऐसी सड़कें भी हैं जिसका ढलान ही ठीक से नहीं बनाया गया है। गलत तरीके से बनी नालियों की संख्या भी सैंकड़ों है। ऐसे में बारिश का पानी जाए भी तो कहां जाए ? 


जलभराव से निपटने के लिए समग्र और समन्वित योजना की जरूरत


बारिश से जलभराव की समस्या पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने सभी सिविक एजेंसियों को बारिश के पानी के ड्रेनेज सिस्टम और जलभराव से निपटने के लिए एक समग्र योजना बनाने का आदेश दिया है। इस आदेश के मद्देनजर जलभराव की समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, सभी नगर निगमों को आपस में बैठकर रणनीति तैयार करने के साथ-साथ बेहतर समन्वय स्थापित कर मिल कर भी काम करना होगा। नालियों की सफाई के लिए एक समयबद्ध चार्ट बनाना होगा, जिसका पालन सुनिश्चित करवाने की जिम्मेदारी तय करना होगी। यह नियम कठोरता से लागू करना होगा कि बारिश का मौसम आने से पहले हर हाल में नालियों की सफाई हो जाए, गाद निकाल लिया जाए और उसे सड़कों से तुरंत हटा भी लिया जाए। छोटी से लेकर बड़ी नालियों की सफाई की व्यवस्था को पुख्ता बनाना होगा तभी अगली बारिश में दिल्ली पानी-पानी होने से बच पाएगी। दम तोड़ चुके सड़े-गले ड्रेनेज सिस्टम को वर्तमान आबादी के हिसाब से बनाने के लिए भी एक समग्र योजना बना कर तेजी से काम करना होगा। यह जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति या एजेंसी को नहीं बल्कि सभी को मिलकर दिल्ली को बचाने के लिए उठानी चाहिए। आखिरकार दिल्ली देश की राजधानी है, भारत का गौरव है।


-संतोष पाठक

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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